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मेयर के अधिकार को कम करने के सरकार के आदेश को हाई कोर्ट में चुनौती, रद्द करने की मांग

झारखंड हाई कोर्ट में मेयर के अधिकारों को कम करने वाले आदेश को चुनौती दी गई है. चुनौती देने वाली याचिका में कहा गया है कि झारखंड सरकार का यह आदेश नगर निगम अधिनियम के विपरीत है.

Jharkhand High Court
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Published : Nov 3, 2021, 5:32 PM IST

Updated : Nov 3, 2021, 6:56 PM IST

रांची: राज्य के विभिन्न नगर निगम के मेयरों के अधिकार को कम करने संबंधी झारखंड सरकार के आदेश को झारखंड हाई कोर्ट में चुनौती दी गई है. याचिकाकर्ता संजय कुमार ने जनहित याचिका दायर की है. प्रार्थी का कहना है कि झारखंड सरकार का यह आदेश नगर निगम अधिनियम के विपरीत है. इसलिए इस आदेश को रद्द किया जाए.

ये भी पढ़ें- अब राज्य सरकार मेयर को कर सकती है पदमुक्त, बैठक बुलाने और एजेंडा तय करने का अधिकार भी खत्म

याचिकाकर्ता के अधिवक्ता ने बताया कि झारखंड सरकार ने महाधिवक्ता के मंतव्य को आधार बनाकर राज्य के विभिन्न नगर निगम के मेयर के अधिकारों में कटौती करने का आदेश दिया है. यह गलत है. उन्होंने महाधिवक्ता पर आरोप लगाया है कि महाधिवक्ता द्वारा दिया गया यह मंतव्य ही गलत है. महाधिवक्ता ने जो मंतव्य दिया है, वह अधिनियम के विपरीत है. उन्होंने नगरपालिका अधिनियम एवं संवैधानिक प्रावधानों की गलत व्याख्या की है. जिसकी वजह से मेयर के अधिकार को काफी सीमित कर दिया गया है.

महाधिवक्ता के दिए गए मंतव्य इस प्रकार हैं.

  • नगरपालिका अधिनियम के मुताबिक नगर निकायों में आयोजित होने वाली पार्षदों की बैठक बुलाने का अधिकार केवल नगर आयुक्त, कार्यपालक पदाधिकारी और विशेष पदाधिकारी को है.
  • नगरपालिका अधिनियम के अनुसार पार्षदों के साथ बुलाई गई किसी भी बैठक के लिए एजेंडा तैयार करने का अधिकार भी नगर आयुक्त, कार्यपालक पदाधिकारी को ही है.
  • बैठक के एजेंडा और कार्रवाई में मेयर और अध्यक्ष की कोई भूमिका नहीं है.
  • आपातकालीन कार्य को छोड़ किसी भी परीस्थिति में मेयर और अध्यक्ष को अधिकार नहीं है कि वो एजेंडा में कोई बदलाव लाएं.
  • बैठक के बाद अध्यक्ष और मेयर को स्वतंत्र निर्णय का कोई अधिकार नहीं है. बैठक की कार्रवाई बहुमत के आधार पर तय होगी.
  • मेयर और अध्यक्ष को ये अधिकार नहीं है कि वो किसी भी अधिकारी और कर्मचारी को कारण बताओ नोटिस जारी करें.
  • मेयर और अध्यक्ष को यह अधिकार नहीं है कि वो किसी भी विभाग या कोषांग के द्वारा किए जा रहे कार्यों की समीक्षा करें.
  • किसी भी बैठक में अगर मेयर उपस्थित नहीं हैं तो डिप्टी मेयर कार्रवाई पर हस्ताक्षर करेंगे. अगर दोनों अनुपस्थित हैं तो पार्षदों द्वारा चयनित प्रोजाइडिंग ऑफिसर हस्ताक्षर करेंगे.

नई व्यवस्था में नगर निगम में होने वाली एजेंडा और बैठक की तिथियों को निर्धारित करने का अधिकार अब मेयर से हटाकर नगर आयुक्त को दे दिया गया है. मेयर जनता के द्वारा चुनाव के माध्यम से चुना गया जनप्रतिनिधि है. शहरी क्षेत्र की जनता अपने प्रतिनिधि का चुनाव करता है. ऐसे में इनका अधिकार कम किया जाना उचित नहीं है. इसीलिए सरकार के इस आदेश निरस्त कर दिया जाए.

मोहम्मद शाकिर बने झारखंड हाई कोर्ट के रजिस्ट्रार जनरल

झारखंड हाई कोर्ट में खाली चल रहे रजिस्टार जनरल के पद पर नियुक्ति कर दी गई है. मोहम्मद शाकिर को नए रजिस्ट्रार जनरल नियुक्त किया गया है. झारखंड हाई कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश डॉ रवि रंजन के आदेश के आलोक में हाई कोर्ट के प्रभारी रजिस्टर जनरल ने पत्र जारी किया है. मोहम्मद शाकिर झारखंड हाई कोर्ट के नए रजिस्टार जनरल बनाए गए हैं. इससे पूर्व यह झालसा के सदस्य सचिव थे. पूर्व के रजिस्टार जनरल अंबुज नाथ थे. उनका प्रमोशन हो गया है. अब वह झारखंड हाई कोर्ट के न्यायाधीश बनाए गए है. उसके बाद से यह पद रिक्त चल रहा था.

रांची: राज्य के विभिन्न नगर निगम के मेयरों के अधिकार को कम करने संबंधी झारखंड सरकार के आदेश को झारखंड हाई कोर्ट में चुनौती दी गई है. याचिकाकर्ता संजय कुमार ने जनहित याचिका दायर की है. प्रार्थी का कहना है कि झारखंड सरकार का यह आदेश नगर निगम अधिनियम के विपरीत है. इसलिए इस आदेश को रद्द किया जाए.

ये भी पढ़ें- अब राज्य सरकार मेयर को कर सकती है पदमुक्त, बैठक बुलाने और एजेंडा तय करने का अधिकार भी खत्म

याचिकाकर्ता के अधिवक्ता ने बताया कि झारखंड सरकार ने महाधिवक्ता के मंतव्य को आधार बनाकर राज्य के विभिन्न नगर निगम के मेयर के अधिकारों में कटौती करने का आदेश दिया है. यह गलत है. उन्होंने महाधिवक्ता पर आरोप लगाया है कि महाधिवक्ता द्वारा दिया गया यह मंतव्य ही गलत है. महाधिवक्ता ने जो मंतव्य दिया है, वह अधिनियम के विपरीत है. उन्होंने नगरपालिका अधिनियम एवं संवैधानिक प्रावधानों की गलत व्याख्या की है. जिसकी वजह से मेयर के अधिकार को काफी सीमित कर दिया गया है.

महाधिवक्ता के दिए गए मंतव्य इस प्रकार हैं.

  • नगरपालिका अधिनियम के मुताबिक नगर निकायों में आयोजित होने वाली पार्षदों की बैठक बुलाने का अधिकार केवल नगर आयुक्त, कार्यपालक पदाधिकारी और विशेष पदाधिकारी को है.
  • नगरपालिका अधिनियम के अनुसार पार्षदों के साथ बुलाई गई किसी भी बैठक के लिए एजेंडा तैयार करने का अधिकार भी नगर आयुक्त, कार्यपालक पदाधिकारी को ही है.
  • बैठक के एजेंडा और कार्रवाई में मेयर और अध्यक्ष की कोई भूमिका नहीं है.
  • आपातकालीन कार्य को छोड़ किसी भी परीस्थिति में मेयर और अध्यक्ष को अधिकार नहीं है कि वो एजेंडा में कोई बदलाव लाएं.
  • बैठक के बाद अध्यक्ष और मेयर को स्वतंत्र निर्णय का कोई अधिकार नहीं है. बैठक की कार्रवाई बहुमत के आधार पर तय होगी.
  • मेयर और अध्यक्ष को ये अधिकार नहीं है कि वो किसी भी अधिकारी और कर्मचारी को कारण बताओ नोटिस जारी करें.
  • मेयर और अध्यक्ष को यह अधिकार नहीं है कि वो किसी भी विभाग या कोषांग के द्वारा किए जा रहे कार्यों की समीक्षा करें.
  • किसी भी बैठक में अगर मेयर उपस्थित नहीं हैं तो डिप्टी मेयर कार्रवाई पर हस्ताक्षर करेंगे. अगर दोनों अनुपस्थित हैं तो पार्षदों द्वारा चयनित प्रोजाइडिंग ऑफिसर हस्ताक्षर करेंगे.

नई व्यवस्था में नगर निगम में होने वाली एजेंडा और बैठक की तिथियों को निर्धारित करने का अधिकार अब मेयर से हटाकर नगर आयुक्त को दे दिया गया है. मेयर जनता के द्वारा चुनाव के माध्यम से चुना गया जनप्रतिनिधि है. शहरी क्षेत्र की जनता अपने प्रतिनिधि का चुनाव करता है. ऐसे में इनका अधिकार कम किया जाना उचित नहीं है. इसीलिए सरकार के इस आदेश निरस्त कर दिया जाए.

मोहम्मद शाकिर बने झारखंड हाई कोर्ट के रजिस्ट्रार जनरल

झारखंड हाई कोर्ट में खाली चल रहे रजिस्टार जनरल के पद पर नियुक्ति कर दी गई है. मोहम्मद शाकिर को नए रजिस्ट्रार जनरल नियुक्त किया गया है. झारखंड हाई कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश डॉ रवि रंजन के आदेश के आलोक में हाई कोर्ट के प्रभारी रजिस्टर जनरल ने पत्र जारी किया है. मोहम्मद शाकिर झारखंड हाई कोर्ट के नए रजिस्टार जनरल बनाए गए हैं. इससे पूर्व यह झालसा के सदस्य सचिव थे. पूर्व के रजिस्टार जनरल अंबुज नाथ थे. उनका प्रमोशन हो गया है. अब वह झारखंड हाई कोर्ट के न्यायाधीश बनाए गए है. उसके बाद से यह पद रिक्त चल रहा था.

Last Updated : Nov 3, 2021, 6:56 PM IST
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