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कोरोना संकट के बीच मजदूरों को सता रही पेट की चिंता, सरकार की योजना भी नहीं आ रही काम

कोरोना के बढ़ते मामलों के कारण देश में एक बार गरीब और मध्यम वर्ग के सामने आर्थिक समस्या उत्पन्न हो गई है. रांची में रिक्शा चलाकर अपने परिवार का भरण पोषण करने वाले कोरोना की मार झेलने को मजबूर हैं. वहीं प्रवासी मजूदर काम नहीं मिलने के कारण घर में बैठने को मजबूर हैं.

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रिक्शा चालक
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Published : Apr 23, 2021, 10:05 AM IST

रांचीः कोरोना के कारण सभी वर्ग के लोग परेशान हैं. सबसे ज्यादा मुश्किल में वे लोग हैं जो दैनिक मजदूरी कर खुद के साथ-साथ परिवार का भरण पोषण करते हैं. ऐसे में एक तरफ कोरोना का खतरा और दूसरी तरफ पेट की चिंता ने इन्हें बेहद परेशान कर रखा है.

देखें पूरी खबर

इसे भी पढ़ें- रांची: बस स्टैंड पर होटल बंद होने से यात्री हलाकान, परिवहन सेवाओं पर पड़ रहा असर

काम काज छोड़कर घर लौट रहे श्रमिक

राज्य में कोरोना ने तबाही मचा रखी है. तेजी से बढ़ रहे संक्रमण की रोकथाम के लिए सरकार ने स्वास्थ्य सुरक्षा सप्ताह के जरिए कोरोना चेन तोड़ने की कोशिश की है. जिसके कारण सड़कों पर सन्नाटा है और आवश्यक कार्यों को छोड़कर कोई भी कार्य नहीं किया जा रहा है. कोरोना के कारण बाजारों में छाई मंदी से एक बार फिर बड़े पैमाने पर बेरोजगारी का खतरा मंडराने लगा है. मुंबई, चेन्नई, दिल्ली जैसे महानगरों से काम काज छोड़कर घर लौट रहे श्रमिक खासे परेशान हैं.

कोरोना की मार झेलने को मजबूर

राजधानी की सड़कों पर रिक्शा चलाकर अपने परिवार को पाल रहे सुखदेव को चिंता इस बात की है कि 60 रुपये की आमदनी में 50 रुपया रिक्शा मालिक को देने के बाद 10 रुपया में परिवार कैसे चलेगा. यही हाल दैनिक मजदूरी करने वाले मजदूरों की है. जो कोरोना की मार झेलने को मजबूर हैं. हर दिन काम की तलाश में राजधानी की सड़कों के किनारे खड़े रहने वाले मजदूरों का समूह गायब है. काम नहीं मिलने के कारण मजदूर घरों में रहने को मजबूर हैं.

सरकार की योजना भी नहीं हो पा रही कारगर

राज्य सरकार ने कोरोना के कारण रोजगार की तलाश में भटक रहे लोगों के लिए शहरी और ग्रामीण क्षेत्रों में रोजगार गारंटी योजना चला रखी है. इस योजना से ना केवल रोजगार की गारंटी है, बल्कि 15 दिनों तक रोजगार नहीं मिलने पर सरकार की ओर से बेरोजगारी भत्ता देने का प्रावधान है. लेकिन सरकार की लचर व्यवस्था के कारण इसको जो रफ्तार मिलनी चाहिए वह नहीं मिल रही है.

रांचीः कोरोना के कारण सभी वर्ग के लोग परेशान हैं. सबसे ज्यादा मुश्किल में वे लोग हैं जो दैनिक मजदूरी कर खुद के साथ-साथ परिवार का भरण पोषण करते हैं. ऐसे में एक तरफ कोरोना का खतरा और दूसरी तरफ पेट की चिंता ने इन्हें बेहद परेशान कर रखा है.

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काम काज छोड़कर घर लौट रहे श्रमिक

राज्य में कोरोना ने तबाही मचा रखी है. तेजी से बढ़ रहे संक्रमण की रोकथाम के लिए सरकार ने स्वास्थ्य सुरक्षा सप्ताह के जरिए कोरोना चेन तोड़ने की कोशिश की है. जिसके कारण सड़कों पर सन्नाटा है और आवश्यक कार्यों को छोड़कर कोई भी कार्य नहीं किया जा रहा है. कोरोना के कारण बाजारों में छाई मंदी से एक बार फिर बड़े पैमाने पर बेरोजगारी का खतरा मंडराने लगा है. मुंबई, चेन्नई, दिल्ली जैसे महानगरों से काम काज छोड़कर घर लौट रहे श्रमिक खासे परेशान हैं.

कोरोना की मार झेलने को मजबूर

राजधानी की सड़कों पर रिक्शा चलाकर अपने परिवार को पाल रहे सुखदेव को चिंता इस बात की है कि 60 रुपये की आमदनी में 50 रुपया रिक्शा मालिक को देने के बाद 10 रुपया में परिवार कैसे चलेगा. यही हाल दैनिक मजदूरी करने वाले मजदूरों की है. जो कोरोना की मार झेलने को मजबूर हैं. हर दिन काम की तलाश में राजधानी की सड़कों के किनारे खड़े रहने वाले मजदूरों का समूह गायब है. काम नहीं मिलने के कारण मजदूर घरों में रहने को मजबूर हैं.

सरकार की योजना भी नहीं हो पा रही कारगर

राज्य सरकार ने कोरोना के कारण रोजगार की तलाश में भटक रहे लोगों के लिए शहरी और ग्रामीण क्षेत्रों में रोजगार गारंटी योजना चला रखी है. इस योजना से ना केवल रोजगार की गारंटी है, बल्कि 15 दिनों तक रोजगार नहीं मिलने पर सरकार की ओर से बेरोजगारी भत्ता देने का प्रावधान है. लेकिन सरकार की लचर व्यवस्था के कारण इसको जो रफ्तार मिलनी चाहिए वह नहीं मिल रही है.

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