रांची: झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने 2 मार्च 2022 को केंद्रीय कोयला मंत्री प्रल्हाद जोशी को भेजे पत्र को सोशल मीडिया पर सार्वजनिक कर बकाया राशि लौटाने की मांग की है. मुख्यमंत्री ने अपने पत्र में लिखा है कि कोल इंडिया लिमिटेड की सबसीडियरी कंपनियों (CCL, BCCL, ECL) पर अलग अलग मद में 1 लाख 36 हजार 42 करोड़ रुपए बकाए हैं. पत्र को सार्वजनिक करने से ठीक एक दिन पहले उन्होंने सदन में कहा था कि हम अपना हक लेकर रहेंगे. अगर बकाया पैसा नहीं मिला तो कोयले की सप्लाई बैरिकेड कर दी जाएगी.
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सीएम ने अपने पत्र में आग्रह किया है कि राज्य के आर्थिक हालात को देखते हुए केंद्रीय कोयला मंत्री पहल करें और सभी कोयला कंपनियों को बकाया राशि लौटाने का निर्देश जारी करें. सीएम के मुताबिक वॉश्ड कोल रॉयलटी मद में 2,900 करोड़, एमडीडीआर एक्ट के सेक्शन 21(5) के तहत 32,000 करोड़ और जमीन मुआवजा मद में 1,01,142 करोड़ यानी कुल 1,36,042 करोड़ रुपए बकाए हैं. चार पन्नों के पत्र में मिनरल कंसेसन रूल 1960, एमडीडीआर एक्ट और सुप्रीम कोर्ट के आदेशों का भी हवाला दिया गया है.
मुख्यमंत्री का कहना है कि डिस्पैच के बजाए रन ऑफ माइन कोल के आधार पर रॉयलटी दी जा रही है. इसको लेकर जिला खनन पदाधिकारी की तरफ से रजरप्पा, पीपरवार, कथारा, स्वांग, करगली और मुनीडीह वॉशरी को कई बार नोटिस भेजा जा चुका है. लेकिन इस दिशा में कोई कार्रवाई नहीं हो रही है. इस मामले को कोल कंपनियां हाई कोर्ट ले गई. जिसपर हाई कोर्ट ने अपने अंतरिम आदेश में राज्य सरकार को किसी भी तरह का एक्शन नहीं लेने को कहा है. हालाकि बाद में हाई कोर्ट ने अपने आदेश में सरकार के पक्ष को सही बताया है. इसके बावजूद कोल कंपनियां वाश्ड कोल के पैसे नहीं दे रही हैं.
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सीएम ने अपने पत्र में लिखा है कि कोयला कंपनियों ने तय खनन क्षेत्र के बाहर जाकर किए गए उत्खनन के पैसे नहीं दिए हैं. इस मद में 32 हजार करोड़ का बकाया है. इसके अलावा जमीन मुआवजा मद में 41,142 करोड़ बकाया है, जिसपर करीब 60 हजार करोड़ का ब्याज बनता है. इसकी कुल राशि 1,01,142 करोड़ हो जाती है. इस लिहाज से राज्य सरकार का कोयला कंपनियों पर 1.36 लाख करोड़ निकलते हैं.
आपको बता दें कि 25 मार्च को सदन में मुख्यमंत्री ने कहा था कि एक तरफ केंद्रीय कोयला कंपनियां 1.36 लाख करोड़ बकाया राशि नहीं दे रही हैं, दूसरी तरफ बिजली मद में डीवीसी के बकाया राशि को केंद्र सरकार बिना पूछे राज्य के आरबीआई खाते से करीब तीन हजार करोड़ रुपए काट चुकी है. ऐसे में अब झारखंड को अपने हक की लड़ाई लड़नी होगी.