रांची: राजधानी के पिठोरिया के हेसलपेडा की रहने वाली एक कोरोना पीड़ित महिला की मौत रिम्स के मेडिसिन डी-1 में बनाए गए कोविड वार्ड में हो गई. दुखद बात यह है कि मरीज को प्यास लगी थी. वार्ड में कोई कर्मी उसे पानी देने वाला नहीं था. प्यास से तड़पती महिला ने अपने पति को फोन करके पानी मंगाया. उसका पति पानी लेकर आया तो जरूर, लेकिन अपनी पत्नी को पानी नहीं पिला सका.
वार्ड में लगा था ताला
महिला के पति ने बताया कि सुबह करीब पांच बजे उसकी पत्नी ने फोन कर उसे बताया कि उसे प्यास लगी है. जल्दी पानी दो. बाहर से वह पानी लेकर आया तो देखा कि वार्ड के गेट में ताला बंद है. उसकी पत्नी पानी मांगते-मांगते मर गई. उसने बताया कि पत्नी के पेट में तेज दर्द था. मिली जानकारी के अनुसार 2 अक्टूबर से ही महिला सर्जरी विभाग में भर्ती हुई थी. उसका सिटी स्कैन होना था. 4 अक्टूबर को वह कोरोना से संक्रमित पाई गई. उसके बाद 7 अक्टूबर की रात के लगभग 12 बजे उसे कोरोना वार्ड में भर्ती किया गया.
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रात भर कराहती रही मरीज
सबसे बड़ा सवाल यह है कि मरीज गंभीर थी, लेकिन उसे आईसीयू के बजाय जेनरल वार्ड में रखकर छोड़ दिया गया. कोई देखने तक नहीं आया. वार्ड के दूसरे मरीजों ने बताया कि वह रात भर कराहती रही. पानी पानी करती रही, लेकिन उसकी स्थिति इतनी खराब थी कि डर से कोई उसके पास नहीं जा रहा था. पति भी भर्ती करने के बाद वार्ड से बाहर चला गया. वार्ड में केवल सिस्टर थी, जो अपने कमरे में सो रही थी. कोई वार्ड ब्वाय भी नहीं था.
कार्रवाई करने का आश्वासन
निश्चित रूप से अगर मरीज कोरोना पॉजिटिव थी तो उसे पानी उपलब्ध कराने की जिम्मेदारी रिम्स प्रबंधन की होती है, ताकि पीपीई किट पहनकर कोई कर्मचारी उसे पानी पिला सके. वहीं पूरे मामले में प्रबंधन ने मरीज की मौत को लेकर संबंधित कर्मचारी से सवाल कर उचित कारवाई करने का आश्वासन दिया है.
मामले की करें जांच
उक्त मामले में सीएम हेमंत सोरेन ने स्वास्थ्य मंत्री बन्ना गुप्ता को निर्देश दिया है कि जल्द से जल्द मामले की जांच करने और दोषियों पर सख्त कार्रवाई करते हुए सूचित करने को कहा है.
इन मामलों में भी विवाद
रिम्स की लापरवाही का ये कोई पहला मामला नहीं है. इसी साल 9 जनवरी को ऑर्थोपेडिक विभाग के कॉरिडोर में भूख से बेहाल महिला ने जिंदा कबूतर को निवाला बना लिया था. उस समय रिम्स के निदेशक ने लावारिस महिला के विक्षिप्त होने का हवाला देकर अपना पल्ला झाड़ लिया था. इसके बाद फरवरी महीने में रिम्स की कर्मचारियों को घर जाने की इतनी जल्दी थी कि एक महिला मरीज को अल्ट्रासाउंड विभाग में ही ताला बंदकर चले गए थे. 3 अप्रैल को रिम्स के ओपीडी कॉम्पलेक्स से एक और दर्दनाक तस्वीर मिली थी. चलने फिरने में असमर्थ, एक पैर में रॉड लगाए फिलिप नाम का मरीज जब भूख से बेहाल हो गया तो जमीन पर कचरे में पड़े चावल को ही खाने लगा था. इसके अलावा भी गाहे-बगाहे कई घटनाएं हुईं हैं जो रिम्स प्रबंधन पर सवाल खड़े करती हैं. पूरे झारखंड से लोग यहां इस उम्मीद में आते हैं कि सही इलाज होगा लेकिन इलाज तो दूर पानी तक नसीब नहीं होता.