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नक्सलियों के गढ़ में बदल गई है फिजा, सुरक्षाबलों की मौजूदगी में लोकतंत्र हो रहा मजबूत - सुरक्षाबलों की मौजूदगी

पलामू, गढ़वा और लातेहार के कई इलाके घोर नक्सल प्रभावित माने जाते हैं, लेकिन अब इन इलाकों में विकास का काम तेजी से हो रहा है. लोग मुख्यधारा से जुड़ रहे हैं. कई ऐसे इलाके हैं जहां स्वतंत्रता दिवस और गणतंत्रता दिवस पर पहली बार झंडोतोलन किया गया. लोगों का विश्वास पुलिस और सुरक्षाबल पर बढ़ा है.

फाइल फोटो
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Published : Aug 17, 2019, 1:46 PM IST

पलामूः लाल आतंक के इलाके में बुलेट की आवाज अब इतिहास बनती जा रही है. अब इस इलाके में बूट की आवाज के लोग आदि बन गए है. लोकतंत्र को मजबूत करने में लोगों का भी सहयोग मिल रहा है. पलामू, गढ़वा और लातेहार के वो इलाके जो नक्सलियों का गढ़ माना जाता था, अब इन इलाकों की फिजा बदल रही है.

देखें पूरी खबर

इन इलाकों में कभी लाल आतंक में स्वतंत्रता दिवस और गणतंत्र दिवस पर तिरंगा नहीं फहराया जाता था. अब यहां शान से तिरंगा लहरा रहा है. ऐसा एक दिन में नहीं हुआ, पिछले कुछ सालों में सुरक्षाबलों और पुलिस की मौजूदगी में यह बदलाव हुआ है. सुरक्षाबलों पर ग्रामीणों का विश्वास बढ़ा है.

कभी नक्सलियों का था भय, गांव में नहीं बना था रोड, नहीं आते थे शिक्षक

नक्सलियों ने गढ़वा लातेहार और छतीसगढ़ सीमा से सटे बूढ़ा पहाड़ से लेकर पलामू और बिहार के गया औरंगाबाद सीमा तक एक रेड कॉरिडोर बना दिया था. इस कॉरिडोर में नक्सलियों के इजाजत के बिना एक पत्ता भी नहीं हिलता था. ग्रामीण बताते है कि अब माहौल बदल गया है. पुलिस के आने के बाद गांव में रोड बन गया है. शिक्षक आने लगे हैं. बाजार लगने लगा है. गांव में कभी झंडोतोलन नहीं होता था, अब होने लगा है. दो सालों में पलामू, लातेहार और गढ़वा के इलाके में 45 के करीब पुलिस पिकेट बने है. सभी पुलिस पिकेट नक्सलियों के मांद में है. पलामू के मंसुरिया और लातेहार के मारोमार में स्वतंत्रता दिवस पर पहली बार झंडोतोलन हुआ है.

ये भी पढ़ें- पलामू रेंज पुलिस मॉब लिंचिंग के खिलाफ चला जा रही है जागरुकता अभियान, कानून हाथ में ना लेने की दी जा रही हिदायत

पलामू रेंज के डीआईजी विपुल शुक्ला बताते हैं कि सुरक्षाबलों की मौजूदगी में माहौल बदला है. जहां-जहां भी पुलिस पिकेट बने हैं, वहां तेजी से विकास हुआ है. जिससे लोग मुख्यधारा से जुड़े है. पिकेट से नक्सल हीट इलाकों में विकास का द्वार खुला है.

पलामूः लाल आतंक के इलाके में बुलेट की आवाज अब इतिहास बनती जा रही है. अब इस इलाके में बूट की आवाज के लोग आदि बन गए है. लोकतंत्र को मजबूत करने में लोगों का भी सहयोग मिल रहा है. पलामू, गढ़वा और लातेहार के वो इलाके जो नक्सलियों का गढ़ माना जाता था, अब इन इलाकों की फिजा बदल रही है.

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इन इलाकों में कभी लाल आतंक में स्वतंत्रता दिवस और गणतंत्र दिवस पर तिरंगा नहीं फहराया जाता था. अब यहां शान से तिरंगा लहरा रहा है. ऐसा एक दिन में नहीं हुआ, पिछले कुछ सालों में सुरक्षाबलों और पुलिस की मौजूदगी में यह बदलाव हुआ है. सुरक्षाबलों पर ग्रामीणों का विश्वास बढ़ा है.

कभी नक्सलियों का था भय, गांव में नहीं बना था रोड, नहीं आते थे शिक्षक

नक्सलियों ने गढ़वा लातेहार और छतीसगढ़ सीमा से सटे बूढ़ा पहाड़ से लेकर पलामू और बिहार के गया औरंगाबाद सीमा तक एक रेड कॉरिडोर बना दिया था. इस कॉरिडोर में नक्सलियों के इजाजत के बिना एक पत्ता भी नहीं हिलता था. ग्रामीण बताते है कि अब माहौल बदल गया है. पुलिस के आने के बाद गांव में रोड बन गया है. शिक्षक आने लगे हैं. बाजार लगने लगा है. गांव में कभी झंडोतोलन नहीं होता था, अब होने लगा है. दो सालों में पलामू, लातेहार और गढ़वा के इलाके में 45 के करीब पुलिस पिकेट बने है. सभी पुलिस पिकेट नक्सलियों के मांद में है. पलामू के मंसुरिया और लातेहार के मारोमार में स्वतंत्रता दिवस पर पहली बार झंडोतोलन हुआ है.

ये भी पढ़ें- पलामू रेंज पुलिस मॉब लिंचिंग के खिलाफ चला जा रही है जागरुकता अभियान, कानून हाथ में ना लेने की दी जा रही हिदायत

पलामू रेंज के डीआईजी विपुल शुक्ला बताते हैं कि सुरक्षाबलों की मौजूदगी में माहौल बदला है. जहां-जहां भी पुलिस पिकेट बने हैं, वहां तेजी से विकास हुआ है. जिससे लोग मुख्यधारा से जुड़े है. पिकेट से नक्सल हीट इलाकों में विकास का द्वार खुला है.

Intro:नक्सलियों के गढ़ में बदल गई है फिजा, सुरक्षाबलों की मौजूदगी में लोकतंत्र हो रहा मजबूत

नीरज कुमार । पलामू

लाल आतंक के इलाके में बुलेट की आवाज कब इतिहास बनते जा रही है , अब उस इलाके में बूट की आवाज के लोग आदि बन गए हैं और लोकतंत्र को मजबूत करने में लगे हैं। पलामू, गढ़वा और लातेहार के वो इलाके जो नक्सलियों का गढ़ माना जाता था अब उस इलाके की फिजा बदल रही है। कभी लाल आतंक में स्वतंत्रता दिवस और गणतंत्र दिवस पर तिरंगा नही फहराया जाता था अब उस इलाके में शान से तिरंगा लहरा रहा है। ऐसा एक दिन में नही हुआ है पिछले कुछ वर्षों में सुरक्षाबलों और पुलिस की मौजूदगी में यह बदलाव हुआ है। सुरक्षाबलों पर ग्रामीणों का विश्वास बढ़ा है।


Body:कभी नक्सलियों का था भय , गांव में नही बनता था रोड नही आते थे शिक्षक

नक्सलियों ने गढ़वा लातेहार और छतीसगढ़ सीमा से सटे बूढ़ापहाड़ से लेकर पलामू और बिहार के गया औरंगाबाद सीमा तक एक रेड कॉरिडोर बना दिया था। इस कॉरिडोर में नक्सलियों के इजाजत के बिना एक पता भी नही हिलता था। ग्रामीण बताते है कि अब माहौल बदल गया है, पुलिस के आने में बाद गांव में रोड बन गया है। शिक्षक आने लगे हैं, बाजार लगने लगा है। गांव में कभी झंडतोतोलन नही होता था अब होने लगा है। दो वर्षों में पलामू लातेहार और गढ़वा के इलाके में 45 के करीब पुलिस पिकेट बने है। सभी पुलिस पिकेट नक्सलियों के मांद में है। पलामू के मंसुरिया और लातेहार के मारोमार में स्वतंत्रता दिवस पर पहली बार झंडतोतोलन हुआ है।


Conclusion:पलामू रेंज के डीआईजी विपुल शुक्ला बताते है कि सुरक्षाबलों की मौजूदगी में माहौल बदला है। यंहा जंहा भी पिकेट बने हैं वंहा वंहा तेजी से विकास कार्य हुआ है जिस कारण लोग मुख्यधारा से जुड़े हैं। पिकेट से नक्सल हीट इलाके में विकास का द्वार खुला है।
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