रांची: 'आज से पूरे देश में 21 दिनों तक संपूर्ण लॉकडाउन'. जनता कर्फ्यू के बाद 24 मार्च को प्रधानमंत्री मोदी टेलीविजन पर आते हैं. पूरा देश एकटक मोदी की तरफ देख रहा होता है. मोदी 21 दिनों के लिए पूरे देश में लॉकडाउन की घोषणा करते हैं. कोरोना के बढ़ते केस से सभी वाकिफ थे. ज्यादातर लोग यह समझ नहीं पाये थे कि लॉकडाउन मतलब क्या. क्या करना होगा और क्या नहीं. पीएम के संबोधन के बाद इंटरनेट, न्यूज चैनल और अगले दिन अखबार ने सब कुछ समझा दिया.
कौन जानता था कि ऐसा भी खौफनाक मंजर आएगा
लॉकडाउन में जिंदगी जैसे ठहर सी गई. शुरु में दो-चार दिन तो सब सामान्य सा लगा, लेकिन दहशत का ऐसा मंजर आएगा यह शायद किसी ने नहीं सोचा था. कौन जानता था कि खून के रिश्ते इस कदर टूट जाएंगे. जिन बच्चों को मां-बाप ने जतन से पाला था, उन्हीं की मौत के बाद बच्चे शव को लेने तक नहीं गए. ऐसे में दूसरी तस्वीरें भी सामने आई. फ्रंट लाइनर्स ने ही अंतिम संस्कार का जिम्मा उठाया. एक के बाद एक हादसे हुए, जिसकी कल्पना शायद ही किसी ने की हो. न जाने हमने कितने लोगों को खो दिया. कहते हैं कि वक्त हर जख्म का मरहम है. लेकिन, कोरोना ने हमें ऐसा जख्म दिया जिसका मरहम वक्त के पास भी नहीं. तकलीफ इस बात की है कि कोरोना आज भी उसी रफ्तार से फैल रहा है. वैक्सीन तो आ गई लेकिन इसका खात्मा कब तक होगा, कोई नहीं जानता.
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31 मार्च को आया था पहला केस, छावनी में तब्दील हो गया था रांची का हिंदपीढ़ी
झारखंड में कोरोना का पहला केस 31 मार्च को सामने आया था. रांची के हिंदपीढ़ी में रहने वाली युवती 17 मार्च को मलेशिया से लौटी थी. हिंदपीढ़ी रांची का मुस्लिम बहुल इलाका है. यह खबर आते ही प्रशासन के हाथ-पांव फूल गए. युवती को तुरंत रिम्स में भर्ती कराया गया. पूरा एरिया सील कर दिया गया. हालात ऐसे हो गए थे कि स्थिति कंट्रोल करने के लिए सीआरपीएफ को बुलाना पड़ा. यह तो बस शुरुआत थी. फिर एक के बाद एक केस मिलते गए. 9 अप्रैल को बोकारो में कोरोना से बुजुर्ग की मौत हो गई. मौत के 15 मिनट पहले ही बुजुर्ग की रिपोर्ट पॉजिटिव आई थी. यह झारखंड में कोरोना से मौत का पहला मामला था.
झारखंड में 1 हजार से ज्यादा जिंदगी को लील चुका है कोरोना
कोरोना ने झारखंड में ऐसा पांव पसारा कि अब तक एक हजार से ज्यादा जिंदगी काल के गाल में समा चुकी है. अब तक कुल 1095 लोगों की जान कोरोना से जा चुकी है. इसमें सबसे ज्यादा मामला जमशेदपुर और रांची का है. अब तक करीब 58 लाख टेस्ट हो चुके हैं. जिसमें 1,21,178 केस पॉजिटिव आ चुके हैं. अच्छी बात यह है कि 1,19,361 लोग इससे ठीक हो चुके हैं. हालांकि, चिंता की बात यह है कि फरवरी के आखिरी सप्ताह तक जो एक्टिव केस 500 से नीचे आ गया था वह अब 750 से ऊपर चला गया है. हर दिन इसमें इजाफा हो रहा है.
15 दिनों में खत्म हो गया पूरा परिवार
कोरोना ने हमें दर्द का ऐसा मंजर दिया जिससे उबरने में पता नहीं कितना वक्त लगे. पिछले एक साल में हमने देखा कि कोरोना ने हजारों-लाखों परिवारों को तबाह कर दिया. इसी में एक घटना धनबाद की. जहां दिल्ली में अपने बेटे के घर शादी समारोह में शामिल हो कर लौटी 88 साल की एक महिला की तबीयत खराब हुई, इलाज के दौरान मौत हो गई. दाह संस्कार के बाद पता चला कि वो कोरोना पॉजिटिव थी. 4 जुलाई को महिला ने दम तोड़ा था. महज 15 दिनों के अंदर महिला के पांच बेटों की कोरोना से मौत हो गई.
मुंबई से स्कूटी चलाकर घर पहुंची सोनिया
कोरोना में ऐसी कई तस्वीरें सामने आई जब लोग पैदल ही घरों के लिए निकल पड़े और हजारों किलोमीटर का सफर तय कर घर पहुंचे. कोई बाइक को कोई ऑटो से भी घर को निकला. ऐसा ही एक मामला जमशेदपुर का था. जमशेदपुर की रहने वाली सोनिया मुंबई में काम करती थी. मुख्यमंत्री से लेकर कई लोगों से संपर्क साधा और घर वापस लाने की गुहार लगाई. जब हर तरफ से निराशा हाथ लगी तब अकेले स्कूटी से सफर शुरू किया और 1800 किलोमीटर स्कूटी चलाकर घर पहुंची.
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माननीयों पर भी टूटा कोरोना का कहर
कोरोना ऐसा कहर बनकर टूटा कि विधायक और मंत्री तक इसकी चपेट में आ गए. झारखंड सरकार में मंत्री मिथिलेश ठाकुर, बन्ना गुप्ता, बादल पत्रलेख रामेश्वर उरांव, जगरनाथ महतो, झामुमो अध्यक्ष शिबू सोरेन, आजसू सुप्रीमो सुदेश महतो, पूर्व मुख्यमंत्री बाबूलाल मरांडी और भाजपा प्रदेश अध्यक्ष को भी कोरोना हुआ. मंत्री हाजी हुसैन अंसारी भी कोरोना की चपेट में आए और इससे उबरने के महज चंद दिनों बाद उनकी मौत हो गई. सुदेश महतो तो दो बार कोरोना की चपेट में आए. शिक्षा मंत्री जगरनाथ महतो को कोरोना ने ऐसा जकड़ा कि एयर एंबुलेंस से इलाज के लिए चेन्नई ले जाया गया. लंग्स ट्रांसप्लांट के बाद अब वे ठीक हैं.
चाईबासा डीडीसी ने बनाया कोविड बूथ
कोरोना जांच के लिए सैंपल लेने के दौरान स्वास्थ्यकर्मी की इसकी चपेट में आ रहे थे. तब चाईबासा के डीडीसी आदित्य रंजन ने शोध कर एक ऐसा बूथ बनाया जिससे स्वास्थ्य कर्मियों के कोरोना की चपेट में आने का खतरा कम था. उन्होंने एक ऐसा कलेक्शन बूथ बनाया जो चारों तरफ कांच से घेरा गया था. अंदर स्वास्थ्य कर्मी बैठकर बाहर खड़े संदिग्ध का सैंपल लेते थे. इसकी एक और खासियत यह भी थी कि इसे गाड़ी में लेकर कहीं भी जा सकते थे.
लेह से हवाई जहाज से वापस लाए गए थे मजदूर
लॉकडाउन लगने के बाद जो जहां था वहीं ठहर गया था. एक तरफ हालात बेकाबू होते जा रहे थे, वहीं देश के दूसरे राज्यों में फंसे लोग वापस अपने राज्य लौटने को बेताब थे. इसमें ज्यादातर संख्या मजदूरों की थी. सरकार ने श्रमिक ट्रेन चलाने का फैसला किया. पहली श्रमिक ट्रेन हैदराबाद से रांची पहुंची. हेमंत सरकार ने झारखंड होकर बिहार और पश्चिम बंगाल जाने वाले मजदूरों के लिए हर चीज का प्रबंध किया ताकि उन्हें कोई तकलीफ न हो. उस दौरान लेह में फंसे झारखंड के मजदूरों ने हेमंत सरकार ने उन्हें वापस लाने की गुहार लगाई. हेमंत सरकार ने तुरंत तत्परता दिखाते हुए उन्हें हवाई जहाज से वापस लाने का फैसला किया. 60 मजदूर हवाई जहाज से वापस लाए गए.
7 लाख लोग झारखंड लौटे
झारखंड सरकार का दावा है कि लॉकडाउन के दौरान देश के दूसरे राज्यों से 7 लाख लोग वापस लौटे. इसमें ज्यादातर श्रमिक थे. श्रमिकों के लौटने के बाद कोरोना केस में इजाफा हुआ लेकिन झारखंड सरकार के कड़े फैसले के कारण यह कंट्रोल में रहा. धीरे-धीरे जब हालात पर काबू पाया जाने लगा और राज्य में रोजगार नहीं मिला तो मजदूर वापस लौटने लगे. विपक्ष इस पर मुद्दे को लेकर सरकार पर हमलावर रहा. हालांकि, सरकार कल भी यही दलील देती थी और आज भी यही देती है कि हम किसी को कमाने के लिए बाहर जाने से नहीं रोक सकते. जिसे जहां बेहतर मौका मिलेगा, वहां जाएगा.
जब लोगों ने आपदा को अवसर में बदला
एक तरफ कोरोना पूरे देश में पैर पसार चुका था और तभी प्रधानमंत्री देशवासियों के नाम एक संबोधन देते हैं और कहते हैं कि इस आपदा को अवसर में बदलना है. इस मिशन में झारखंड के भी कई लोग आगे आए. किसी ने फूलों की खेती शुरू की तो किसी ने ऑर्गेनिक सब्जियों की. किसी ने कम खर्च में इम्यूनिटी बूस्टर बनाने का काम शुरू किया. झारखंड सरकार ने स्वयं सहायता समूह के स्तर पर अचार और अन्य खाने-पीने की वस्तुएं बनाने वाली महिलाओं की मदद की. उनके प्रोडक्ट को पलाश ब्रांड दिया और ऑर्गेनाइज करने की कोशिश की. महिलाओं ने लोन लेकर छोटे-छोटे कारोबार शुरू किया. एक साल में वक्त जिस तरह गुजरा उसे हम याद नहीं करना चाहते. लेकिन, कोरोना के चलते एक के बाद एक हुई कई घटना हमें यह सबक जरूर देती है कि नहीं संभले तो जान पर आफत आनी तय है.