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सकल भारती नेता उनके भाई साथ देऊ, उनके भाई संग देऊ- राष्ट्रपति उम्मीदवार द्रौपदी मुर्मू के समर्थन में पद्मश्री मुकुंद नायक की सुरीली अपील

जनजातीय समुदाय से आने वाली सशक्त महिला द्रौपदी मुर्मू के राष्ट्रपति पद की उम्मीदवार बनने से झारखंड के आदिवासी समाज में उत्साह है. इसको लेकर आदिवासी समाज के बुद्धिजीवियों को उम्मीद है कि अब आदिवासी समाज के विकास की उम्मीद बढ़ी है. ईटीवी भारत की इस रिपोर्ट से जानिए, क्या कहतें हैं पद्मश्री मुकुंद नायक और मधु मंसूरी.

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झारखंड
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Published : Jul 3, 2022, 11:40 AM IST

रांचीः देश में सर्वोच्च संवैधानिक राष्ट्रपति के पद के लिए चुनाव होना है और एनडीए की ओर से द्रौपदी मुर्मू राष्ट्रपति उम्मीदवार बनाई गयी हैं. पहली बार देशभर के जनजातीय यानि आदिवासी समाज में उत्साह का संचार होना स्वाभाविक है. ओडिशा सरकार में मंत्री और बाद में झारखंड के राज्यपाल के रूप में अपनी प्रतिभा और प्रशासनिक नेतृत्व क्षमता का परिचय दे चुकीं द्रौपदी मुर्मू के राष्ट्रपति पद का उम्मीदवार बनने से देश और झारखंड के आम आदिवासी समुदाय का जनजीवन कितना बदल जाएगा यह एक अहम सवाल भी है. ऐसा इसलिए क्योंकि झारखंड में जनजातीय राजनीति के नाम पर शिबू सोरेन, अर्जुन मुंडा, बाबूलाल मरांडी और अब हेमंत सोरेन जैसे दर्जनों की संख्या में वैसे आदिवासी नेता हैं या हुए, जिन्होंने देश और राज्य की राजनीति में अपनी पहचान तो बनाई. लेकिन इन जनप्रतिनिधियों ने सिवाय राजनीति के कुछ नहीं किया और ना ही आदिवासी समाज के लिए व्यापक रूप से कोई बड़ा काम कर पाए.

इसे भी पढ़ें- जानिए क्या है आदिवासी समाज की सभ्यता और संस्कृति, कितनी अलग है परंपरा और पहचान

वर्ष 2000 में झारखंड अलग राज्य होने के बाद ऐसा लगा था कि झारखंड का यह समाज भी तरक्की करेगा मगर इस समाज के गिने-चुने लोगों तक ही विकास की रोशनी पहुंच पाई. आदिवासी आज भी दो वक्त की रोटी के लिए मोहताज है. राज्य से आज भी ना सिर्फ पुरुष बल्कि बड़ी संख्या में महिलाएं काम की तलाश में दूसरे राज्य जाने को मजबूर हैं. दुखद यह कि नौकरी और रोजी रोटी की तलाश में झारखंड के सुदूर इलाकों से जब झारखंड की आदिवासी बेटियां महानगरों में जाती हैं तो वह वहां मानव तस्करी का शिकार हो अमानवीय स्थितियों का सामना करती हैं.


अपनी कला और संस्कृति के माध्यम से विश्व भर में झारखंड के नाम रौशन करने वाले पद्मश्री मुकुंद नायक कहते हैं कि मुझे लगता है और बहुत चिंता का विषय है कि एक ओर हम आजादी के 75 साल होने पर अमृत महोत्सव मना रहे हैं. लेकिन आदिवासी समुदाय राज्य में और पूरे देश में कहां खड़ा है इस ओर देखने की जरूरत है. बिरसा मुंडा, सिदो कान्हो, जतरा भगत, फूलो-झानो ने अपनी शहादत दी लेकिन लगता है कि उन वीर सपूतों की शहादत बेकार चली गयी.


पद्मश्री मुकुंद नायक कहते हैं कि ऐसा लगता है कि नेताओं ने अपना फर्ज नहीं निभाया पर यह दोष सिर्फ नेताओं का नहीं बल्कि हम सबका है, हमें संगठित होना होगा, संघर्ष करना होगा. आदिवासी समाज से आने वाली द्रौपदी मुर्मू के पहली बार देश के सर्वोच्च पद के लिए NDA की ओर से उम्मीदवार बनाए जाने की खुशी में पद्मश्री मुकुंद नायक ने एक गीत लिखकर ना सिर्फ अपनी भावनाएं प्रकट की हैं बल्कि सभी से उनके समर्थन की अपील भी करते हैं.

पद्मश्री मुकुंद नायक

इसे भी पढ़ें- आदिवासी समाज का गौरवपूर्ण इतिहासः धान-धातु के परिचय कराने से लेकर स्वाधीनता संग्राम तक में है अहम योगदान


वहीं झारखंड में पलायन से लेकर जल जंगल जमीन की लड़ाई लड़ने वाले समाजसेवी पद्मश्री मधुर मंसूरी कहते हैं कि इस राज्य और देश के हित मे बहुत से लोगों ने शहादत दी पर एक सच्चाई यह है कि आजादी के बाद 75 वर्षो में सरकारी खजाने का मुंह आदिवासी कल्याण के नाम पर खुलता है. लेकिन गांव में जाकर पता चलता है कि आदिवासियों के भाग्य में क्या लिखा हुआ है. पद्मश्री मधुर मंसूरी कहते हैं कि जिन्हें हम वोट देकर नेता, विधायक और मंत्री बनाते हैं उन्हें इतनी सुविधाएं मिलती है कि जनता का दर्द उन्हें नहीं दिखता.

पद्मश्री मधु मंसूरी


पद्मश्री मधुर मंसूरी कहते हैं कि नौकरी के लिए युवा पलायन करते ही हैं. लेकिन जब हमारी बेटियों को चौका बर्तन और आजीविका के लिए पलायन करना पड़े तो दुख होता है. मधुर मंसूरी पलायन और झारखंड के जल जंगल जमीन की लड़ाई को लेकर लिखे गीत भी अपने अंदाज में गुनगुनाते हैं. डॉ. राम दयाल मुंडा जैसे शिक्षाविदों ने अपनी प्रतिभा से दुनिया में झारखंड के आदिवासी समाज के प्रकृति प्रेम, यहां की समृद्ध विरासत और जनजातीय समाज की जिंदगी जीने की जद्दोजहद से अवगत कराया तो यह एक नारा भी दिया, जे नाची से बाची. इसी तरह अलग अलग क्षेत्र में जयपाल सिंह से लेकर हॉकी खिलाड़ी असुंता लकड़ा तक जो भी नाम देश दुनिया के पटल पर पहचान बनाई उसमें उनकी अपनी प्रतिभा और मेहनत ही रहा.

रांचीः देश में सर्वोच्च संवैधानिक राष्ट्रपति के पद के लिए चुनाव होना है और एनडीए की ओर से द्रौपदी मुर्मू राष्ट्रपति उम्मीदवार बनाई गयी हैं. पहली बार देशभर के जनजातीय यानि आदिवासी समाज में उत्साह का संचार होना स्वाभाविक है. ओडिशा सरकार में मंत्री और बाद में झारखंड के राज्यपाल के रूप में अपनी प्रतिभा और प्रशासनिक नेतृत्व क्षमता का परिचय दे चुकीं द्रौपदी मुर्मू के राष्ट्रपति पद का उम्मीदवार बनने से देश और झारखंड के आम आदिवासी समुदाय का जनजीवन कितना बदल जाएगा यह एक अहम सवाल भी है. ऐसा इसलिए क्योंकि झारखंड में जनजातीय राजनीति के नाम पर शिबू सोरेन, अर्जुन मुंडा, बाबूलाल मरांडी और अब हेमंत सोरेन जैसे दर्जनों की संख्या में वैसे आदिवासी नेता हैं या हुए, जिन्होंने देश और राज्य की राजनीति में अपनी पहचान तो बनाई. लेकिन इन जनप्रतिनिधियों ने सिवाय राजनीति के कुछ नहीं किया और ना ही आदिवासी समाज के लिए व्यापक रूप से कोई बड़ा काम कर पाए.

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वर्ष 2000 में झारखंड अलग राज्य होने के बाद ऐसा लगा था कि झारखंड का यह समाज भी तरक्की करेगा मगर इस समाज के गिने-चुने लोगों तक ही विकास की रोशनी पहुंच पाई. आदिवासी आज भी दो वक्त की रोटी के लिए मोहताज है. राज्य से आज भी ना सिर्फ पुरुष बल्कि बड़ी संख्या में महिलाएं काम की तलाश में दूसरे राज्य जाने को मजबूर हैं. दुखद यह कि नौकरी और रोजी रोटी की तलाश में झारखंड के सुदूर इलाकों से जब झारखंड की आदिवासी बेटियां महानगरों में जाती हैं तो वह वहां मानव तस्करी का शिकार हो अमानवीय स्थितियों का सामना करती हैं.


अपनी कला और संस्कृति के माध्यम से विश्व भर में झारखंड के नाम रौशन करने वाले पद्मश्री मुकुंद नायक कहते हैं कि मुझे लगता है और बहुत चिंता का विषय है कि एक ओर हम आजादी के 75 साल होने पर अमृत महोत्सव मना रहे हैं. लेकिन आदिवासी समुदाय राज्य में और पूरे देश में कहां खड़ा है इस ओर देखने की जरूरत है. बिरसा मुंडा, सिदो कान्हो, जतरा भगत, फूलो-झानो ने अपनी शहादत दी लेकिन लगता है कि उन वीर सपूतों की शहादत बेकार चली गयी.


पद्मश्री मुकुंद नायक कहते हैं कि ऐसा लगता है कि नेताओं ने अपना फर्ज नहीं निभाया पर यह दोष सिर्फ नेताओं का नहीं बल्कि हम सबका है, हमें संगठित होना होगा, संघर्ष करना होगा. आदिवासी समाज से आने वाली द्रौपदी मुर्मू के पहली बार देश के सर्वोच्च पद के लिए NDA की ओर से उम्मीदवार बनाए जाने की खुशी में पद्मश्री मुकुंद नायक ने एक गीत लिखकर ना सिर्फ अपनी भावनाएं प्रकट की हैं बल्कि सभी से उनके समर्थन की अपील भी करते हैं.

पद्मश्री मुकुंद नायक

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वहीं झारखंड में पलायन से लेकर जल जंगल जमीन की लड़ाई लड़ने वाले समाजसेवी पद्मश्री मधुर मंसूरी कहते हैं कि इस राज्य और देश के हित मे बहुत से लोगों ने शहादत दी पर एक सच्चाई यह है कि आजादी के बाद 75 वर्षो में सरकारी खजाने का मुंह आदिवासी कल्याण के नाम पर खुलता है. लेकिन गांव में जाकर पता चलता है कि आदिवासियों के भाग्य में क्या लिखा हुआ है. पद्मश्री मधुर मंसूरी कहते हैं कि जिन्हें हम वोट देकर नेता, विधायक और मंत्री बनाते हैं उन्हें इतनी सुविधाएं मिलती है कि जनता का दर्द उन्हें नहीं दिखता.

पद्मश्री मधु मंसूरी


पद्मश्री मधुर मंसूरी कहते हैं कि नौकरी के लिए युवा पलायन करते ही हैं. लेकिन जब हमारी बेटियों को चौका बर्तन और आजीविका के लिए पलायन करना पड़े तो दुख होता है. मधुर मंसूरी पलायन और झारखंड के जल जंगल जमीन की लड़ाई को लेकर लिखे गीत भी अपने अंदाज में गुनगुनाते हैं. डॉ. राम दयाल मुंडा जैसे शिक्षाविदों ने अपनी प्रतिभा से दुनिया में झारखंड के आदिवासी समाज के प्रकृति प्रेम, यहां की समृद्ध विरासत और जनजातीय समाज की जिंदगी जीने की जद्दोजहद से अवगत कराया तो यह एक नारा भी दिया, जे नाची से बाची. इसी तरह अलग अलग क्षेत्र में जयपाल सिंह से लेकर हॉकी खिलाड़ी असुंता लकड़ा तक जो भी नाम देश दुनिया के पटल पर पहचान बनाई उसमें उनकी अपनी प्रतिभा और मेहनत ही रहा.

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