रांचीः राज्य के पहले मुख्यमंत्री और राजनीतिक दल झारखंड विकास मोर्चा के मुखिया बाबूलाल मरांडी की बीजेपी में घर वापसी के बाद सियासी गलियारे में 'नफे और नुकसान' को लेकर कैलकुलेशन शुरू हो गया है. लंबे कयासों और संभावनाओं के दौर के बाद सोमवार को मरांडी ने अपने दल का बीजेपी में विलय कर लिया. वहीं बीजेपी ने मरांडी के इंतजार में अभी तक झारखंड विधानसभा में अपना नेता नहीं चुना है.
सियासी गलियारों में हो रही चर्चाओं पर नजर डालें तो इस मरांडी की घर वापसी को लेकर बीजेपी बहुत ज्यादा आशान्वित है. पार्टी के अंदरूनी सूत्रों का यकीन करें तो 2019 में हुए विधानसभा चुनाव में करारी शिकस्त के बाद पार्टी के पास सदन में वैसा कोई मजबूत चेहरा नहीं था, जो हाउस में मौजूदा मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन को काउंटर कर सकें.
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मरांडी के लिए व्यक्तिगत रूप से फायदेमंद होगा यह कदम
दरअसल मरांडी झारखंड के पहले मुख्यमंत्री रहे और कोडरमा से सांसद भी रहे. हर विधानसभा चुनाव के बाद उनके दल के विधायक बीजेपी में कथित तौर पर शामिल होते रहे. एक तरफ जहां मरांडी संगठन को मजबूत करने में लगे रहे वहीं दूसरी तरफ उनके जनप्रतिनिधि उनका दामन छोड़ कर चले गए. ऐसे में मरांडी के लिए घर वापसी एक बेहतर विकल्प माना जा रहा है. एक तरफ जहां राष्ट्रीय राजनीतिक दल उनकी घर वापसी हुई. वहीं दूसरी तरफ मौजूदा राजनीतिक परिदृश्य में उन्हें पार्टी झारखंड विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष बनाने के मूड में है.
ट्राइबल लीडर के रूप में पार्टी का चेहरा हो सकते हैं मरांडी
इसके अलावा एक ट्राईबल लीडर के रूप में मरांडी की छवि और मजबूत होगी. 2019 के विधानसभा चुनाव में जिस तरह अनुसूचित जनजाति वाले विधानसभा सीटों पर बीजेपी को शिकस्त मिली है वहां पार्टी बाबूलाल मरांडी के चेहरे पर संगठन मजबूत करने में विचार करेगी. साथ ही मरांडी कुशल संगठनकर्ता भी माने जाते हैं. सारे समीकरणों को जोड़कर देखें तो मरांडी के लिए घर वापसी एक बेहतर माना जा रहा है.
कार्यकर्ताओं के लिए असमंजस की स्थिति
वहीं दूसरी तरफ बीजेपी में उनकी वापसी के बाद पार्टी कार्यकर्ता थोड़े असमंजस वाली स्थिति में आएंगे. एक तरफ जहां लगातार चुनाव में उन्होंने झारखंड विकास मोर्चा के खिलाफ प्रचार किया अब उसी दल के नेता के समर्थन में कसीदे पढ़ने होंगे. अंदरूनी सूत्रों की माने तो इससे बड़ी समस्या मरांडी के साथ बीजेपी में शामिल होने वाले जेवीएम के वैसे नेता होंगे जो अब भाजपा में भी पद की आकांक्षा रखेंगे. ऐसे में बीजेपी के कथित समर्पित कार्यकर्ताओं के आगे विकट स्थिति पैदा हो सकती है.
गैर बीजेपी वोट मिले हैं झाविमो को
वहीं 2006 में झारखंड विकास मोर्चा का गठन कर राजनीतिक उपस्थिति दर्ज कर रहे मरांडी को गैर बीजेपी के वोट मिलते रहे. इतना ही नहीं उनके समर्थक कथित तौर पर गैर बीजेपी विचारधारा वाले लोग रहे. ऐसे में वैसे समर्थकों का बीजेपी से जुड़ा हो कितना हो पाएगा यह फिलहाल कहना मुश्किल है. आंकड़ो पर नजर डालें तो 2019 में हुए विधानसभा चुनाव में झाविमो का टोटल वोट शेयर 6% से अधिक है. जबकि पार्टी ने 81 विधानसभा सीटों पर अपना उम्मीदवार दिए और तीन विधायक जीतकर झारखंड विधानसभा पहुंचे.
डोमिसाइल को लेकर भी मरांडी भी
वहीं राज्य में डोमिसाइल पॉलिसी को लेकर मरांडी के कार्यकाल में जली आग की चिंगारी अभी भी लोगों के दिलों में है. ऐसे में उनका बीजेपी में एक्सेप्टेंस कितना हो पाएगा यह आने वाला वक्त बताएगा. इन सबके बीच मरांडी ने साफ तौर पर कहा कि वह बीजेपी में झाड़ू लगाने को भी तैयार है.
क्या दावा है राजनीतिक दलों का
वहीं इस बाबत झारखंड प्रदेश कांग्रेस कमेटी के प्रवक्ता लाल किशोर नाथ शाहदेव ने कहा कि मरांडी शुरू सही बीजेपी की बी टीम के रूप में काम करते रहे हैं. उनके बीजेपी में शामिल होने से यूपीए को कोई फर्क नहीं पड़ने वाला. उन्होंने कहा कि मरांडी ने कांग्रेस से समर्थन लेकर पिछला चुनाव लड़ा था और इस बार भी महागठबंधन की सरकार को समर्थन दिया लेकिन उनके इस यू-टर्न से कोई फर्क नहीं पड़ने वाला.