ETV Bharat / state

1932 का तीर...दुविधा में हाथ और लालटेन!

ऑफिस ऑफ प्रॉफिट मामले में फंसे जेएमएम कार्यकारी अध्यक्ष हेमंत सोरेन (JMM executive president Hemant Soren) ने झारखंड की राजनीति के धनुष से 1932 खतियान आधारित स्थानीय नीति, 27 फीसदी ओबीसी आरक्षण का ऐसा बाण चलाया है कि सभी दल बंधकर रह गए हैं. इस फैसले को लेकर विपक्षी दलों के साथ सहयोगी दल भी एक तरह की दुविधा (Congress RJD dilemma) में फंस गए हैं.

Congress RJD dilemma over decision of 27 percent OBC reservation
स्थानीय नीति पर कांग्रेस राजद की दुविधा
author img

By

Published : Sep 19, 2022, 8:24 PM IST

रांचीः ऑफिस ऑफ प्रॉफिट मामले में राजनीतिक झंझावत में फंसे झारखंड मुक्ति मोर्चा के कार्यकारी अध्यक्ष और राज्य के मुख्यमंत्री हेमन्त सोरेन ने 1932 खतियान आधारित स्थानीय नीति (1932 Khatian based domicile policy jharkhand) और ओबीसी को 27% आरक्षण का प्रस्ताव कैबिनेट से पारित करा कर ऐसा तीर छोड़ दिया है कि विरोधी दलों के साथ सहयोगी दल भी दुविधा में पड़ गए हैं. भाजपा 1932 खतियान आधारित कैबिनेट प्रस्ताव पारित होने पर इसे लाने की सिर्फ मंशा पर सवाल उठा रही है तो सुदेश महतो की पार्टी आजसू को तो संवाददाता सम्मेलन बुलाकर सरकार के इस कदम का स्वागत और समर्थन करना पड़ा वहीं झारखंड मुक्ति मोर्चा की सहयोगी पार्टियां कांग्रेस और राजद भी दुविधा में नजर आती हैं.

ये भी पढ़ें-हेमंत का मास्टर स्ट्रोक: OBC आरक्षण बढ़ाकर 27 प्रतिशत करने का फैसला, 1932 खतियान आधारित होगी स्थानीय नीति

कांग्रेस की राज्य से इकलौती लोकसभा सांसद गीता कोड़ा और पूर्व मुख्यमंत्री मधु कोड़ा के 1932 खतियान आधारित स्थानीय नीति के खिलाफ हल्लाबोल और बगावत से पार्टी इस सोच से सहमी है कि कहीं कोल्हान इलाके में उसे राजनीतिक नुकसान न उठाना पड़े. शायद यही वजह है कि जब पार्टी के झारखंड अध्यक्ष ढोल नगाड़े के साथ राजधानी की सड़कों पर 1932 खतियान आधारित स्थानीय नीति की खुशियां मानते दिखते हैं तो उनकी कार्यकारी अध्यक्ष सांसद गीता कोड़ा उसी वक्त कोल्हान को 1932 खतियान मंजूर नहीं और कोल्हान जलेगा जैसे शब्दों के साथ बयान जारी कर रही होती हैं.

देखें स्पेशल खबर
लालू की पार्टी भी दुविधा मेंः लालू प्रसाद यादव की पार्टी राष्ट्रीय जनता दल को हमेशा से उन लोगों का हितैषी माना जाता रहा है जो वर्षों पहले रोजी रोजगार एवं अन्य कार्य के लिए वर्तमान झारखंड में आकर बस गए थे. उनके हक और सम्मान की लड़ाई लड़ने का दावा करने वाली राजद भी खुल कर न 1932 का विरोध कर पा रही है और न ही समर्थन. पूर्व मंत्री और राजद के वरिष्ठ नेता पूर्व मंत्री सुरेश पासवान अपने कोर वोटर को समझाने वाले अंदाज में कहते हैं कि किसी को चिंतित होने की जरूरत नहीं है, जो स्थानीय हैं उन्हें तो तृतीय और चतुर्थ श्रेणी की नौकरियों में आरक्षण मिलेगा. बाकी सेकंड और फर्स्ट क्लास की नौकरियों में कहां कोई रोक है. जो भी झारखंड में रह रहा है उसे कोई दिक्कत नहीं होगी .एक समय में झारखंड विधानसभा में थे राजद के 11 विधायक, अब सिर्फ 01ः राजद पहले से ही अपने जनाधार को झारखंड में खो चुकी है, सुरेश पासवान के अनुसार जब राज्य बिहार से अलग हुआ था तब 11 विधायक राजद के थे, 2005 के चुनाव में घटकर 09 रह गए तो 2009 के विधानसभा चुनाव में पांच विधायक जीते. 2014 के विधानसभा चुनाव में तो राजद का खाता तक नहीं खुला. 2019 में सिंगल विधायक बने सत्यानंद भोक्ता सदन में हैं. इस चुनाव में पार्टी सात सीट पर लड़ी थी, जिसमें एक चतरा में ही जीत नसीब हुई, पांच जगह पर पार्टी दूसरे स्थान पर रही. यह साफ दर्शाता है कि राजद पिछले 22 वर्ष से अपने कोर वोटर को खो रही है. वहीं 1932 खतियान आधारित स्थानीय नीति का मामला उसके लिए आगे कुआं पीछे खाई वाली हो गया है.

रांचीः ऑफिस ऑफ प्रॉफिट मामले में राजनीतिक झंझावत में फंसे झारखंड मुक्ति मोर्चा के कार्यकारी अध्यक्ष और राज्य के मुख्यमंत्री हेमन्त सोरेन ने 1932 खतियान आधारित स्थानीय नीति (1932 Khatian based domicile policy jharkhand) और ओबीसी को 27% आरक्षण का प्रस्ताव कैबिनेट से पारित करा कर ऐसा तीर छोड़ दिया है कि विरोधी दलों के साथ सहयोगी दल भी दुविधा में पड़ गए हैं. भाजपा 1932 खतियान आधारित कैबिनेट प्रस्ताव पारित होने पर इसे लाने की सिर्फ मंशा पर सवाल उठा रही है तो सुदेश महतो की पार्टी आजसू को तो संवाददाता सम्मेलन बुलाकर सरकार के इस कदम का स्वागत और समर्थन करना पड़ा वहीं झारखंड मुक्ति मोर्चा की सहयोगी पार्टियां कांग्रेस और राजद भी दुविधा में नजर आती हैं.

ये भी पढ़ें-हेमंत का मास्टर स्ट्रोक: OBC आरक्षण बढ़ाकर 27 प्रतिशत करने का फैसला, 1932 खतियान आधारित होगी स्थानीय नीति

कांग्रेस की राज्य से इकलौती लोकसभा सांसद गीता कोड़ा और पूर्व मुख्यमंत्री मधु कोड़ा के 1932 खतियान आधारित स्थानीय नीति के खिलाफ हल्लाबोल और बगावत से पार्टी इस सोच से सहमी है कि कहीं कोल्हान इलाके में उसे राजनीतिक नुकसान न उठाना पड़े. शायद यही वजह है कि जब पार्टी के झारखंड अध्यक्ष ढोल नगाड़े के साथ राजधानी की सड़कों पर 1932 खतियान आधारित स्थानीय नीति की खुशियां मानते दिखते हैं तो उनकी कार्यकारी अध्यक्ष सांसद गीता कोड़ा उसी वक्त कोल्हान को 1932 खतियान मंजूर नहीं और कोल्हान जलेगा जैसे शब्दों के साथ बयान जारी कर रही होती हैं.

देखें स्पेशल खबर
लालू की पार्टी भी दुविधा मेंः लालू प्रसाद यादव की पार्टी राष्ट्रीय जनता दल को हमेशा से उन लोगों का हितैषी माना जाता रहा है जो वर्षों पहले रोजी रोजगार एवं अन्य कार्य के लिए वर्तमान झारखंड में आकर बस गए थे. उनके हक और सम्मान की लड़ाई लड़ने का दावा करने वाली राजद भी खुल कर न 1932 का विरोध कर पा रही है और न ही समर्थन. पूर्व मंत्री और राजद के वरिष्ठ नेता पूर्व मंत्री सुरेश पासवान अपने कोर वोटर को समझाने वाले अंदाज में कहते हैं कि किसी को चिंतित होने की जरूरत नहीं है, जो स्थानीय हैं उन्हें तो तृतीय और चतुर्थ श्रेणी की नौकरियों में आरक्षण मिलेगा. बाकी सेकंड और फर्स्ट क्लास की नौकरियों में कहां कोई रोक है. जो भी झारखंड में रह रहा है उसे कोई दिक्कत नहीं होगी .एक समय में झारखंड विधानसभा में थे राजद के 11 विधायक, अब सिर्फ 01ः राजद पहले से ही अपने जनाधार को झारखंड में खो चुकी है, सुरेश पासवान के अनुसार जब राज्य बिहार से अलग हुआ था तब 11 विधायक राजद के थे, 2005 के चुनाव में घटकर 09 रह गए तो 2009 के विधानसभा चुनाव में पांच विधायक जीते. 2014 के विधानसभा चुनाव में तो राजद का खाता तक नहीं खुला. 2019 में सिंगल विधायक बने सत्यानंद भोक्ता सदन में हैं. इस चुनाव में पार्टी सात सीट पर लड़ी थी, जिसमें एक चतरा में ही जीत नसीब हुई, पांच जगह पर पार्टी दूसरे स्थान पर रही. यह साफ दर्शाता है कि राजद पिछले 22 वर्ष से अपने कोर वोटर को खो रही है. वहीं 1932 खतियान आधारित स्थानीय नीति का मामला उसके लिए आगे कुआं पीछे खाई वाली हो गया है.
ETV Bharat Logo

Copyright © 2024 Ushodaya Enterprises Pvt. Ltd., All Rights Reserved.