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1932 Khatian Dispute: हेमंत ने स्थानीयता के नाम पर गिरायी थी अर्जुन मुंडा सरकार! फिर झारखंडियों को कर रहे गुमराह, क्या है मामला - 1932 खतियान विवाद

झारखंड में स्थानीय नीति पर पिछले 22 सालों से राजनीति बदस्तूर जारी है. इसे लेकर सड़क से सदन तक आंदोलन देखने को मिलता रहा है. इन 22 सालों में राजनेता जनता को गुमराह कर अपनी राजनीतिक रोटी सेकते रहे हैं. इस मुद्दे को लेकर राज्य में सरकार भी गिर चुकी है.

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Published : Jan 31, 2023, 7:42 PM IST

रांची: राज्य गठन के बाद से झारखंड के साथ 'स्थानीयता' नाम का शब्द इस कदर चिपक गया है कि पीछा ही नहीं छोड़ रहा. एकदम फेविकॉल के अटूट जोड़ के माफिक. सभी दल इसकी वकालत करते हैं. लेकिन जब भी स्थानीयता की बात होती है तो सिर्फ विवाद सामने आता है. ताजा विवाद राजभवन के रूख के बाद सामने आया है. राजभवन ने 1932 के खतियान पर आधारित "झारखंड के स्थानीय व्यक्तियों की परिभाषा और परिणामी सामाजिक, सांस्कृतिक और अन्य लाभों को ऐसे स्थानीय व्यक्तियों तक विस्तारित करने के लिए विधेयक, 2022 में कई खामियां गिनाते हुए सरकार को लौटा दिया है. क्योंकि इसके साथ नियोजन शब्द को भी जोड़ा गया है. जिसे तय करने का अधिकार सिर्फ संसद को है.

ये भी पढ़ें- Explainer Jharkhand Domicile Policy: स्थानीयता की आग में कब तक झुलसेगा झारखंड, डोमिसाइल को लेकर 22 वर्षों में राज्य ने क्या कुछ देखा, जानें सब कुछ

राज्यपाल की ओर से बिल वापस होने के बाद अब इसपर बहस छिड़ गई है. सरायकेला में 30 जनवरी को मुख्यमंत्री खुले मंच से बोल चुके हैं कि " राज्यपाल जो चाहेंगे, वह नहीं होगा, राज्य सरकार जो चाहेगी, वही होगा, संविधान की धज्जियां उड़ने नहीं देंगे". हालाकि 31 जनवरी को जमशेदपुर में मुख्यमंत्री इस मसले पर नरम दिखे. उन्होंने कहा कि वह राज्यपाल की सभी आशंकाओं को दूर करेंगे.

हेमंत ने क्यों गिरायी थी अर्जुन मुंडा सरकार- बाबूलाल: इधर, प्रदेश भाजपा विधायक दल के नेता बाबूलाल मरांडी ने सीएम हेमंत सोरेन पर निशाना साधा है. उन्होंने कहा कि फेंका-फेंकी की राजनीति नहीं चलेगी. उन्होंने कहा कि झामुमो के समर्थन से 11 सितम्बर 2010 को अर्जुन मुंडा तीसरी बार झारखंड के मुख्यमंत्री बने थे. लेकिन 18 जनवरी 2013 आते-आते उनकी सरकार को हेमंत सोरेन ने गिरा दिया था. 10 जनवरी 2013 को झामुमो की तरफ से तत्कालीन मुख्यमंत्री अर्जुन मुंडा को एक मांग पत्र दिया गया था. जिसमें स्थानीयता और विस्थापन का मुद्दा टॉप पर था. इससे पहले उस सरकार में उप मुख्यमंत्री रहे हेमंत सोरेन ने 25 दिसंबर 2012 को समर्थन वापसी की धमकी दी थी. हालाकि 28-28 माह के पावर शेयरिंग की बात कहकर समर्थन वापस ले लिया गया था. फिर 18 जनवरी 2013 से 13 जुलाई 2013 तक राष्ट्रपति शासन लगा रहा. इसी बीच 13 जुलाई 2013 को कांग्रेस के समर्थन से हेमंत सोरेन मुख्यमंत्री बन गये. वह 23 दिसंबर 2014 तक मुख्यमंत्री रहे.

ये भी पढ़ें- Jharkhand Recruitment Policy Row: झारखंड में नियोजन नीति पर घमासान जारी, अधर में हजारों नियुक्तियां

बाबूलाल मरांडी का कहना है कि हेमंत सोरेन जब मुख्यमंत्री बने थे, उस वक्त केंद्र में भी यूपीए की सरकार थी. अगर हेमंत सोरेन स्थानीयता के नाम पर राजनीति नहीं कर रह हैं तो फिर उस समय 9वीं अनुसूची की याद क्यों नहीं आई उन्होंने यह काम क्यों नहीं किया. बाबूलाल मरांडी का आरोप है कि हेमंत सोरेन एक साजिश के तहत स्थानीयता की आड़ में राजनीतिक रोटी सेंक रहे हैं. वह लोगों को गुमराह कर रहे हैं. बाबूलाल मरांडी ने कहा कि भाजपा ने 1932 का कभी विरोध नहीं किया. लेकिन वर्तमान सरकार आज दूसरे के कंधे पर बंदूक रखकर क्यों गोली चला रही है.

झामुमो नेता सुप्रियो भट्टाचार्य ने दी सफाई: झामुमो नेता सुप्रियो भट्टाचार्य ने बाबूलाल मरांडी की दलील पर प्रतिक्रिया दी है. उन्होंने ईटीवी भारत को फोन पर बताया कि साल 2013 में जब भाजपा से अलग होकर हेमंत सोरेन के नेतृत्व में सरकार बनी थी, तब परिस्थितियां अलग थीं. एक अच्छा खासा समय मोडल कोड ऑफ कंडक्ट में निकल गया. करीब एक साल तक काम करने का मौका मिला. तब तमाम प्राथमिकताओं पर फोकस किया गया. उस समय भी स्थानीयता को लेकर पहल की गई थी लेकिन पूर्ण बहुमत की सरकार नहीं होने के कारण अचड़न आ रही थी. उसी का खामियाजा विधानसभा चुनाव में भुगतना पड़ा. इसी वजह से अपने कमिटमेंट को दोहराते हुए सत्ता में आते ही स्थानीयता को लेकर पहल की गई है.

सबसे खास बात है कि स्थानीयता के मसले पर भाजपा और झामुमो आमने-सामने है. दोनों एक दूसरे को घेर रहे हैं. इस बीच राजभवन की एंट्री होने से मामला दिलचस्प बन गया है. लेकिन पूरे मामले में कांग्रेस के सभी सीनियर नेता चुप्पी साधे बैठे हैं. अब देखना है कि मुख्यमंत्री राजभवन के आशंकाओं को दूर कर पाते हैं या नहीं.

रांची: राज्य गठन के बाद से झारखंड के साथ 'स्थानीयता' नाम का शब्द इस कदर चिपक गया है कि पीछा ही नहीं छोड़ रहा. एकदम फेविकॉल के अटूट जोड़ के माफिक. सभी दल इसकी वकालत करते हैं. लेकिन जब भी स्थानीयता की बात होती है तो सिर्फ विवाद सामने आता है. ताजा विवाद राजभवन के रूख के बाद सामने आया है. राजभवन ने 1932 के खतियान पर आधारित "झारखंड के स्थानीय व्यक्तियों की परिभाषा और परिणामी सामाजिक, सांस्कृतिक और अन्य लाभों को ऐसे स्थानीय व्यक्तियों तक विस्तारित करने के लिए विधेयक, 2022 में कई खामियां गिनाते हुए सरकार को लौटा दिया है. क्योंकि इसके साथ नियोजन शब्द को भी जोड़ा गया है. जिसे तय करने का अधिकार सिर्फ संसद को है.

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राज्यपाल की ओर से बिल वापस होने के बाद अब इसपर बहस छिड़ गई है. सरायकेला में 30 जनवरी को मुख्यमंत्री खुले मंच से बोल चुके हैं कि " राज्यपाल जो चाहेंगे, वह नहीं होगा, राज्य सरकार जो चाहेगी, वही होगा, संविधान की धज्जियां उड़ने नहीं देंगे". हालाकि 31 जनवरी को जमशेदपुर में मुख्यमंत्री इस मसले पर नरम दिखे. उन्होंने कहा कि वह राज्यपाल की सभी आशंकाओं को दूर करेंगे.

हेमंत ने क्यों गिरायी थी अर्जुन मुंडा सरकार- बाबूलाल: इधर, प्रदेश भाजपा विधायक दल के नेता बाबूलाल मरांडी ने सीएम हेमंत सोरेन पर निशाना साधा है. उन्होंने कहा कि फेंका-फेंकी की राजनीति नहीं चलेगी. उन्होंने कहा कि झामुमो के समर्थन से 11 सितम्बर 2010 को अर्जुन मुंडा तीसरी बार झारखंड के मुख्यमंत्री बने थे. लेकिन 18 जनवरी 2013 आते-आते उनकी सरकार को हेमंत सोरेन ने गिरा दिया था. 10 जनवरी 2013 को झामुमो की तरफ से तत्कालीन मुख्यमंत्री अर्जुन मुंडा को एक मांग पत्र दिया गया था. जिसमें स्थानीयता और विस्थापन का मुद्दा टॉप पर था. इससे पहले उस सरकार में उप मुख्यमंत्री रहे हेमंत सोरेन ने 25 दिसंबर 2012 को समर्थन वापसी की धमकी दी थी. हालाकि 28-28 माह के पावर शेयरिंग की बात कहकर समर्थन वापस ले लिया गया था. फिर 18 जनवरी 2013 से 13 जुलाई 2013 तक राष्ट्रपति शासन लगा रहा. इसी बीच 13 जुलाई 2013 को कांग्रेस के समर्थन से हेमंत सोरेन मुख्यमंत्री बन गये. वह 23 दिसंबर 2014 तक मुख्यमंत्री रहे.

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बाबूलाल मरांडी का कहना है कि हेमंत सोरेन जब मुख्यमंत्री बने थे, उस वक्त केंद्र में भी यूपीए की सरकार थी. अगर हेमंत सोरेन स्थानीयता के नाम पर राजनीति नहीं कर रह हैं तो फिर उस समय 9वीं अनुसूची की याद क्यों नहीं आई उन्होंने यह काम क्यों नहीं किया. बाबूलाल मरांडी का आरोप है कि हेमंत सोरेन एक साजिश के तहत स्थानीयता की आड़ में राजनीतिक रोटी सेंक रहे हैं. वह लोगों को गुमराह कर रहे हैं. बाबूलाल मरांडी ने कहा कि भाजपा ने 1932 का कभी विरोध नहीं किया. लेकिन वर्तमान सरकार आज दूसरे के कंधे पर बंदूक रखकर क्यों गोली चला रही है.

झामुमो नेता सुप्रियो भट्टाचार्य ने दी सफाई: झामुमो नेता सुप्रियो भट्टाचार्य ने बाबूलाल मरांडी की दलील पर प्रतिक्रिया दी है. उन्होंने ईटीवी भारत को फोन पर बताया कि साल 2013 में जब भाजपा से अलग होकर हेमंत सोरेन के नेतृत्व में सरकार बनी थी, तब परिस्थितियां अलग थीं. एक अच्छा खासा समय मोडल कोड ऑफ कंडक्ट में निकल गया. करीब एक साल तक काम करने का मौका मिला. तब तमाम प्राथमिकताओं पर फोकस किया गया. उस समय भी स्थानीयता को लेकर पहल की गई थी लेकिन पूर्ण बहुमत की सरकार नहीं होने के कारण अचड़न आ रही थी. उसी का खामियाजा विधानसभा चुनाव में भुगतना पड़ा. इसी वजह से अपने कमिटमेंट को दोहराते हुए सत्ता में आते ही स्थानीयता को लेकर पहल की गई है.

सबसे खास बात है कि स्थानीयता के मसले पर भाजपा और झामुमो आमने-सामने है. दोनों एक दूसरे को घेर रहे हैं. इस बीच राजभवन की एंट्री होने से मामला दिलचस्प बन गया है. लेकिन पूरे मामले में कांग्रेस के सभी सीनियर नेता चुप्पी साधे बैठे हैं. अब देखना है कि मुख्यमंत्री राजभवन के आशंकाओं को दूर कर पाते हैं या नहीं.

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