रांची: राज्य गठन के बाद से ही झारखंड में रोजी-रोजगार बड़ा मुद्दा रहा है. नियोजन को लेकर सरकार की स्पष्ट नीति नहीं होना यहां के युवाओं को ससमय नौकरी मिलने में सबसे बड़ी बाधा रही है. यही वजह है कि झारखंड का स्थापना काल के बाद से अब तक युवा सड़क से लेकर सदन तक में संघर्ष करते रहे हैं. दरअसल, नियोजन नीति स्थानीयता से जुड़ा मुद्दा है. इसको लेकर आज तक जो भी सरकार ने नीतियां बनाई, वह एक के बाद एक असंवैधानिक होती चली गई. जिसका खामियाजा छात्रों को उठाना पड़ा है.
15 नवंबर 2000 को झारखंड गठन के बाद पहली बार मुख्यमंत्री बने बाबूलाल मरांडी का कार्यकाल डोमिसायल को लेकर दागदार रहा है. इसे लोग आज भी नहीं भूल पाए हैं. बाबूलाल मरांडी के कार्यकाल से बनी नियोजन नीति सह डोमिसायल नीति वर्तमान हेमंत सरकार तक जारी रही है, जो एक के बाद एक झारखंड हाईकोर्ट से खारिज होती चली गई हैं. ऐसे में ना केवल सरकार की फजीहत हुई है, बल्कि यहां के युवा अवसर से वंचित होते रहे हैं.
राज्य गठन के बाद ये नियुक्तियां रही सुर्खियों में
- जेपीएससी सिविल सेवा सहित विभिन्न परीक्षा जिसकी चल रही है सीबीआई जांच.
- झारखंड विधानसभा में की गई नियुक्तियां, जो आज भी बनी है सुर्खी.
- झारखंड कर्मचारी चयन आयोग द्वारा आयोजित हाईस्कूल शिक्षक नियुक्ति परीक्षा 2016.
- सोनी कुमारी बनाम राज्य सरकार के केस में रघुवर सरकार की नियोजन नीति हुई अदालत में खारिज.
- सोनी कुमारी केस में फैसला आते ही एक झटके में आधा दर्जन से अधिक नियुक्ति विज्ञापन जेएसएससी द्वारा खारिज होते ही बन गई सुर्खी.
- हेमंत सरकार के द्वारा झारखंड सरकार के ग्रेड थ्री के पदों के लिए मैट्रिक-इंटर की अनिवार्यता को हाईकोर्ट ने किया खारिज.
ऐसे में कैसे भरेंगे सरकारी बाबू के पद: इन सबके बीच झारखंड में नियुक्ति प्रक्रिया चलती रही.इस दौरान आयोजित परीक्षा में भ्रष्टाचार के भी आरोप लगते रहे हैं. जेपीएससी सिविल सेवा परीक्षा सुर्खियों में बनी रही, जिसकी जांच सीबीआई के जिम्मे है. इसी तरह विधानसभा में इंदरसिंह नामधारी और आलमगीर आलम के कार्यकाल में हुई नियुक्ति भी आज तक जांच के घेरे में है. झारखंड सरकार के विभिन्न विभागों में कुल 5,33,737 पद स्वीकृत हैं. इसके विरुद्ध करीब 1,96000 पदों पर कर्मचारी कार्यरत हैं. आंकड़ों के अनुसार राज्य गठन के बाद से अगस्त 2023 तक राज्य प्रशासनिक सेवा से लेकर तृतीय और चतुर्थ वर्ग के पदों पर करीब 1 लाख 74 हजार नियुक्तियां हुई हैं. राज्य गठन के वक्त संयुक्त बिहार के समय कैडर विभाजन के तहत झारखंड कोटे में आए 70% कर्मचारी सेवानिवृत्त हो चुके हैं.
झारखंड राज्य कर्मचारी महासंघ के प्रदेश मंत्री मृत्युंजय कुमार झा के अनुसार वर्तमान समय में आउटसोर्सिंग और संविदा पर कर्मचारियों की भर्ती कर काम चलाया जा रहा है. जो भी कर्मचारी और पदाधिकारी पदस्थापित हैं उन्हें दो से तीन विभागों की जिम्मेदारी देकर किसी तरह सरकारी कार्य निष्पादित हो रहा है. चतुर्थ वर्ग की स्थायी नौकरी पूर्णत: बंद है.