हैदराबादः देश का आम बजट 2022 जनता के बीच केंद्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने रख दिया, बहुत सारी योजनाओं को उसमें शामिल किया गया है. इसमें भारत की आजादी के 100 साल पूरा होने पर देश के विकास की जो दिशा देनी है, उसका पूरा खाका भी खींच दिया गया है. तमाम बड़ी योजनाओं को सदन के पटल पर रखा गया है और इसके बारे में बताया गया है. लेकिन एक बहुत बड़ी योजना जिसके बारे में बजट भाषण में सिर्फ एक लाइन में कह दिया गया, वह इतनी बड़ी है कि अगर वह अपना जमीनी स्वरूप लेती है तो भारत की आर्थिक संरचना भारत की धार्मिक संरचना और सांस्कृतिक संरचना इतनी मजबूत होगी कि जब भारत आजादी के 100 साल पर खुद को देखेगा तो विकास की एक बहुत बड़ी इबारत लिख चुका होगा.
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2022 के बजट भाषण में केंद्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने गंगा नदी को लेकर एक बड़ी परियोजना को सबके सामने रखा और यह भी बताया कि गंगा नदी के दोनों तरफ 5 किलोमीटर तक विशेष कृषि जोन बनाकर इसे विकसित किया जाएग, सदन में पढ़े जा रहे बजट भाषण में इस योजना पर भले ही वित्त मंत्री ने बहुत कुछ नहीं बोला हो लेकिन अगर यह योजना जमीन पर उतर आई तो देश को बोलने के लिए बहुत कुछ मिल जाएगा.
भारतीय संस्कृति की शुरुआत पर नजर डालें तो गंगा नदी किनारे हमारी सभ्यता विकसित हुई है, पूरे भारत में 2071 किलोमीटर के प्रवाह क्षेत्र के साथ गंगा नदी देश के 27% हिस्से के साथ लोगों से सीधे जुड़ी है, भारत की 17 करोड़ से ज्यादा की आबादी गंगा से सरोकार रखती है और देश का 10 लाख वर्ग किलोमीटर उपजाऊ क्षेत्र गंगा नदी से जुड़ा हुआ है.
देश के कायाकल्प की बुनियादः गंगा नदी में सिर्फ पानी नहीं बहता बल्कि देश के विकास की अविरल धारा भी साथ-साथ चलती है. केंद्रीय वित्त मंत्री ने 2022 के बजट भाषण में गंगा नदी के 5 किलोमीटर के दोनों छोर को विशेष रूप से विकसित करने की योजना को चालू करने का जो प्रारूप रखा है, वह निश्चित तौर पर उत्तराखंड, उत्तर प्रदेश, बिहार, झारखंड और पश्चिम बंगाल के लिए नया जीवन देने जैसी किसी बड़ी योजना से कम नहीं होगा. उत्तराखंड, उत्तर प्रदेश, बिहार, झारखंड और पश्चिम बंगाल की लगभग 5 करोड़ से ज्यादा आबादी गंगा नदी पर निर्भर है और इनके जीने का आधार भी गंगा नदी ही है. ऐसे में अगर 5 किलोमीटर के दायरे को विकसित किया जाता है और सरकार का उस पर विशेष काम होता है तो निश्चित तौर पर करोड़ों रोजगार सृजित होंगे और ना जाने कितना जीवन नए भारत को गढ़ने में अपना योगदान देगा.
यूपी, बिहार और पश्चिम बंगाल तक को फायदाः बात गंगा नदी की करें वर्तमान में गंगा का जो स्वरूप है, उस पर काम करने की इस योजना को लेकर केंद्र सरकार नीति बनाने जा रही है. उसमें एक बहुत बड़ा तबका जिनका जीवन गंगा से प्रभावित होता है, उसे एक दिशा मिलेगी. पूरे देश के 102 ऐसे जिले हैं जिनका सरोकार गंगा से जुड़ा हुआ है. बात शहरों की करें तो उत्तराखंड के 16 शहर यूपी के 21, बिहार के 18, झारखंड के दो और पश्चिम बंगाल के 40 ऐसे शहर हैं, जिनका पूरा स्वरूप ही गंगा पर निर्भर है.
अगर गंगा इन शहरों के पास नहीं होती तो शायद इन शहरों का स्वरूप भी कुछ अलग होता. लेकिन दुखद पहलू यह है कि भारत के यही 97 जिले गंगा में इतना प्रदूषण करते हैं कि गंगा को शुद्ध करने के लिए केंद्र सरकार को नमामि गंगे जैसी योजना को लाना पड़ गया . गंगा को जीवनदायिनी बनाने के लिए 5 किलोमीटर के जिस विस्तार वाली योजना पर सरकार काम करने की नीति बना रही है. वह करोड़ों परिवार के जीवन का इतना बड़ा आधार होगा कि उनकी पूरी जिंदगी ही बदल जाएगी.
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इतनी नदियां मिलती हैं गंगाः गंगा की 5 किलोमीटर के दोनों किनारों पर जिस विकास वाली योजना पर सरकार काम करना चाह रही है. ग्रुप पर काम होता है तो निश्चित तौर पर एक बहुत बड़ी दुनिया खड़ी की जा सकती है. गंगा जिस ग्लेशियर से निकलती है उसके बारे में यह कहा जा रहा है कि 2030 तक वह पूरी तौर पर पिघल जाएगा, जो गंगा के अस्तित्व के लिए भी खतरनाक है. गंगा के पूरे भारत के स्वरूप की बात करें तो 350 से ज्यादा नदियां गंगा में मिलती हैं और 35 बड़ी नदी हैं जो सीधे तौर पर गंगा में पानी डालती हैं.
बिहार के 26 जिलों पर प्रभावः गंगा में पानी डालने वाली नदियां बारिश की नदियों के तौर पर जानी जाती हैं और इनमें से अधिकांश नदियां पानी बारिश के समय में ही गंगा में डालती हैं और गंगा में आने वाले इस पानी का ही स्वरूप नियंत्रित नहीं होने के कारण बिहार, उत्तर प्रदेश, झारखंड और पश्चिम बंगाल का बड़ा भाग बारिश में डूब जाता है. बात उत्तर प्रदेश की करें तो उत्तर प्रदेश के 24 जिले ऐसे हैं जो गंगा के बाढ़ से प्रभावित होते हैं. जबकि बिहार के 26 जिले पूरे तौर पर बाढ़ की चपेट में होते हैं, जिसमें गंगा और कोसी दोनों नदियों का पानी होता है. इनकी बाढ़ की विभीषिका लोगों को ऐसा दर्द दे जाती है जो लोगों को पलायन की पीड़ा से जूझने के लिए मजबूर कर देती है. यह गंगा के किनारे बसने वाले आम लोगों के जीवन की सामान्य नियति बन गई है कि जब भी बारिश का मौसम आता है हजारों परिवार बेघर हो जाते हैं लाखों की संपत्ति गंगा में कटकर बह जाती है अगर सरकार 5 किलोमीटर के दोनों तरफ के गंगा को और वहां बसने वाले लोगों के लिए योजना लाती है तो निश्चित तौर पर गंगा एक नए भारत का निर्माण करेगी.
नेचुरल फ्लो का क्या होगाः बिहार बाढ़ नियंत्रण को लेकर कई शोध पुस्तक लिख चुके डॉ. रंजीत कुमार ने बताया कि जिस तरह की योजना केंद्र सरकार बना रही है उसमें एक बात अभी भी साफ नहीं है कि गंगा के नेचुरल फ्लो को लेकर सरकार की क्या योजना है. हालांकि उन्होंने यह कहा कि अगर सरकार 5 किलोमीटर को एरिया को विकसित करने की योजना ला रही है तो निश्चित तौर पर गंगा को और उसके किनारे लोगों के जीवन को दिशा मिलेगी लगातार हो रहे कटाव से एक तरफ जहां गंगा का कैश पैड एरिया बड़ा है.
डॉ. रंजीत कुमार का कहना है कि लगातार कटाव के कारण फॉरेस्ट एरिया घटा है. गंगा को बचाने के लिए यह जरूरी है कि गंगा और छोटी नदियों से कटाव को रोका जाए. अगर गंगा के कैचमेंट एरिया को और नहीं बढ़ने दिया जाए और कटाव को रोक दिया जाए तो निश्चित तौर पर गंगा के किनारे बसे 5 किलोमीटर के क्षेत्र से इतना विकास जरूर हो जाएगा कि देश की जीडीपी को अर्श तक पहुंचाने की इबारत लिख जाएगी लेकिन जरूरत इस बात की है कि सरकार इस योजना को बना ररी है तो उसको धरातल पर उतार दे. ऐसा ना हो कि नमामि गंगे योजना का हाल इस योजना का विश्वरूप बन जाए.
गंगा के 5 किलोमीटर के दायरे को विकसित करने की योजना पर सरकार काम कर रही है उसमें कई ऐसी योजनाएं हैं जो लंबे समय तक वहां के लोगों को रोजगार भी दे सकती हैं. इससे आमदनी बढ़ने के साथ उन्हें खाने पीने के लिए दिक्कत नहीं होगी. अगर 5 किलोमीटर की एरिया में सरकार कुछ ऐसे काम कर दे तो बदलाव बहुत कम समय में ही दिखने लगेगा.
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गंगा किनारे कराए जा सकते हैं ये काम
- गंगा के किनारे बसे गांव जो 5 किलोमीटर के दायरे में आते हैं वहां तालाब बनवाकर बारिश के पानी का संरक्षण करवा दिया जाए.
- सिंचाई की समुचित व्यवस्था हो जाने के बाद अब ऐसे क्षेत्र जो उपजाऊ होने के बाद भी सिंचाई के अभाव में सिंगल क्रोप्लैंड होकर रह गए हैं, वहां पर मल्टी क्रॉपिंग हो जाएगी.
- गंगा के किनारे गंगा नर्सरी तैयार कराई जा सकती है, जिससे पर्यावरण संरक्षण को बढ़ावा मिल सकता है.
- लगातार कटाव के कारण गंगा के किनारे वन क्षेत्र घटा है. ऐसे में पौधों को लगा कर के गंगा किनारे वन क्षेत्र भी बढ़ाया जा सकता है और फलदार वृक्ष लगाकर एक बड़ा उद्यान खड़ा किया जा सकता है जो गंगा के 5 किलोमीटर के क्षेत्र में इतना बड़ा उद्यम खड़ा कर देगा जिसमें करोड़ों लोगों को रोजगार मिल जाएगा.
- इसमें सबसे बड़ा काम सरकार को यह भी करना होगा कि उद्यमों से निकलने वाले प्रदूषित जल को रोका जाए और उसके लिए जल शुद्धीकरण का संयंत्र लगाने के बाद ही पानी को गंगा में डालने दिया जाए.
- गंगा के मैदानी भाग में जो लगभग 10 लाख वर्ग किलोमीटर का उपजाऊ क्षेत्र है वहां जैविक खेती के माध्यम से रोजगार सृजन किया जा सकता है और गंगा को बचाने की मुहिम को दिशा भी दी जा सकती है.
पर्यावरणविद की यह है रायः बिहार बाढ़ नियंत्रण को लेकर कई शोध पुस्तक लिख चुके डॉ. रंजीत कुमार का कहना है कि सरकार अगर इस योजना पर काम करना शुरू करती है और ईमानदारी से बजट की फाइल में ही नहीं रहती है तो निश्चित तौर पर गंगा देश में विकास की नई इबारत लिख देंगी.
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2022 के बजट में केंद्रीय मंत्री निर्मला सीतारमण के अभिभाषण में एक लाइन ही सही. लेकिन गंगा के 5 किलोमीटर के क्षेत्र को विकसित करने की योजना को सरकार ने अपनी नीतियों में शामिल किया है. वह देश के विकास की ऐसी रूपरेखा तय करेगा जिसके बाद सरकार को संभवत करोड़ों रोजगार को बताने का अवसर मिल जाए. आज से अगर इस बात की शुरुआत की जाए तो इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता कि पूरे विश्व में होने वाली पानी की किल्लत भारत में कभी नहीं आएगी.
भारत के पास इतना पर्याप्त पानी होगा कि उसे किसी भी तरह की दिक्कत ही नहीं होगी और उसमें गंगा एक ऐसी नदी है जिसमें सिर्फ साफ कर दिया जाए तो बिना किसी फिल्टर वाटर के गंगा का पानी सीधे पिया भी जा सकता है. अब जरूरत इस बात की है कि 5 किलोमीटर को विकसित करने का काम केंद्र सरकार की नीतियों में बजट के समय बताया गया है. अगर वह जमीन पर उतरता है तो देश हर साल के बजट में गंगा के 5 किलोमीटर के क्षेत्र से होने वाले राजस्व की आमदनी रोजगार के अवसर और भारत की सामाजिक राजनीतिक और आर्थिक संरचना के विकास का नया गजट पेश करेगी. बस जरूरत इस बात की है कि जिस योजना को बजट के समय लाया गया है उसे जमीन पर उतार दिया जाए.