रांची: राज्य में आदिवासी दिवस को लेकर उत्साह चरम पर है. बुधवार 9 अगस्त को मनाए जाने वाले अंतरराष्ट्रीय आदिवासी दिवस के पूर्व मंगलवार को रांची विश्वविद्यालय के द्वारा मोरहाबादी दीक्षांत मंडप में रंगारंग कार्यक्रम आयोजित किया गया. दिनभर चले इस कार्यक्रम में राज्यपाल सीपी राधाकृष्णन, पद्मश्री मधु मंसूरी, पद्मश्री अशोक भगत, पद्मश्री जमुना देवी सहित कई गणमान्य लोगों ने शिरकत की.
इस मौके पर आदिवासी सभ्यता संस्कृति को दर्शाता मनोहारी नृत्य प्रस्तुत की गई जिसे काफी सराहा गया. राज्यपाल सीपी राधाकृष्णन ने उद्घाटन सत्र में भाग लेते हुए आदिवासियों की प्राचीन सभ्यता संस्कृति की जमकर सराहना की. उन्होंने कहा कि इस दिवस को मनाए जाने का मूल मकसद समाज के विभिन्न क्षेत्रों में उनके योगदान से अवगत होते हुए इसे बढ़ावा देने के लिए प्रोत्साहित करना है, साथ ही उनकी अनूठी जीवनशैली और इस भूमि से उनके प्रगाढ़ संबंध से भावी पीढ़ियों को अवगत कराना है. इतिहास में उनके द्वारा विभिन्न अधिकारों और मातृभूमि के लिए किए गए संघर्ष और त्याग और अविस्मरणीय है.
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माननीय राज्यपाल श्री सी०पी० राधाकृष्णन ने 'विश्व आदिवासी दिवस' के उपलक्ष्य पर आज राँची विश्वविद्यालय द्वारा स्वर्ण जयंती दीक्षांत मंडप, मोरहाबादी में आयोजित समारोह में भाग लिया। #WorldTribalDay #WorldsIndigenousPeoples#RanchiUniversity pic.twitter.com/Q8ScgGTYdB
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अपने संबोधन में राज्यपाल ने कहा कि झारखंड वीरों की भूमि है. इस राज्य में धरती आबा बिरसा मुंडा, वीर बुधु भगत, सिद्धो कान्हु, चांद भैरव, फूलो-झान्हो, जतरा भगत, दिवा किशुन समेत अनेक महान विभूति हुए हैं. जिन्होंने देश एवं समाज के लिए अपना सर्वस्व न्यौछावर कर दिया. इनका जन्म जनजाति कुल में ही हुआ. मैं इस अवसर पर महान सपूतों के साथ अन्य सभी विभूतियों को नमन करता हूं जिन्होंने मातृभूमि के लिए संघर्ष किया तथा अपना सर्वस्व न्यौछावर कर दिया.
राज्यपाल ने चखा जनजातियों का व्यंजन: कार्यक्रम के दौरान राज्यपाल सीपी राधाकृष्णन ने आदिवासी सभ्यता संस्कृति से जुड़ी लगाई गई प्रदर्शनी का उद्घाटन करते हुए सभी स्टॉलों का भ्रमण किया. स्टॉल पर लगे आदिवासियों के पारंपरिक आभूषण, कपड़े और खाद्य सामग्री से राज्यपाल खासा प्रभावित हुए. इस मौके पर जनजातियों के पारंपरिक खाद्य वस्तुओं को भी राज्यपाल ने चखा और इसकी सराहना की.
कार्यक्रम में आए पद्मश्री जमुना देवी और पद्मश्री मधु मंसूरी ने इस तरह के आयोजन की सराहना करते हुए कहा कि इससे आदिवासियों की सभ्यता और संस्कृति को आने वाली पीढ़ियों को अवगत कराने की कोशिश की जाती है और यह जीवंत रहता है. पद्मश्री मधु मंसूरी ने कहा कि वर्तमान समय में जरूरत इस बात की है कि खेत और जंगल को कैसे बचा कर रखा जाए, इस पर भी हमें चिंता करनी होगी क्योंकि यह दोनों चीजें आदिवासियों की संस्कृति से जुड़ी हुई है.