पलामू: झारखंड बिहार सीमा पर बसा है चक गांव, इस गांव की जिक्र आते ही माओवादी हिंसा का इतिहास नजर आने लगता है. आज पूरा देश कोरोना संक्रमण को रोकने के लिए एक महीने से अधिक समय से लॉकडाउन है लेकिन चक के लोग पहले भी माओवादियों के भय से दो सालों तक लॉकडाउन रहा है. आज यह इलाका कोरोना वायरस के संक्रमण को रोकने के लिए लॉकडाउन है. यह इलाका कभी माओवादियों की राजधानी मानी जाती थी लेकिन सुरक्षाबलों के लगातार अभियान के बाद इस इलाके में माओवादी कमजोर हो गए है.
लोग दो सालों तक रहे कैद
चक के सत्येंद्र यादव बताते है वे दो सालों तक कैद रहे है, ना यंहा बाजार खुली थी ना ही यहां किसी गाड़ी को आने जाने की इजाजत थी. इसी तरह चक के ही रंजीत नाम के युवा बताता है कि अब इलाके में शांति है, लोग कोरोना को लेकर जागरूक हुए है और लॉकडाउन के महत्व को समझ रहे हैं.
माओवादियों ने इलाके में लगाई थी नाकाबंदी
2007-08 में झारखंड पुलिस ने चक में पिकेट की स्थापना की थी. पिकेट के विरोध में माओवादियों ने चक की नाकेबंदी कर दी थी. इलाके में किसी भी प्रकार की आर्थिक गतिविधि पर माओवादियों ने प्रतिबंध लगाते हुए फौजी कार्रवाई की धमकी भी दिया था. इस दौरान चक पिकेट पर हमला हुआ था, चक स्कूल को विस्फोट कर नष्ट कर दिया था. पिकेट से बाहर निकले जवानो पर माओवादियों ने हमला किया था। सुरक्षाबलो के लगातार अभियान के बाद 2010 के अंतिम महीनों में माओवादियों ने अपने फरमान को वापस लिया। इन दो वर्षों में चक की करीब 40 प्रतिशत आबादी पलायन कर गई थी.
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अब इलाके का बदल गया है माहौल
चक के इलाके का 10 सालों में माहौल बदल गया है. यह इलाका पलामू प्रमंडलीय मुख्यालय मेदिनीनगर से 70 किलोमीटर की दूरी पर है. चक का प्रखंड मुख्यालय मनातू है जो 14 किलोमीटर की दूरी पर है. चक में माओवादियों का खौफ इतना था कि 14 किलोमीटर रोड बनाने के लिए सरकार को सात बार टेंडर निकालना पड़ा था. छह बार माओवादियों के भय से किसी ने रोड का टेंडर नहीं डाला था. केंद्र सरकार के पहल पर रोड बन कर तैयार हुआ है. इलाके में अब गाड़ियां चलने लगी है, बाजार की रौनक लौट आई है.