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ऐतिहासिक है रांची का डोरंडा बाजार, बापू के निधन के बाद 10 दिनों तक हुआ था यहां महायज्ञ

देश में नेता तो कई हुए लेकिन जन-जन के दिलों में जो स्थान बापू ने बनाया, वह स्थान कोई नहीं बना पाया. यही कारण है कि बापू को राष्ट्रपिता का दर्जा दिया गया है. 2 अक्टूबर को संपूर्ण भारत में महात्मा गांधी के आदर्शों को आत्मसात करने का संकल्प लेते हुए इस दिन को उनके नाम पर समर्पित किया जाता है. बापू से जुड़ी एक कहानी रांची के डोरंडा बाजार ने भी अपने गर्भ में दबा रखी है.

रांची के डोरंडा बाजार में स्थापित गांधी की प्रतिमा
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Published : Oct 1, 2019, 6:39 PM IST

रांची: गांधी जी ने लोगों को सिर्फ अहिंसा के रास्ते पर चलने की शिक्षा ही नहीं दी है. बल्कि लोगों को अन्याय के विरूद्ध लड़ने की हिम्मत भी दी है, मानवता के आदर्श स्थापित किए हैं. यही कारण है कि गांधीजी के निधन को इतने साल हो गए लेकिन उनकी शिक्षा, संस्कार, आदर्श आज भी जिंदा हैं. उनकी याद में उनके नाम पर जगह-जगह स्मारक-मूर्तियां स्थापित किए गए हैं. इस गांधी जयंती ईटीवी भारत आपको राजधानी रांची के डोरंडा सब्जी मंडी में लगे बापू के ऐसे ही एक स्मारक की कहानी बता रहा है.

देखें गांधी की स्टोरी


आजादी के बाद इसी मैदान में सबसे पहले लहराया गया था तिरंगा
भारत में जब अंग्रेजों का शासन था उस दौरान रांची की सब्जी मंडी अंग्रेजों के कब्जे में हुआ करती थी. उस दौरान इसका नाम था स्कॉर्ट मैदान. इस मैदान में सिर्फ अंग्रेजी हुकूमत चलती थी, क्योंकि अंग्रेज सैनिक यहां पर परेड किया करते थे. वहीं यहां भारतीय नागरिकों को आने-जाने की मनाही थी, लेकिन जब 15 अगस्त 1947 को देश आजाद हुआ तो यहां के लोग अपने हाथों में तिरंगा लेकर सबसे पहले इसी मैदान में आजादी का जश्न मनाने के लिए पहुंचे थे.

ये भी पढ़ें- रांची के इस दिव्यांग स्कूल के उद्घाटन समारोह में शामिल होने आये थे महात्मा गांधी!


बापू के निधन के बाद 10 दिन तक हुआ था महायज्ञ
आजादी के बाद इस मैदान में राजनीति से जुड़ी कई सभाएं भी हुईं. 30 जनवरी 1948 को महात्मा गांधी की हत्या कर दी गई तो पूरा देश उनकी हत्या से गमगीन हो गया था. उस समय इस मैदान में महात्मा गांधी की आत्मा की शांति के लिए महायज्ञ का आयोजन किया गया था. यह महायज्ञ 10 दिनों तक चला था. महायज्ञ की समाप्ति के बाद इस मैदान का नाम महात्मा गांधी मैदान रख दिया गया. वहीं महात्मा गांधी की एक प्रतिमा भी मैदान में स्थापित कर दी गई.


गरीबों के रक्षक के रूप में मौजूद हैं गांधी
इस बाजार में प्रतिदिन सब्जी विक्रेता अपनी रोजी-रोटी के लिए बाजार लगाते हैं. लेकिन 2 अक्टूबर को बापू की जयंती और 30 जनवरी को उनकी पुण्यतिथि मनाना नहीं भूलते हैं. सब्जी विक्रेताओं का कहना है कि महात्मा गांधी आज भले ही हमारे बीच नहीं हैं, लेकिन उनके आदर्शों और विचारधाराओं को हम आज भी मानते हैं. इसलिए, हम सभी मिलकर बापू की जयंती और पुण्यतिथि मनाते हैं. यहां पर बापू आज भी हम गरीबों के रक्षक के रूप में मौजूद होकर हमें अन्याय के विरूद्ध लड़ने का हौसला दे रहे हैं.

रांची: गांधी जी ने लोगों को सिर्फ अहिंसा के रास्ते पर चलने की शिक्षा ही नहीं दी है. बल्कि लोगों को अन्याय के विरूद्ध लड़ने की हिम्मत भी दी है, मानवता के आदर्श स्थापित किए हैं. यही कारण है कि गांधीजी के निधन को इतने साल हो गए लेकिन उनकी शिक्षा, संस्कार, आदर्श आज भी जिंदा हैं. उनकी याद में उनके नाम पर जगह-जगह स्मारक-मूर्तियां स्थापित किए गए हैं. इस गांधी जयंती ईटीवी भारत आपको राजधानी रांची के डोरंडा सब्जी मंडी में लगे बापू के ऐसे ही एक स्मारक की कहानी बता रहा है.

देखें गांधी की स्टोरी


आजादी के बाद इसी मैदान में सबसे पहले लहराया गया था तिरंगा
भारत में जब अंग्रेजों का शासन था उस दौरान रांची की सब्जी मंडी अंग्रेजों के कब्जे में हुआ करती थी. उस दौरान इसका नाम था स्कॉर्ट मैदान. इस मैदान में सिर्फ अंग्रेजी हुकूमत चलती थी, क्योंकि अंग्रेज सैनिक यहां पर परेड किया करते थे. वहीं यहां भारतीय नागरिकों को आने-जाने की मनाही थी, लेकिन जब 15 अगस्त 1947 को देश आजाद हुआ तो यहां के लोग अपने हाथों में तिरंगा लेकर सबसे पहले इसी मैदान में आजादी का जश्न मनाने के लिए पहुंचे थे.

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बापू के निधन के बाद 10 दिन तक हुआ था महायज्ञ
आजादी के बाद इस मैदान में राजनीति से जुड़ी कई सभाएं भी हुईं. 30 जनवरी 1948 को महात्मा गांधी की हत्या कर दी गई तो पूरा देश उनकी हत्या से गमगीन हो गया था. उस समय इस मैदान में महात्मा गांधी की आत्मा की शांति के लिए महायज्ञ का आयोजन किया गया था. यह महायज्ञ 10 दिनों तक चला था. महायज्ञ की समाप्ति के बाद इस मैदान का नाम महात्मा गांधी मैदान रख दिया गया. वहीं महात्मा गांधी की एक प्रतिमा भी मैदान में स्थापित कर दी गई.


गरीबों के रक्षक के रूप में मौजूद हैं गांधी
इस बाजार में प्रतिदिन सब्जी विक्रेता अपनी रोजी-रोटी के लिए बाजार लगाते हैं. लेकिन 2 अक्टूबर को बापू की जयंती और 30 जनवरी को उनकी पुण्यतिथि मनाना नहीं भूलते हैं. सब्जी विक्रेताओं का कहना है कि महात्मा गांधी आज भले ही हमारे बीच नहीं हैं, लेकिन उनके आदर्शों और विचारधाराओं को हम आज भी मानते हैं. इसलिए, हम सभी मिलकर बापू की जयंती और पुण्यतिथि मनाते हैं. यहां पर बापू आज भी हम गरीबों के रक्षक के रूप में मौजूद होकर हमें अन्याय के विरूद्ध लड़ने का हौसला दे रहे हैं.

Intro:रांची बाइट.... मनोज वर्मा बाजार समिति बाइट.... इनामुल हक सब्जी विक्रेता बाइट... हिमांशु कुमार आम नागरिक 2 अक्टूबर को हर साल उस महात्मा के नाम पर समर्पित किया जाता है जिन्होंने देश को हमेशा अहिंसा के रास्ते पर चलाने की शिक्षा दी है आपको हम ऐसे एक राजधानी रांची के बाजार जहां सब्जी बाजार दिखाने जा रहे हैं जहां गरीबों की रक्षक की तरह राष्ट्रपिता महात्मा गांधी बापू निगरानी करते नजर आते हैं। और गरीब सब्जी विक्रेता उनके शरण पर अपनी रोजी-रोटी जुटा रहे हैं इस मैदान और महात्मा गांधी का इतिहास जुड़ा हुआ है यही कारण है की 2 अक्टूबर को इस मैदान में धूमधाम से गांधी जयंती यहां पर मनाया जाता है तो उतना ही नम आंखों से 30 जनवरी को उनकी पुण्यतिथि भी बनाई जाती है। बात उस समय की है जब पूरे भारतवर्ष में अंग्रेजी हुकूमत का शासन था लोग अंग्रेजी हुकूमत के इजाजत के बगैर भारतीय को सांस भी लेना मुश्किल था। आइए आपको बताते हैं हाईकोर्ट के पीछे लगने वाले डोरंडा बाजार सब्जी मंडी और महात्मा गांधी से जुड़ी कहानी।


Body:यह जो आप सब्जी मंडी देख रहे हैं वह कभी अंग्रेजो के कब्जे में हुआ करता था जिसका नाम था इस स्कॉर्ट मैदान इस मैदान में सिर्फ अंग्रेजी हुकूमत चलती थी क्योंकि अंग्रेजों के सैनिक यहां पर परेड किया करते थे इस मैदान में भारतीय नागरिक को आना बिल्कुल ही मना था। लेकिन जब 15 अगस्त 1947 को देश आजाद हुआ तो यहां के लोग अपने हाथों में तिरंगा लेकर सबसे पहले इसी मैदान में आजादी का जश्न मनाने के लिए पहुंचे आजादी के बाद इस मैदान में राजनीतिक से जुड़ी कई सभाएं भी हुई लेकिन आजादी के तुरंत बाद ही 30 जनवरी 1948 को महात्मा गांधी की हत्या कर दी गई और पूरा देश उनकी हत्या के बाद गम में डूब गया इसी मैदान में महात्मा गांधी के आत्मा के शांति के लिए महायज्ञ का आयोजन भी किया गया या महायज्ञ 10 दिनों तक चला उसके बाद महात्मा गांधी मैदान रख दिया गया। रांची के डोरंडा में स्थित अंग्रेजो के द्वारा रखा गया स्कॉर्ट मैदान अब महात्मा गांधी मैदान के नाम से जाना जाता है और इस मैदान गरीब अपनी रोजी-रोटी को जुगाड़ के लिए सब्जी मंडी लगाते हैं और इसके ठीक बीचोबीच महात्मा गांधी का प्रतिमा लगा हुआ है जो आज भी गरीबों के रक्षक के रूप में मौजूद है।


Conclusion:इस बाजार में प्रतिदिन सब्जी विक्रेता अपने रोजी रोटी के लिए बाजार लगाते हैं लेकिन इतना जरूर है कि 2 अक्टूबर को उनकी जयंती और 30 जनवरी उनकी पुण्यतिथि मनाना नहीं भूलते हैं क्योंकि सभी विक्रेताओं की माने तो महात्मा गांधी सत्य अहिंसा के प्रतीक हैं राष्ट्रपिता महात्मा गांधी सही मायने में महात्मा थे वह कैसे इंसान थे जो हिंदू मुस्लिम सिख ईसाई को मिलजुल कर रहने का सीख दिया करते थे और गरीबों के मसीहा के रूप में अंग्रेजी हकूमत के आगे खड़ा हो जाते थे अहिंसा परमो धर्मा रास्ता पर चलने का राशि खाने वाले महात्मा गांधी आज भले ही हमारे बीच नहीं है लेकिन उनकी आदर्शों और विचारधाराओं को हम आज भी मानते हैं। ईटीवी भारत के लिए विजय कुमार गोप की रिपोर्ट
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