रांची: राज्य सरकार के द्वारा जातीय सर्वे कराने की पहल 2021 से किए जाने का दावा भले ही किया जा रहा हो, मगर हकीकत यह है कि स्थानीय निकाय चुनाव में पिछड़ों के आरक्षण की पात्रता की जांच के लिए डेडिकेटेड कमिशन बनाने का फैसला अभी भी कागज पर ही है. झारखंड सरकार के द्वारा कैबिनेट में तय किया गया था कि राज्य का पिछड़ा वर्ग आयोग ही डेडिकेटेड कमीशन के रूप में काम करेगा, जो सामाजिक आर्थिक सर्वेक्षण कर पिछड़ा वर्ग के लिए आरक्षण तय करेगा. वास्तविकता यह है कि राज्य पिछड़ा वर्ग आयोग के पास ना तो अध्यक्ष है और ना ही कोई सदस्य. ऐसे में सर्वे का काम कैसे होगा, यह समझा जा सकता है.
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इधर, बिहार में जातीय सर्वे की रिपोर्ट आने के बाद झारखंड में भी सरकार पर दबाव बनने लगा है. खुद मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन इस मामले में मीडिया के सवालों का जवाब देते हुए कहते हैं कि 2021 में ही इसको लेकर पहल करने की कोशिश की गई थी और विधानसभा से जिसकी जितनी आबादी उसकी उतनी भागीदारी को अमलीजामा पहनाते हुए नए सिरे से आरक्षण का प्रावधान किया गया था. मगर, किन कारणों से यह अटक गया वह खुद आप जानते हैं.
जातीय सर्वे को लेकर जारी है सियासत: जातीय सर्वे को लेकर सियासत जारी है. कांग्रेस विधायक इरफान अंसारी के अनुसार राज्य सरकार बिहार के तर्ज पर आगे बढ़ेगी. जब उनसे यह पूछा गया कि आयोग में अध्यक्ष और सदस्य ही नहीं है तो कैसे सर्वे का काम होगा. इस पर वह थोड़ा प्रतीक्षा करने की सलाह देते नजर आए. इधर प्रमुख विपक्षी दल भारतीय जनता पार्टी ने सरकार की मंशा पर सवाल खड़ा करते हुए कहा है कि एक तरफ राज्य सरकार सुप्रीम कोर्ट में एफिडेविट फाइल करती है. वहीं दूसरी तरफ आयोग गठन की बात करती है. भाजपा प्रदेश प्रवक्ता प्रदीप सिंह ने कहा कि सरकार के इस टालमटोल की वजह से शहरी नगर निकाय के चुनाव बाधित हैं.