पलामू: जमीन विवाद का जिक्र होने के साथ ही पलामू का दशकों पुराना इतिहास एक नजर में सामने आने लगता है. नक्सलवाद से निकल कर अपराध तक का सफर इस जमीन विवाद ने किया है. पलामू में नक्सलवाद की जड़ में है जमीन विवाद. जबकि पिछले एक दशक में विवाद का अपराधीकरण हुआ है. पलामू में होने वाले हर 10 अपराध में 5 से 7 अपराध जमीन विवाद से जुड़े हुए हैं. जमीन विवाद को सुलझाने में पीढ़ियां गुजर गईं, लेकिन नहीं हुआ समस्या का समाधान. पलामू के थानों में दर्ज होने वाले 40 से 50 प्रतिशत एफआईआर में कहीं न कहीं जमीन विवाद की भूमिका होती है.
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नक्सल हुए कमजोर, लेकिन जमीन की समस्या बरकरार
नक्सल नेता युगल पाल बताते हैं कि नक्सल बेहद कमजोर हो गए, यूं कहें कि खात्मे पर हैं. लेकिन जमीन की समस्या बनी की बनी हुई है. राजनीतिक दल आजसू के केंद्रीय नेता इम्तियाज अहमद नजमी बताते हैं कि 80 के दशक के बाद से ही जमीन का विवाद है. किसी भी घटना में जमीन की समस्या जड़ में है. यह समस्या विकराल रूप धारण कर रही है, इसका समाधान जरूरी है.
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80 के दशक के बाद जमीन विवाद में कई बड़ी घटनाएं
पलामू में 80 के दशक के बाद जमीन विवाद में कई बड़ी घटनाएं हुई हैं. 1984 में पहली नक्सल हत्या भी जमीन विवाद में हुई थी. उसके बाद से मनातू, चैनपुर, रंका, बिश्रामपुर, नामुदाग, नावाजयपुर, हुसैनाबाद, नौडीहा बाजार, पांडु, पांकी के इलाके में राज परिवार और जमींदारों के साथ जमीन के विवाद में लंबा संघर्ष हुआ और हजारों की जान गई. बिहार से झारखंड अलग होने के बाद जमीन का अपराधीकरण शुरू हुआ और हत्याओं का दौर शुरू हुआ. 2013 से जून 2020 तक पलामू में 852 हत्या हुई हैं. जिसमें से 550 से अधिक हत्या जमीन विवाद में ही हुई है. हाल के दिनों की बात करें तो 28 जुलाई को लेस्लीगंज थाना क्षेत्र में जमीन विवाद में एक मां और उसके दो बेटों की गाड़ी से टक्कर मारकर हत्या कर दी गई थी.