रांची: राज्य सरकार ने कई अहम फैसले लिए हैं. इसी कड़ी में राज्य के सभी सरकारी स्कूल में पढ़ने वाले जनरल कैटेगरी के छात्रों को भी अब साइकिल देने का निर्णय लिया गया है. वहीं नौवीं और दसवीं के विद्यार्थियों को प्रतिवर्ष निशुल्क पाठ्य पुस्तक भी बांटे जाएंगे. इससे पहले नौवीं और दसवीं के विद्यार्थियों को निशुल्क पुस्तक सरकारी विद्यालयों में नहीं दिया जाता था. सरकार के इस निर्णय के बाद विद्यार्थियों और अभिभावकों ने खुशी जाहिर की है.
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राज्य के सभी कोटि के सरकारी विद्यालयों में पढ़ने वाले सामान्य कैटेगरी के छात्रों को साइकिल दिए जाएंगे. इससे पहले एसटी-एससी और ओबीसी कैटेगरी के विद्यार्थियों को निशुल्क साइकिल दिए जाते थे. इससे जनरल कैटेगरी के बच्चे वंचित रह जाते थे. हेमंत सरकार ने निर्णय लेते हुए जनरल कैटेगरी के विद्यार्थियों को भी नि:शुल्क साइकिल देने पर विचार किया है और इस पर फैसला लिया गया है.
जनरल कैटेगरी से जुड़े बच्चों के अभिभावक आर्थिक रूप से कमजोर होने के बाद भी वह इस योजना का लाभ नहीं ले पा रहे थे. लेकिन अब ऐसे बच्चे भी इस योजना से लाभान्वित होंगे. उन्हें समान रूप से सम्मान भी मिलेगा. दूसरी ओर पहली बार झारखंड में नौवीं और दसवीं में पढ़ने वाले विद्यार्थियों को मुफ्त में पुस्तक मिलेगी. इससे पहले झारखंड में पहली से आठवीं तक के बच्चों को ही निशुल्क पुस्तक दिए जाते थे.
नौवीं और दसवीं के बच्चों को नि:शुल्क पुस्तक नहीं मिल रहे थे. इससे कई परेशानियों का सामना आर्थिक रूप से कमजोर विद्यार्थियों को करना पड़ रहा था. हालांकि राज्य सरकार ने अपना निर्णय बदलते हुए अब 9वीं और 10वीं के विद्यार्थियों को प्रतिवर्ष निशुल्क पाठ्य पुस्तक दिए जाने का निर्णय लिया है. राज्य सरकार के इन दोनों निर्णय का स्वागत अभिभावकों ने किया है.
नीति में बदलाव
इनका मानना है कि जनरल कैटेगरी के बच्चों को साइकिल योजना के साथ जोड़ा जाना एक बेहतर निर्णय है. क्योंकि सरकारी स्कूलों में पढ़ने वाले वह बच्चे जनरल कैटेगरी के हों या फिर एसटी-एससी ओबीसी कैटेगरी के सभी आर्थिक रूप से कमजोर ही होते हैं. ऐसे में इस राज्य में अब तक दोहरी नीति चल रही थी. अब नीति में बदलाव हुआ है. यह एक अच्छा संकेत है. वहीं नौवीं और दसवीं के विद्यार्थियों को प्रतिवर्ष निशुल्क पाठ्य पुस्तक से वंचित रहना पड़ रहा था. अब 9वीं और 10वीं के बच्चों को भी निशुल्क पाठ्य पुस्तक मिलेगा. इससे आर्थिक रूप से कमजोर अभिभावकों पर बोझ कम होगी. वाकई में दोनों फैसले राज्य के लिए बेहतर साबित होंगे.