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CM हेमंत सोरेन की राहें नहीं है आसान, इन चुनौतियों से करना होगा आमना-सामना - मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन की चुनौतियां

दूसरी बार मुख्यमंत्री बने हेमंत सोरेन भले ही बहुमत वाले महागठबंधन की सरकार का नेतृत्व कर रहे हैं लेकिन उनके समक्ष कई ऐसी चुनौतियां हैं. जैसे कि CNT-SPT एक्ट का प्रॉपर इम्प्लीमेंटेशन, सरकार के राजस्व वसूली और खर्च में संतुलन बनाना, पारा टीचर सहायिका सेविका की मांगों पर सहानुभूति पूर्वक विचार, इलेक्शन मेनिफेस्टो को पूरा करना भी होगा एक मुद्दा.

Challenges of CM Hemant Soren
हेमंत सोरेन की चुनौतियां
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Published : Feb 5, 2020, 3:12 PM IST

रांची: प्रदेश में दूसरी बार मुख्यमंत्री बने हेमंत सोरेन भले ही बहुमत वाले महागठबंधन की सरकार का नेतृत्व कर रहे हैं लेकिन उनके समक्ष कई ऐसी चुनौतियां हैं जिन्हें उन्हें 'टेक्टफुली हैंडल' करना होगा.

हेमंत सोरेन की चुनौतियां
दरअसल, प्रदेश में झारखंड मुक्ति मोर्चा, कांग्रेस और राजद के महागठबंधन का नेतृत्व कर रहे हेमंत सोरेन को वैसी स्थिति में राज्य की बागडोर मिली है, जब एक तरफ उनके समक्ष प्रशासनिक महकमे को स्ट्रीम लाइन करना एक चैलेंज है. वहीं, दूसरी तरफ राज्य की वित्त व्यवस्था को पटरी पर लाने के अलावे कई ऐसी चुनौतियां हैं, जिन्हें हल करने के लिए उन्हें हर कदम संभल कर उठाना पड़ेगा.


राज्य में 11 सदस्यों की मौजूदा कैबिनेट की टीम में फिलहाल मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन के अलावा झारखंड मुक्ति मोर्चा के कोटे से पांच मंत्री हैं. जबकि कांग्रेस कोटे से चार और एक मंत्री राजद से हैं.


इन चुनौतियों से सीएम को करना होगा दो-दो हाथ
चुनौतियों की बात करें तो सबसे पहले राज्य सरकार के सामने स्थानीयता नीति और नियोजन नीति में बदलाव एक बड़ी चुनौती होगी. दरअसल, पिछली सरकार ने स्थानीय नीति में 1985 को कट ऑफ ईयर माना है जिसका झामुमो शुरू से विरोध करता रहा. पार्टी का स्टैंड है 1932 का खतियान स्थानीयता का आधार बने.


CNT-SPT एक्ट का प्रॉपर इम्प्लीमेंटेशन
राज्य में छोटानागपुर काश्तकारी अधिनियम और संथाल परगना काश्तकारी अधिनियम को कड़ाई से लागू कराना एक बड़ी चुनौती होगी. पिछली सरकार ने इन कानूनों क्या कुछ प्रावधान में परिवर्तन के लिए पहल की थी लेकिन उसे आशातीत सफलता नहीं मिली. इस मामले में पूर्वर्ती सरकार की काफी किरकिरी भी हुई थी. ऐसे में मौजूदा सरकार को इन दोनों कानूनों को कड़ाई से लागू कराना चुनौती होगी. इसके अलावा आदिवासियों द्वारा सरना कोड को धार्मिक मान्यता दिलाने की मांग कई दशकों से चली आ रही है. इस पर भी राज्य सरकार को कदम उठाना होगा.

ये भी पढ़े:- स्थापना दिवस समारोह में गरजे सीएम हेमंत सोरेन, कहा- आरक्षण खत्म हुआ तो, कोयला भेजना भी कर देंगे बंद


सरकार के राजस्व वसूली और खर्च में संतुलन बनाना
वहीं, वित्त के मोर्चे पर राज्य सरकार को अपने आय के स्रोत और खर्च के बिंदु पर एक संतुलन बनाना होगा. दरअसल, राज्य सरकार का मानना है कि उसे विरासत में ऐसी वित्तीय स्थिति मिली है, जिस वजह से सबसे पहले उसे राज्य की अर्थव्यवस्था को मजबूत करना होगा. ऐसे में सबसे पहले उसे अपने आय के स्रोतों को परिभाषित करना और उसके लक्ष्य को हासिल करना होगा.


पारा टीचर सहायिका सेविका की मांगों पर सहानुभूति पूर्वक विचार
वहीं, राज्य सरकार को लंबे समय से संघर्ष कर रहे पारा टीचर और आंगनबाड़ी में तैनात सहायक और सेविका उनकी मांगों के प्रति सहानुभूति पूर्वक विचार करना होगा. इनकी मांगों को लेकर नियम सम्मत कार्रवाई राज्य सरकार के लिए महत्वपूर्ण होगी. वहीं, औद्योगिक घरानों के साथ हुए समझौतों को अमलीजामा पहनाना सरकार के समक्ष एक बड़ी चुनौती होगी.


इलेक्शन मेनिफेस्टो को पूरा करना भी होगा एक मुद्दा
विधानसभा चुनाव में लोगों के समक्ष जिस तरह से वादे किए गए और इलेक्शन मेनिफेस्टो में जो आश्वासन दिए गए उन्हें पूरा करना भी राज्य सरकार के लिए चुनौती होगी. खासकर बेरोजगारों किसानों और युवाओं के लिए किए गए वादों में बेरोजगारी भत्ता, नौकरी और किसानों के लिए समर्थन मूल्य के बाद सरकार के लिए बड़ी चुनौती होंगे.

रांची: प्रदेश में दूसरी बार मुख्यमंत्री बने हेमंत सोरेन भले ही बहुमत वाले महागठबंधन की सरकार का नेतृत्व कर रहे हैं लेकिन उनके समक्ष कई ऐसी चुनौतियां हैं जिन्हें उन्हें 'टेक्टफुली हैंडल' करना होगा.

हेमंत सोरेन की चुनौतियां
दरअसल, प्रदेश में झारखंड मुक्ति मोर्चा, कांग्रेस और राजद के महागठबंधन का नेतृत्व कर रहे हेमंत सोरेन को वैसी स्थिति में राज्य की बागडोर मिली है, जब एक तरफ उनके समक्ष प्रशासनिक महकमे को स्ट्रीम लाइन करना एक चैलेंज है. वहीं, दूसरी तरफ राज्य की वित्त व्यवस्था को पटरी पर लाने के अलावे कई ऐसी चुनौतियां हैं, जिन्हें हल करने के लिए उन्हें हर कदम संभल कर उठाना पड़ेगा.


राज्य में 11 सदस्यों की मौजूदा कैबिनेट की टीम में फिलहाल मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन के अलावा झारखंड मुक्ति मोर्चा के कोटे से पांच मंत्री हैं. जबकि कांग्रेस कोटे से चार और एक मंत्री राजद से हैं.


इन चुनौतियों से सीएम को करना होगा दो-दो हाथ
चुनौतियों की बात करें तो सबसे पहले राज्य सरकार के सामने स्थानीयता नीति और नियोजन नीति में बदलाव एक बड़ी चुनौती होगी. दरअसल, पिछली सरकार ने स्थानीय नीति में 1985 को कट ऑफ ईयर माना है जिसका झामुमो शुरू से विरोध करता रहा. पार्टी का स्टैंड है 1932 का खतियान स्थानीयता का आधार बने.


CNT-SPT एक्ट का प्रॉपर इम्प्लीमेंटेशन
राज्य में छोटानागपुर काश्तकारी अधिनियम और संथाल परगना काश्तकारी अधिनियम को कड़ाई से लागू कराना एक बड़ी चुनौती होगी. पिछली सरकार ने इन कानूनों क्या कुछ प्रावधान में परिवर्तन के लिए पहल की थी लेकिन उसे आशातीत सफलता नहीं मिली. इस मामले में पूर्वर्ती सरकार की काफी किरकिरी भी हुई थी. ऐसे में मौजूदा सरकार को इन दोनों कानूनों को कड़ाई से लागू कराना चुनौती होगी. इसके अलावा आदिवासियों द्वारा सरना कोड को धार्मिक मान्यता दिलाने की मांग कई दशकों से चली आ रही है. इस पर भी राज्य सरकार को कदम उठाना होगा.

ये भी पढ़े:- स्थापना दिवस समारोह में गरजे सीएम हेमंत सोरेन, कहा- आरक्षण खत्म हुआ तो, कोयला भेजना भी कर देंगे बंद


सरकार के राजस्व वसूली और खर्च में संतुलन बनाना
वहीं, वित्त के मोर्चे पर राज्य सरकार को अपने आय के स्रोत और खर्च के बिंदु पर एक संतुलन बनाना होगा. दरअसल, राज्य सरकार का मानना है कि उसे विरासत में ऐसी वित्तीय स्थिति मिली है, जिस वजह से सबसे पहले उसे राज्य की अर्थव्यवस्था को मजबूत करना होगा. ऐसे में सबसे पहले उसे अपने आय के स्रोतों को परिभाषित करना और उसके लक्ष्य को हासिल करना होगा.


पारा टीचर सहायिका सेविका की मांगों पर सहानुभूति पूर्वक विचार
वहीं, राज्य सरकार को लंबे समय से संघर्ष कर रहे पारा टीचर और आंगनबाड़ी में तैनात सहायक और सेविका उनकी मांगों के प्रति सहानुभूति पूर्वक विचार करना होगा. इनकी मांगों को लेकर नियम सम्मत कार्रवाई राज्य सरकार के लिए महत्वपूर्ण होगी. वहीं, औद्योगिक घरानों के साथ हुए समझौतों को अमलीजामा पहनाना सरकार के समक्ष एक बड़ी चुनौती होगी.


इलेक्शन मेनिफेस्टो को पूरा करना भी होगा एक मुद्दा
विधानसभा चुनाव में लोगों के समक्ष जिस तरह से वादे किए गए और इलेक्शन मेनिफेस्टो में जो आश्वासन दिए गए उन्हें पूरा करना भी राज्य सरकार के लिए चुनौती होगी. खासकर बेरोजगारों किसानों और युवाओं के लिए किए गए वादों में बेरोजगारी भत्ता, नौकरी और किसानों के लिए समर्थन मूल्य के बाद सरकार के लिए बड़ी चुनौती होंगे.

Intro:रांची। प्रदेश में दूसरी बार मुख्यमंत्री बने हेमंत सोरेन भले ही बहुमत वाले महागठबंधन की सरकार का नेतृत्व कर रहे हैं लेकिन उनके समक्ष कई ऐसी चुनौतियां हैं जिन्हें उन्हें 'टेक्टफुली हैंडल' करना होगा। दरअसल प्रदेश में झारखंड मुक्ति मोर्चा, कांग्रेस और राजद के महागठबंधन का नेतृत्व कर रहे सोरेन को वैसी स्थिति में राज्य की बागडोर मिली है जब एक तरफ उनके समक्ष प्रशासनिक महकमे को स्ट्रीम लाइन करना एक चैलेंज है। वहीं दूसरी तरफ राज्य की वित्त व्यवस्था को पटरी पर लाने के अलावे कई ऐसी चुनौतियां हैं जिन्हें हल करने के लिए उन्हें हर कदम सम्भल कर उठाना पड़ेगा।


Body:राज्य में 11 सदस्यों की मौजूदा कैबिनेट की टीम में फिलहाल मुख्यमंत्री सोरेन के अलावा झारखंड मुक्ति मोर्चा के कोटे से पांच मंत्री हैं। जबकि कांग्रेस कोटे से चारबोर एक मंत्री राजद से हैं।

इन चुनौतियों से सीएम को करना होगा दो दो हाथ
चुनौतियों की बात करें तो सबसे पहले राज्य सरकार के सामने स्थानीयता नीति और नियोजन नीति में बदलाव एक बड़ी चुनौती होगी। दरअसल पिछली सरकार ने स्थानीय नीति में 1985 को कट ऑफ ईयर माना है जिसका झामुमो शुरू से विरोध करता रहा। पार्टी का स्टैंड है 1932 का खतियान स्थानीयता का आधार बने।

सीएनटी और एसपीटी एक्ट का प्रॉपर इम्पलीमेंटेशन
राज्य में छोटानागपुर काश्तकारी अधिनियम और संथाल परगना काश्तकारी अधिनियम को कड़ाई से लागू कराना एक बड़ी चुनौती होगी। पिछली सरकार ने इन कानूनों क्या कुछ प्रावधान में परिवर्तन के लिए पहल की थी लेकिन उसे आशातीत सफलता नहीं मिली। इस मामले में पूर्वर्ती सरकार की काफी किरकिरी भी हुई थी। ऐसे में मौजूदा सरकार को इन दोनों कानूनों को कड़ाई से लागू कराना चुनौती होगी। इसके अलावा आदिवासियों द्वारा सरना कोड को धार्मिक मान्यता दिलाने की मांग कई दशकों से चली आ रही है। इस पर भी राज्य सरकार को कदम उठाना होगा।

सरकार के राजस्व वसूली और खर्च में संतुलन बनाना
वहीं वित्त के मोर्चे पर राज्य सरकार को अपने आय के स्रोत और खर्च के बिंदु पर एक संतुलन बनाना होगा। दरअसल राज्य सरकार का मानना है कि उसे विरासत में ऐसी वित्तीय स्थिति मिली है जिस वजह से सबसे पहले उसे राज्य की अर्थव्यवस्था को मजबूत करना होगा। ऐसे में सबसे पहले उसे अपने आय के स्रोतों को परिभाषित करना और उसके लक्ष्य को हासिल करना होगा।




Conclusion:
पारा टीचर सहायिका सेविका की मांगों पर करना होगा सहानुभूति पूर्वक विचार
वहीं राज्य सरकार को लंबे समय से संघर्ष कर रहे पारा टीचर और आंगनबाड़ी में तैनात सहायक और सेविका उनकी मांगों के प्रति सहानुभूति पूर्वक विचार करना होगा। इनकी मांगों को लेकर नियम सम्मत कार्रवाई राज्य सरकार के लिए महत्वपूर्ण होगी। वही औद्योगिक घरानों के साथ हुए समझौतों को अमलीजामा पहनाना सरकार के समक्ष एक बड़ी चुनौती होगी।

इलेक्शन मेनिफेस्टो को पूरा करना भी होगा एक मुद्दा
दरअसल विधानसभा चुनाव में लोगों के समक्ष जिस तरह से वादे किए गए और इलेक्शन मेनिफेस्टो में जो आश्वासन दिए गए उन्हें पूरा करना भी राज्य सरकार के लिए चुनौती होगी। खासकर बेरोजगारों किसानों और युवाओं के लिए किए गए वादों में बेरोजगारी भत्ता, नौकरी और किसानों के लिए समर्थन मूल्य के बाद सरकार के लिए बड़ी चुनौती होंगे।

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