रांचीः मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन को चुनाव आयोग से झटका लगा है. आयोग ने ऑफिस ऑफ प्रॉफिट से जुड़े मामले की कॉपी देने से इनकार कर दिया (ECI refused to give Raj Bhawan copy to CM) है. दरअसल, मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन के वकील वैभव तोमर ने 1 सितंबर और 15 सितंबर को चुनाव आयोग को पत्र भेजा था. उन्होंने सीएम से जुड़े ऑफिस ऑफ प्रॉफिट (office of profit case) मामले में आयोग द्वारा राजभवन को भेजे गए मंतव्य की कॉपी मांगी (Election Commission turned down request of CM) थी. उसी पत्र का जवाब देते हुए आयोग ने स्पष्ट किया है कि संविधान की धारा 192 (2) के तहत यह दो संवैधानिक अथॉरिटी के बीच का मामला है. इसलिए इस मसले पर राजभवन का आदेश आने से पहले आयोग द्वारा राजभवन को भेजी गई अपने मंतव्य की कॉपी देना संविधान का उल्लंघन कहलाएगा.
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आयोग ने इसके लिए एक उदाहरण भी दिया है. डी.डी. थाइसी बनाम इलेक्शन कमीशन ऑफ इंडिया से जुड़े WPC NO.152/2021 मामले में सुप्रीम कोर्ट में पिटीशनर ने चुनाव आयोग द्वारा मणिपुर के गवर्नर को भेजे गए मंतव्य की कॉपी मुहैया कराने की मांग की थी . इस पर आयोग ने दलील दी थी कि दो संवैधानिक ऑथरिटी के बीच हुए कम्युनिकेशन का खुलासा करना संवैधानिक रूप से सही नहीं होगा. आयोग का पक्ष जानने के बाद सुप्रीम कोर्ट ने 9 दिसंबर 2021 को याचिकाकर्ता के पिटिशन को खारिज कर दिया था. आयोग ने मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन के वकील को साल 2016 के उस ऑर्डर की कॉपी भी मुहैया कराई है, जिसमें स्पष्ट उल्लेख है कि संविधान की धारा 103 (2) और 192 (2) से जुड़े मामलों की कॉपी राइट टू इनफार्मेशन एक्ट के सेक्शन 8(1))(e) और 8(1)(h) तब तक नहीं दी जा सकती, जबतक उसपर राष्ट्रपति या गवर्नर का आदेश नहीं दी सकती है. इसको लेकर 2 अगस्त 2022 को भी आयोग की तरफ एक सर्कूलर जारी हो चुका है. इस सर्कुलर की कॉपी भी सीएम हेमंत सोरेन के वकील को मुहैया करायी गयी है.
अधिवक्ता वैभव गौरव ने भाजपा बनाम हेमंत सोरेन से जुड़े केस नं. 3(G), 2022 का हवाला देते हुए 1 सितंबर को चुनाव आयोग को पत्र भेजा था. पत्र में उन्होंने जिक्र किया था कि आयोग को नोटिस पर 8 अगस्त और 12 अगस्त को दलील पेश की गई थी. इसके बाद आयोग ने 12 अगस्त को फैसला सुरक्षित रख लिया था. इसके बाद 18 अगस्त को लिखित में पक्ष रखा गया था. हेमंत सोरेन के वकील ने अपने पत्र में लिखा था कि उन्हें मीडिया रिपोर्ट से जानकारी मिली है कि आयोग ने इस मामले पर अपने मंतव्य राजभवन को प्रेषित कर दिया है. उन्होंने रिप्रजेंटेशन ऑफ पिपुल एक्ट, 1951 का धाराओं का हवाला देते हुए कॉपी मुहैया कराने की मांग की थी.
ऑफिस ऑफ प्रॉफिट केसः आपको बता दें कि भाजपा ने मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन पर पद का दुरूपयोग करते हुए अपने नाम से अनगड़ा में पत्थर खदान आवंटित करने का मामला उठाया था. इसको लेकर राज्यपाल से मिलकर कार्रवाई की मांग की गई थी. इसी पर राज्यपाल ने चुनाव आयोग से मंतव्य मामला था. जानकारी के मुताबिक 25 अगस्त को ही आयोग ने अपना मंतव्य राजभवन को भेज दिया है. लेकिन इस मामले में राजभवन की तरफ से आयोग को कोई आदेश नहीं भेजा गया है. लिहाजा, उसी दिन से झारखंड की राजनीति अस्थिरता से गुजर रही है. पिछले दिनों सीएम के आवास पर यूपीए विधायकों के साथ कई बार बैठकें हो चुकी हैं. इसी मामले के बाद यूपीए विधायकों को लतरातू डैम से लेकर रायपुर तक की सैर कराई गई. इसके बावजूद मामले का खुलासा नहीं होने पर आयोग से कॉपी मांगी गई, जिसे आयोग ने खारिज कर दिया है. इस मामले में हेमंत सोरेन की सदस्यता पर तलवार लटक रही है.