रांची: गांधी जी ने लोगों को सिर्फ अहिंसा के रास्ते पर चलने की शिक्षा ही नहीं दी है. बल्कि लोगों को अन्याय के विरूद्ध लड़ने की हिम्मत भी दी है, मानवता के आदर्श स्थापित किए हैं. यही कारण है कि गांधीजी के निधन को इतने साल हो गए लेकिन उनकी शिक्षा, संस्कार, आदर्श आज भी जिंदा हैं. उनकी याद में उनके नाम पर जगह-जगह स्मारक-मूर्तियां स्थापित किए गए हैं. इस गांधी जयंती ईटीवी भारत आपको राजधानी रांची के डोरंडा सब्जी मंडी में लगे बापू के ऐसे ही एक स्मारक की कहानी बता रहा है.
आजादी के बाद इसी मैदान में सबसे पहले लहराया गया था तिरंगा
भारत में जब अंग्रेजों का शासन था उस दौरान रांची की सब्जी मंडी अंग्रेजों के कब्जे में हुआ करती थी. उस दौरान इसका नाम था स्कॉर्ट मैदान. इस मैदान में सिर्फ अंग्रेजी हुकूमत चलती थी, क्योंकि अंग्रेज सैनिक यहां पर परेड किया करते थे. वहीं यहां भारतीय नागरिकों को आने-जाने की मनाही थी, लेकिन जब 15 अगस्त 1947 को देश आजाद हुआ तो यहां के लोग अपने हाथों में तिरंगा लेकर सबसे पहले इसी मैदान में आजादी का जश्न मनाने के लिए पहुंचे थे.
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बापू के निधन के बाद 10 दिन तक हुआ था महायज्ञ
आजादी के बाद इस मैदान में राजनीति से जुड़ी कई सभाएं भी हुईं. 30 जनवरी 1948 को महात्मा गांधी की हत्या कर दी गई तो पूरा देश उनकी हत्या से गमगीन हो गया था. उस समय इस मैदान में महात्मा गांधी की आत्मा की शांति के लिए महायज्ञ का आयोजन किया गया था. यह महायज्ञ 10 दिनों तक चला था. महायज्ञ की समाप्ति के बाद इस मैदान का नाम महात्मा गांधी मैदान रख दिया गया. वहीं महात्मा गांधी की एक प्रतिमा भी मैदान में स्थापित कर दी गई.
गरीबों के रक्षक के रूप में मौजूद हैं गांधी
इस बाजार में प्रतिदिन सब्जी विक्रेता अपनी रोजी-रोटी के लिए बाजार लगाते हैं. लेकिन 2 अक्टूबर को बापू की जयंती और 30 जनवरी को उनकी पुण्यतिथि मनाना नहीं भूलते हैं. सब्जी विक्रेताओं का कहना है कि महात्मा गांधी आज भले ही हमारे बीच नहीं हैं, लेकिन उनके आदर्शों और विचारधाराओं को हम आज भी मानते हैं. इसलिए, हम सभी मिलकर बापू की जयंती और पुण्यतिथि मनाते हैं. यहां पर बापू आज भी हम गरीबों के रक्षक के रूप में मौजूद होकर हमें अन्याय के विरूद्ध लड़ने का हौसला दे रहे हैं.