पलामूः झारखंड की ग्रामीण कला सोहराय पेंटिंग ने देश भर के चित्रकारों का ध्यान अपनी ओर खींचा है. नेतरहाट की खुबसूरत वादियों में आयोजित प्रथम राष्ट्रीय आदिवासी लोक कलाकार पेंटिंग शिविर में सोहराई कला से देश भर के कलाकार मंत्रमुग्ध हो गए. इस शिविर में लगभग16 राज्यों के कलाकारों ने भाग लिया जिसमें उन्होंने अपनी-अपनी कला का प्रदर्शन किया. इस कड़ी में राज्य के हजारीबाग जिले के कलाकारों ने भी अपनी कला सोहराई पेंटिंग का प्रदर्शन किया. सोहराई पेंटिंग बनाने वाली टीम का नेतृत्व अल्का इमाम ने किया, उन्होंने बताया कि पद्मश्री बुलू इमाम ने 1991 में सोहराय कला की खोज की और दुनिया भर में पहचान दिलायी.
सोहराय पेंटिंग हजारीबाग के इलाके में मौजूद है. हजारों वर्ष पुरानी यह कला सबका अपनी तरफ ध्यान आकर्षित करती है. अल्का इमाम ने बताया कि सोहराई पेंटिंग गुफाओं से निकलकर अब घर के दीवारों पर उकेरी जाती है. खास कर दिवाली के मौके पर यह पेंटिग बनाई जाती है. इस पेटिंग को बनाने में प्राकृतिक रंगों का इस्तेमाल किया जाता है. मिट्टी से ही इस पेंटिंग को तैयार किया जाता है. यह पेंटिंग प्रकृति के इतने करीब है कि इस पर जंगल, जानवर, पेड़-पौधे ही बनाए जाते हैं. अल्का इमाम बताती हैं कि ग्रामीण परिवेश में होने के कारण कलाकार अपने आस-पास जो देखते हैं उसे ही अपनी कला का रूप देते हैं.
बता दें कि नेतरहाट में प्रथम राष्ट्रीय आदिवासी लोक कलाकार पेंटिंग शिविर का आयोजन 10 से 15 फरवरी तक किया गया. हालांकि सोहराय पेंटिंग को केंद्र सरकार से स्टेट पेंटिंग की मान्यता मिल चुकी है. शिविर के बाद यह उम्मीद जताई जा रही कि यह कला झारखंड से निकल कर अन्य राज्यों तक पंहुचेगी.