पलामूः झारखंड के साथ-साथ बिहार से सटे हुए इलाकों में सोमवार को करमा पूजा धूमधाम से मनाई जा रही है. करमा पूजा से जुड़ी कई धार्मिक मान्यताएं हैं और इसका अपना इतिहास भी है. करमा पूजा का इतिहास बिहार के रोहतास किला से भी जुड़ा हुआ.
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इतिहासकार इस संबंध में कई बिंदुओं पर जानकारी और करमा पूजा के बारे में बताते हैं. इतिहासकार बताते हैं कि कैसे आक्रमणकारियों से बचने के लिए एक करम पेड़ के नीचे कुड़ुख समाज के लोगों ने शरण ली थी. पलामू के जीएलए कॉलेज के शिक्षक बर्नाड टोप्पो ने बताया कि ये बात सन 1200 के आसपास की है, जब रोहतास स्टेट में कुड़ुख समाज का समावेश था और उनका व्यापार फल-फूल रहा था. उस दौरान आक्रमणकारियों ने रोहतास किला पर हमला करने की योजना तैयार की. इसकी जानकारी दो भाई करमा और धरमा को जानकारी मिली.
दोनों भाइयों ने तत्कालीन राजा को इसकी जानकारी दी और आक्रमण से बचने ले लिए कुड़ुख समाज के लोगों ने रोहतास की गुफाओं में शरण ली. इसी किले के पास एक बड़े करम के पेड़ के नीचे सात दिन और सात रातों तक कुड़ुख समाज की महिलाएं और बच्चे छुपे हुए थे. इस घटना के बाद से करम पेड़ का महत्व कुड़ुख समाज में काफी माना जाता है और इसकी पूजा की जाती है. करमा पूजा के दिन करम पेड़ पर रक्षा सूत्र बांधकर बहनें करमा और धरमा की तरह अपनी रक्षा के लिए का वचन अपने भाइयों से लेती हैं
सोमवार को पलामू के जीएलए कॉलेज परिसर में करमा पूजा महोत्सव का आयोजन किया गया. यह आयोजन आदिवासी छात्रों के द्वारा किया गया, जिसमें बड़ी संख्या में लोगों ने भाग लिया. इस दौरान पूजा का आयोजन कर सुख समृद्धि की कामना की गई. इसके बाद छात्र-छात्राओं ने मांदर की थाप पर पारंपरिक नृत्य के साथ अखरा में झूमते-गाते इस उत्सव को मनाया.