रांची: साइबर अपराधी हर दिन अपनी नई चाल से लोगों की मेहनत की कमाई उड़ा रहे हैं. नतीजा यह है कि अब चेक से भी भुगतान सुरक्षित नहीं रह गया है. साइबर अपराधी जैसे एटीएम कार्ड का क्लोन बनाकर खाते से पैसे उड़ा रहे हैं, ठीक उसी तरह जालसाज और साइबर अपराधी मिलकर चेक का क्लोन बनाकर खाते से पैसे उड़ा रहे हैं.
क्लोन चेक बना ठगी का हथियार
हाल के दिनों में झारखंड में सबसे ज्यादा साइबर अपराधियों की गिरफ्तारी हुई है, लेकिन अगर साइबर फ्रॉड के मामलों की बात करें तो इसमें कोई कमी नहीं आई है. पहले निजी कंपनी या फिर किसी एक व्यक्ति के चेक का क्लोन बनाकर जालसाज एकाउंट से पैसे गायब किया करते थे. लेकिन अब तो जालसाजों की नजर सरकारी कार्यालय के पैसे पर भी पड़ चुकी है. साइबर ठग अब क्लोन चेक के जरिए सरकारी खातों से करोड़ों रुपए उड़ा रहे हैं. झारखंड में एक-एक कर लगातार कई ऐसे मामले सामने आ चुके हैं, जिसमें साइबर अपराधियों की ओर से करोड़ों रुपए की निकासी अवैध रूप से की गई है.
झारखंड में कौन-कौन से बड़े मामले आए सामने
झारखंड के गढ़वा जिले से पहला मामला सामने आया था, जिसमें भू-अर्जन विभाग के खाते से साइबर अपराधियों ने 12 करोड़ रुपए उड़ा लिए थे. ये पैसे जमीन अधिग्रहण के दौरान जिन रैयतों से जमीन ली गई थी, उन्हें बतौर मुआवजा देना था. कुछ इसी तरह गुमला में समेकित जनजाति विकास अभिकरण के खाते से साइबर अपराधियों ने 9.05 करोड़ रुपए की निकासी कर ली थी. वहीं, बीते गुरुवार यानी 4 फरवरी को झारखंड के रामगढ़ जिले से भी साइबर अपराधियों ने बीडीओ का नकली हस्ताक्षर कर सरकारी खाते से 78 लाख रुपए की निकासी कर ली.
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कैसे बनाते हैं क्लोन
साइबर एक्सपर्ट राहुल के अनुसार, सरकारी पैसों की निकासी हाल के दिनों में साइबर अपराधियों की ओर से बढ़ी है. दरअसल इसके पीछे की वजह यह है कि मॉनिटरिंग का सिस्टम सरकारी कार्यालय में किसी एक का नहीं होता है. नंबर भी अपडेट नहीं होता है. चेक क्लोनिंग करने वाले बैंक जाकर चेक से कैश निकालने वालों पर नजर रखते हैं. मोबाइल से उनके चेक की फोटो खींच कर बैंक के कॉल सेंटर से उस खाते की जानकारी मांग लेते हैं. चेक की फोटो को कोरल ड्रॉ सॉफ्टवेयर की मदद से क्लोन चेक तैयार करते हैं. क्लोन चेक तैयार होने के बाद खाताधारक के बैंक खाते की स्टेटमेंट और फर्जी हस्ताक्षर पता कर लेते हैं. फिर उसी बैंक की किसी शाखा में नया खाता खुलवाकर और खाताधारक के बैंक खाते से पासबुक, चेकबुक और एटीएम कार्ड तक निकाल लेते हैं.
केमिकल का भी लिया जाता है सहारा
बैंक से मिली चेक बुक में खाताधारक के नाम, खाता नंबर और माइकर कोड को केमिकल से मिटा देते हैं. इसके बाद प्रिंटर की मदद से उस पर प्रयोग किये चेक पर खाताधारक का नाम, खाता संख्या और माइकर कोड डालकर चेक तैयार कर लेते हैं. क्लोनिंग होने के बाद खाताधारक का फर्जी साइन कर किसी भी बैंक में चेक लगाकर कैश दूसरे खाते में ट्रांसफर कर देते हैं.
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क्या होता है माइकर कोड
माइकर कोड (मैग्नेटिक इंक करेक्टर रिकॉग्नेशन) नौ अंकों का होता है. यह कोड सभी बैंकों के चेक के निचले हिस्से में छपा होता है. इसमें पहले तीन अंक बैंक शाखा के शहर का नाम, अगले तीन अंक बैंक के नाम और आखिरी में जो तीन अंक होते हैं, वह बैंक ब्रांच की पहचान के लिए दिए होते हैं. आमतौर पर पैसे की निकासी की सूचना ग्राहक की ओर से बैंकों में दिए गए निजी नंबरों पर दी जाती है, लेकिन साइबर अपराधी बड़ी ही चालाकी के साथ नकली एफिडेविट तैयार कर मोबाइल कंपनी में जाकर अपना नंबर डलवा देते हैं, जिससे निकासी से संबंधित सूचनाएं साइबर अपराधियों के मोबाइल पर आती हैं.
सरकारी बैंक खातों को फर्जी तरीके से कराते हैं लिंक
हाल में ही सीआईडी की ओर से गिरफ्तार साइबर अपराधियों ने चेक को लेकर कई तरह के खुलासे किए थे. सीआईडी ने अपनी चार्जशीट में इन बातों का जिक्र भी किया था. सरकारी बैंक खातों से निकासी के लिए पहले बैंक खातों के चेक की क्लोनिंग की जाती थी. इसके लिए नालंदा का साजन राज क्लोन चेक का इंतजाम करता था, जिसके बाद गिरोह के सदस्य बड़ी चालाकी से सरकारी खातों से लिंक और फर्जी सिम जारी करवा लेते थे.
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कई सामान बरामद
सीआईडी ने चार्जशीट में बताया कि पैसों को ट्रांसफर करने के कुछ घंटे पहले सिम कार्ड को बंद कर दिया जाता था. दो अलग-अलग खातों से पैसों को पहले ओडिशा के एक बैंक में शीतल कंस्ट्रक्शन और चंदूभाई पटेल के बैंक खातों में ट्रांसफर कराया गया था. इसके बाद पैसों को यहां से पुणे, नागपुर, जमशेदपुर और पलामू समेत अन्य जिलों में रहने वाले साइबर अपराधियों के खाते में पैसे ट्रांसफर कर दिए गए थे. सीआईडी ने करीब 90 लाख रुपए राजकुमार तिवारी और मनीष पांडेय के खाते से जब्त किए थे. जांच के क्रम में सीआईडी ने मास्टर माइंड के पास से फर्जी सिम, क्लोन चेक बुक की कॉपी भी बरामद की थी.
आम लोगों का नहीं, सरकार का पैसा लूटते हैं अपराधी
गिरफ्तारी के बाद सीआईडी ने साइबर अपराधियों का बयान लिया था. अपने बयान में साइबर अपराधी गिरोह के सरगना ने बताया था कि वह हमेशा सरकारी खातों से पैसा लूटते हैं. कभी भी आम लोगों को नुकसान नहीं पहुंचाते हैं. सीआईडी अधिकारियों के मुताबिक, नालंदा के मास्टरमाइंड की ओर से फर्जी नाम मनीष जैन का इस्तेमाल किया जाता था, लेकिन पुलिस ने पैसे ट्रांसफर होने वाले खातों की जांच की तो इससे एक खाता साजन राज के नाम से मिला. इस खाते पर जारी क्रेडिट कार्ड के इस्तेमाल की डिटेल सीआईडी ने तलाशना शुरू किया, तब पुलिस नालंदा के मास्टर माइंड तक पहुंची. सीआईडी के अधिकारियों के मुताबिक, गिरोह में अधिकांश सदस्य बैंक फ्रॉड के मामले में प्रोफेशनल रहे हैं. चार्जशीटेड अधिकांश आरोपियों का पुराना साइबर अपराध संबंधी इतिहास भी रहा है.
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बरतें ये सावधानी
बैंक में चेक जमा करने के बाद अपनी स्लिप को संभालकर रखें. चेक खो जाने की स्थिति में वही एक ऐसा दस्तावेज है, जिस पर चेक के डिटेल होते हैं. पूरी तरह आश्वस्त होने के बाद ही किसी को बड़ी रकम का चेक दें. चेक जारी करने की बजाय चेक मांगने वाले को ऑनलाइन ट्रांजेक्शन के लिए कहे. इसमें फ्रॉड होने के बाद भी कुछ राहत मिल सकती है. चेक जारी करना जरूरी हो तो छोटी राशि का ही चेक जारी करें. अपने चेक को कभी भी सोशल मीडिया पर ना डालें और ना ही क्रॉस चेक को भी किसी के पास भेजें.
क्या कहती है पुलिस
रांची के सिटी एसपी सौरभ के अनुसार, हाल के दिनों में चेक के माध्यम से ठगी बढ़ी है. इसके आरोप में कई लोग गिरफ्तार हुए हैं, लेकिन जरूरी है कि इसे लेकर सतर्कता बरती जाए. तभी ऐसे मामले रुकेंगे. बैंक भी अपने स्तर से इस मामले को लेकर प्रयास कर रहा है. जरूरी है कि जब भी आपके पास चेक क्लीयरेंस के लिए कॉल आए तो आप यह निश्चित कर ले कि यह बैंक की ओर से ही किया गया कॉल है.