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दक्षिण भारत में निर्यात होता है पलामू का पत्ता, प्रसिद्ध बालाजी मंदिर में इसी पत्ते पर मिलता है प्रसाद - पलामू से पत्तों का निर्यात

झारखंड के पलामू जिले में एक ऐसा भी कारोबार है जहां सिर्फ पत्ते का व्यापार होता है. पलामू के जंगली इलाकों में पाए जाने वाला महुलाम के पत्तों का निर्यात दक्षिण भारत के कई राज्यों में होता है. विश्व प्रसिद्ध बालाजी मंदिर में भी पलामू से निर्यात हुए महुलाम पत्ते पर प्रसाद बंटता है.

Palamu leaf is exported to South India
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Published : Feb 12, 2020, 5:18 PM IST

पलामू: महुलाम एक ऐसा शब्द है जिसे दक्षिण भारत के राज्यों में बड़े सम्मान के साथ लिया जाता है. महुलाम जंगली पौधे का नाम है. जिसके पत्ते को दक्षिण भारत के राज्यों में होने वाले शुभ और सांस्कृतिक कार्यो में इस्तेमाल किया जाता है. जिसका निर्यात पलामू के बाजार से होता है.

देखें पूरी खबर

झारखंड के पलामू जिले में एक ऐसा भी कारोबार है जहां सिर्फ पत्ते का व्यापार होता है. पलामू के जंगली इलाकों में पाए जाने वाला महुलाम के पत्तों का निर्यात दक्षिण भारत के कई राज्यों में होता है. इन पत्तों का उपयोग वहां के लोग अपने सांस्कृतिक और पूजा-पाठ के कार्यों में करते हैं. महुलाम झारखंड, छत्तीसगढ़, ओडिशा समेत देश के कई जंगली इलाकों में मिलता है. महुलाम के पत्ते में ही दक्षिण भारत के राज्यों के मंदिरों में प्रसाद बंटता है. विश्व प्रसिद्ध बालाजी मंदिर में भी पलामू से निर्यात हुए महुलाम पत्ते पर प्रसाद बंटता है. कभी महुलाम पत्तें के निर्यात के मामले में पलामू का इकतरफा कब्जा था, लेकिन आज हालात कुछ और है.

ये भी पढ़ें- संथाल परगना के छात्रों को मिलेगा 9.5 करोड़ का ये खास तोहफा, हाईटेक होंगी सुविधाएं

90 के दशक में ट्रेनों से होता था निर्यात

नब्बे के दशक में झारखंड के पलामू प्रमंडल से प्रति साल रेलवे के 400 वैगन से अधिक महुलाम पत्ता का निर्यात दक्षिण भारत के राज्यों में किया जाता था, लेकिन आज स्थिति कुछ और है और इसका निर्यात अब ट्रकों से होता है. महुलाम पत्ते के बड़े कारोबारी जिले के प्रसिद्ध कोरोबारी ज्ञानचंद पांडेय बताते है कि दक्षिण भारत के राज्यों में महुलाम के पत्ते का बड़ा महत्व है. इसका व्यापार धीरे-धीरे कम हो रहा है. उन्होंने बताया कि महुलाम का पत्ता घने जंगलों में पाया जाता है, लेकिन आज जंगल ही कम हो गए हैं, जिसके कारण महुलाम पत्ते का कारोबार में कमी आई है. महुलाम एक लत्तर पौधा है, जो दूसरे पेड़ों पर चढ़ कर फलता-फूलता है.

30 रुपए प्रति किलो बिकता है पत्ता

महुलाम पत्ते का कोरोबार से जुड़े कारोबारी ज्ञानचंद पांडेय बताते हैं कि इस कारोबार के लिए सरकार कोई रॉयल्टी नहीं लेती है. महुलाम का पता कभी दो से तीन रुपए प्रति किलो बिकता था, लेकिन आज के समय में यह 30 रुपए प्रति किलो बिकता है. एक ट्रक में करीब 4 लाख का पत्ता आता है, जो दक्षिण भारत के राज्यों में 5.5 लाख से 6 लाख में बिकता है. मजदूर महुलाम के पत्ते को तोड़ते हैं फिर उसे सुखाते हैं और उसके बाद महुलाम पत्ते को बाजार में लाते हैं. ज्ञानचंद पांडेय बताते है कि इसका खुला व्यापार ने मजदूरों को प्रभावित किया है. विभाग महुलाम के पत्ते पर कोई रॉयल्टी नहीं लेती है. जिससे व्यापार में काफी सहुलियत मिलती है. महुलाम का पत्ता लातेहार के गारू और बारेसाढ़ के जंगलों में बड़े पैमाने पर पाया जाता है, लेकिन यह इलाका टाइगर रिजर्व है.

पलामू: महुलाम एक ऐसा शब्द है जिसे दक्षिण भारत के राज्यों में बड़े सम्मान के साथ लिया जाता है. महुलाम जंगली पौधे का नाम है. जिसके पत्ते को दक्षिण भारत के राज्यों में होने वाले शुभ और सांस्कृतिक कार्यो में इस्तेमाल किया जाता है. जिसका निर्यात पलामू के बाजार से होता है.

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झारखंड के पलामू जिले में एक ऐसा भी कारोबार है जहां सिर्फ पत्ते का व्यापार होता है. पलामू के जंगली इलाकों में पाए जाने वाला महुलाम के पत्तों का निर्यात दक्षिण भारत के कई राज्यों में होता है. इन पत्तों का उपयोग वहां के लोग अपने सांस्कृतिक और पूजा-पाठ के कार्यों में करते हैं. महुलाम झारखंड, छत्तीसगढ़, ओडिशा समेत देश के कई जंगली इलाकों में मिलता है. महुलाम के पत्ते में ही दक्षिण भारत के राज्यों के मंदिरों में प्रसाद बंटता है. विश्व प्रसिद्ध बालाजी मंदिर में भी पलामू से निर्यात हुए महुलाम पत्ते पर प्रसाद बंटता है. कभी महुलाम पत्तें के निर्यात के मामले में पलामू का इकतरफा कब्जा था, लेकिन आज हालात कुछ और है.

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90 के दशक में ट्रेनों से होता था निर्यात

नब्बे के दशक में झारखंड के पलामू प्रमंडल से प्रति साल रेलवे के 400 वैगन से अधिक महुलाम पत्ता का निर्यात दक्षिण भारत के राज्यों में किया जाता था, लेकिन आज स्थिति कुछ और है और इसका निर्यात अब ट्रकों से होता है. महुलाम पत्ते के बड़े कारोबारी जिले के प्रसिद्ध कोरोबारी ज्ञानचंद पांडेय बताते है कि दक्षिण भारत के राज्यों में महुलाम के पत्ते का बड़ा महत्व है. इसका व्यापार धीरे-धीरे कम हो रहा है. उन्होंने बताया कि महुलाम का पत्ता घने जंगलों में पाया जाता है, लेकिन आज जंगल ही कम हो गए हैं, जिसके कारण महुलाम पत्ते का कारोबार में कमी आई है. महुलाम एक लत्तर पौधा है, जो दूसरे पेड़ों पर चढ़ कर फलता-फूलता है.

30 रुपए प्रति किलो बिकता है पत्ता

महुलाम पत्ते का कोरोबार से जुड़े कारोबारी ज्ञानचंद पांडेय बताते हैं कि इस कारोबार के लिए सरकार कोई रॉयल्टी नहीं लेती है. महुलाम का पता कभी दो से तीन रुपए प्रति किलो बिकता था, लेकिन आज के समय में यह 30 रुपए प्रति किलो बिकता है. एक ट्रक में करीब 4 लाख का पत्ता आता है, जो दक्षिण भारत के राज्यों में 5.5 लाख से 6 लाख में बिकता है. मजदूर महुलाम के पत्ते को तोड़ते हैं फिर उसे सुखाते हैं और उसके बाद महुलाम पत्ते को बाजार में लाते हैं. ज्ञानचंद पांडेय बताते है कि इसका खुला व्यापार ने मजदूरों को प्रभावित किया है. विभाग महुलाम के पत्ते पर कोई रॉयल्टी नहीं लेती है. जिससे व्यापार में काफी सहुलियत मिलती है. महुलाम का पत्ता लातेहार के गारू और बारेसाढ़ के जंगलों में बड़े पैमाने पर पाया जाता है, लेकिन यह इलाका टाइगर रिजर्व है.

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