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आदिम जनजाति परिवार पीढ़ियों से कर रहा मधु और मोम का उत्पादन, पलाश ब्रांड उत्पादों को देगा नई पहचान

पलामू के सरगुजा और समरलेटा गांव के दर्जनों परिवार पारंपरिक तरीके से मधु और मोम का उत्पादन कर रहे हैं लेकिन उनके उत्पाद को उचित मूल्य नहीं मिलता. उत्पाद को पलाश ब्रांड से जोड़ने की योजना है ताकि उनके उत्पादों को उचित मूल्य मिल सके. आदिम जनजाति परिवार को कई योजनाओं से जोड़ा जाएगा ताकि उनके स्वरोजगार को बढ़ावा दिया जा सके.

honey and wax made in palamu
पलामू के सरगुजा और समरलेटा में मधु और मोम का उत्पादन
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Published : Mar 30, 2021, 5:26 PM IST

Updated : Mar 30, 2021, 7:02 PM IST

पलामू: पलामू प्रमंडलीय मुख्यालय से करीब 80 किलोमीटर दूर सरगुजा और समरलेटा दो गांव है. जहां पूरा देश अब आत्मनिर्भर बनने की बात कर रहा है वहीं ये दोनों गांव पहले से ही आत्मनिर्भर हैं. घोर नक्सल इलाका मनातू में पड़ने वाले दोनों गांव में एक दर्जन से अधिक परिवार मधु और मधुमक्खी के छत्ते से मोम बनाने के काम से जुड़े हुए हैं. लेकिन, एक दिक्कत है और वह कि इनके उत्पाद को बाजार में उचित मूल्य नहीं मिल पाता. इसी वजह से ये लोग मुख्य धारा से काफी अलग हैं. लेकिन, अब इनके उत्पादों की पूरी कीमत मिल सकेगी. उत्पादों को पलाश ब्रांड से जोड़ने की योजना बनाई जा रही है ताकि इसका उचित मूल्य मिल सके. आदिम जनजाति परिवार के बीच कई दिनों से काम कर रही कुमारी नम्रता बताती हैं कि आदिम जनजाति परिवार को कई योजनाओं से जोड़ा जाएगा ताकि उनके स्वरोजगार को बढ़ावा दिया जा सके.

देखें स्पेशल रिपोर्ट

यह भी पढ़ें: रांची में महिला ने एकसाथ 3 बच्चों को दिया जन्म, जच्चा और बच्चा दोनों स्वस्थ

ऐसे तैयार करते हैं मधु और मोम

आदिम जनजाति परिवार के लोग होली और दीवाली से पहले मोम को तैयार करते हैं. इससे पहले घने जंगल और पहाड़ों पर मधुमक्खी के छत्ते की तलाश शुरू होती है. लोग आग के जरिए और पेड़ के पत्ते से मधुमक्खी को भगाते हैं. मधुमक्खी के छत्ते को गर्म पानी में उबाला जाता है. उसके बाद उसे धूप में सुखाया जाता है और फिर ठंडे पानी से छाना जाता है. मोम की कीमत बाजार में 200 रुपए प्रति किलो और मधु 500 से 600 रुपए प्रति किलो बेचा जाता है. एक सीजन में पूरा परिवार 10 हजार रुपए कमाता है.

honey and wax made in palamu
दीवाली और होली से पहले मधुमक्खी से छत्ते से मोम तैयार करते हैं लोग.

दोनों गांव में बुनियादी सुविधाओं का अभाव

दोनों गांव में बुनियादी सुविधाओं का अभाव है. दोनों गांव में पंहुचने के लिए सिर्फ एक कच्चा रास्ता है और दस किलोमीटर का सफर तय करने में एक घंटे से अधिक वक्त लगता है. लोग सरकार से मधुमक्खी पालन को लेकर सुविधाओं की मांग कर रहे हैं. आदिम जनजाति को सरकार ने संरक्षित श्रेणी में रखा है. उनके लिए कई योजनाएं शुरू की गई है. समरलेटा और सरगुजा का कोई भी ग्रामीण पांचवीं से ऊपर की पढ़ाई नहीं किया है. बच्चे पांच किलोमीटर जंगलों में पैदल चल कर स्कूल जाते हैं. आदिम जनजाति परिवार पैदल मनातू तक का सफर तय करते हैं.

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उत्पादों को पलाश ब्रांड से जोड़ने के बाद ग्रामीणों को काफी लाभ होगा.

कई योजनाओं पर चल रहा काम

जिला कल्याण पदाधिकारी सुभाष कुमार बताते हैं कि दोनों गांव में कई योजनाओं पर काम चल रहा है. आने वाले दिनों में सभी समस्याओं को समाधान होगा. गांव में पीने के पानी की समस्या जल्द दूर होगी. जिन लोगों का मकान नहीं बना है उन्हें भी योजना का लाभ दिया जाएगा. अगर आने वाले वक्त में गांव में सारी सुविधाएं बहाल हो जाती है और इनके उत्पाद को पलाश ब्रांड से जोड़ा जाता है तो ग्रामीणों को न सिर्फ लाभ होगा बल्कि उनका जीवन स्तर भी ऊपर उठेगा. उन्हें उनका वाजिब हक मिल सकेगा.

पलामू: पलामू प्रमंडलीय मुख्यालय से करीब 80 किलोमीटर दूर सरगुजा और समरलेटा दो गांव है. जहां पूरा देश अब आत्मनिर्भर बनने की बात कर रहा है वहीं ये दोनों गांव पहले से ही आत्मनिर्भर हैं. घोर नक्सल इलाका मनातू में पड़ने वाले दोनों गांव में एक दर्जन से अधिक परिवार मधु और मधुमक्खी के छत्ते से मोम बनाने के काम से जुड़े हुए हैं. लेकिन, एक दिक्कत है और वह कि इनके उत्पाद को बाजार में उचित मूल्य नहीं मिल पाता. इसी वजह से ये लोग मुख्य धारा से काफी अलग हैं. लेकिन, अब इनके उत्पादों की पूरी कीमत मिल सकेगी. उत्पादों को पलाश ब्रांड से जोड़ने की योजना बनाई जा रही है ताकि इसका उचित मूल्य मिल सके. आदिम जनजाति परिवार के बीच कई दिनों से काम कर रही कुमारी नम्रता बताती हैं कि आदिम जनजाति परिवार को कई योजनाओं से जोड़ा जाएगा ताकि उनके स्वरोजगार को बढ़ावा दिया जा सके.

देखें स्पेशल रिपोर्ट

यह भी पढ़ें: रांची में महिला ने एकसाथ 3 बच्चों को दिया जन्म, जच्चा और बच्चा दोनों स्वस्थ

ऐसे तैयार करते हैं मधु और मोम

आदिम जनजाति परिवार के लोग होली और दीवाली से पहले मोम को तैयार करते हैं. इससे पहले घने जंगल और पहाड़ों पर मधुमक्खी के छत्ते की तलाश शुरू होती है. लोग आग के जरिए और पेड़ के पत्ते से मधुमक्खी को भगाते हैं. मधुमक्खी के छत्ते को गर्म पानी में उबाला जाता है. उसके बाद उसे धूप में सुखाया जाता है और फिर ठंडे पानी से छाना जाता है. मोम की कीमत बाजार में 200 रुपए प्रति किलो और मधु 500 से 600 रुपए प्रति किलो बेचा जाता है. एक सीजन में पूरा परिवार 10 हजार रुपए कमाता है.

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दीवाली और होली से पहले मधुमक्खी से छत्ते से मोम तैयार करते हैं लोग.

दोनों गांव में बुनियादी सुविधाओं का अभाव

दोनों गांव में बुनियादी सुविधाओं का अभाव है. दोनों गांव में पंहुचने के लिए सिर्फ एक कच्चा रास्ता है और दस किलोमीटर का सफर तय करने में एक घंटे से अधिक वक्त लगता है. लोग सरकार से मधुमक्खी पालन को लेकर सुविधाओं की मांग कर रहे हैं. आदिम जनजाति को सरकार ने संरक्षित श्रेणी में रखा है. उनके लिए कई योजनाएं शुरू की गई है. समरलेटा और सरगुजा का कोई भी ग्रामीण पांचवीं से ऊपर की पढ़ाई नहीं किया है. बच्चे पांच किलोमीटर जंगलों में पैदल चल कर स्कूल जाते हैं. आदिम जनजाति परिवार पैदल मनातू तक का सफर तय करते हैं.

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उत्पादों को पलाश ब्रांड से जोड़ने के बाद ग्रामीणों को काफी लाभ होगा.

कई योजनाओं पर चल रहा काम

जिला कल्याण पदाधिकारी सुभाष कुमार बताते हैं कि दोनों गांव में कई योजनाओं पर काम चल रहा है. आने वाले दिनों में सभी समस्याओं को समाधान होगा. गांव में पीने के पानी की समस्या जल्द दूर होगी. जिन लोगों का मकान नहीं बना है उन्हें भी योजना का लाभ दिया जाएगा. अगर आने वाले वक्त में गांव में सारी सुविधाएं बहाल हो जाती है और इनके उत्पाद को पलाश ब्रांड से जोड़ा जाता है तो ग्रामीणों को न सिर्फ लाभ होगा बल्कि उनका जीवन स्तर भी ऊपर उठेगा. उन्हें उनका वाजिब हक मिल सकेगा.

Last Updated : Mar 30, 2021, 7:02 PM IST

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