रांचीः झारखंड में आदिवासी समुदाय सरहुल त्योहार सादगी से मना रहे हैं. वहीं, झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन भी मधुपुर से रांची लौटते ही प्रकृति के पर्व सरहुल मनाने सिरम टोली स्थित सरना स्थल पहुंचे और पूजा अर्चना की. पूजा-अर्चना करने के बाद मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने राज्य की जनता से अपील करते हुए कहा कि सरहुल का पर्व अपने अपने घरों में मनाए. कोरोना काल में सबको मिलकर इस महामारी से लड़ना है.
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मुख्यमंत्री ने कहा कि आदिवासियों का सबसे बड़ा पर्व सरहुल माना जाता है. सरहुल पर्व के साथ ही कई तरह की नई शुरुआत भी की जाती है, लेकिन इस बार का सरहुल सन्नाटे के बीच गुजर रहा है. यही सभी लोग कामना कर रहे हैं कि कोरोना से छुटकारा मिलें, तो आने वाला सरहुल और बेहतर तरीके में मना सकें.
आदिवासियों के प्रमुख त्योहार है सरहुल
सीएम ने कहा कि प्रकृति के महापर्व सरहुल की शुरुआत चैत माह के आगमन से होता है. इस समय साल के वृक्षों में फूल लग जाते हैं, जिसे आदिवासी प्रतीकात्मक रूप से नए साल का सूचक मानते हैं. सरहुल आदिवासियों के प्रमुख त्योहार में से एक है, जिसे आदिवासी बड़े धूमधाम से मनाते हैं.
सरहुल पर्व की हैं कई विशेषता
मुख्यमंत्री ने कहा कि तीन दिनों के इस पर्व की अपनी विशेषताएं हैं. इस पर्व में गांव के पाहन विशेष अनुष्ठान करते हैं. इसके साथ ही ग्राम देवता की पूजा की जाती है और कामना की जाती है कि आने वाला साल अच्छा हो. पाहन सरना स्थल में मिट्टी के हांडियों में पानी रखते हैं, पानी के स्तर से ही आने वाले साल में बारिश का अनुमान लगाया जाता है. पूजा समाप्त होने के दूसरे दिन गांव के पाहन घर-घर जाकर फूलखोंसी करते हैं, ताकि उस घर और समाज में खुशी बनी रहे.