पलामूः लाल आतंक के इलाके में बुलेट की आवाज अब इतिहास बनती जा रही है. अब इस इलाके में बूट की आवाज के लोग आदि बन गए है. लोकतंत्र को मजबूत करने में लोगों का भी सहयोग मिल रहा है. पलामू, गढ़वा और लातेहार के वो इलाके जो नक्सलियों का गढ़ माना जाता था, अब इन इलाकों की फिजा बदल रही है.
इन इलाकों में कभी लाल आतंक में स्वतंत्रता दिवस और गणतंत्र दिवस पर तिरंगा नहीं फहराया जाता था. अब यहां शान से तिरंगा लहरा रहा है. ऐसा एक दिन में नहीं हुआ, पिछले कुछ सालों में सुरक्षाबलों और पुलिस की मौजूदगी में यह बदलाव हुआ है. सुरक्षाबलों पर ग्रामीणों का विश्वास बढ़ा है.
कभी नक्सलियों का था भय, गांव में नहीं बना था रोड, नहीं आते थे शिक्षक
नक्सलियों ने गढ़वा लातेहार और छतीसगढ़ सीमा से सटे बूढ़ा पहाड़ से लेकर पलामू और बिहार के गया औरंगाबाद सीमा तक एक रेड कॉरिडोर बना दिया था. इस कॉरिडोर में नक्सलियों के इजाजत के बिना एक पत्ता भी नहीं हिलता था. ग्रामीण बताते है कि अब माहौल बदल गया है. पुलिस के आने के बाद गांव में रोड बन गया है. शिक्षक आने लगे हैं. बाजार लगने लगा है. गांव में कभी झंडोतोलन नहीं होता था, अब होने लगा है. दो सालों में पलामू, लातेहार और गढ़वा के इलाके में 45 के करीब पुलिस पिकेट बने है. सभी पुलिस पिकेट नक्सलियों के मांद में है. पलामू के मंसुरिया और लातेहार के मारोमार में स्वतंत्रता दिवस पर पहली बार झंडोतोलन हुआ है.
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पलामू रेंज के डीआईजी विपुल शुक्ला बताते हैं कि सुरक्षाबलों की मौजूदगी में माहौल बदला है. जहां-जहां भी पुलिस पिकेट बने हैं, वहां तेजी से विकास हुआ है. जिससे लोग मुख्यधारा से जुड़े है. पिकेट से नक्सल हीट इलाकों में विकास का द्वार खुला है.