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पाकुड़: मवेशी चराने वाली आदिवासी महिलाओं ने ऐसे बदली अपनी जिंदगी, कमा रहीं हजारों रुपए प्रतिमाह

जब इरादा मजबूत होता है तो कोई भी काम आसान हो जाता है. इसके लिए जरुरत है दृढ संकल्प की. ऐसा ही कुछ कर दिखाया है पाकुड़ की आदिवासी महिलाओं ने जो काबिले तारीफ है. इससे हर महिलाओं को सीखने की जरुरत है, ताकि अपने पैरों पर खड़े हो सके.

पाकुड़ में पत्ता प्लेट निर्माण कर महिलाएं कमा रही हजारों
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Published : Jun 5, 2020, 7:31 PM IST

Updated : Jun 5, 2020, 7:58 PM IST

पाकुड़: इंसान जब चाह ले तो कोई भी काम नामुमकिन नहीं हो सकता. इसके लिए जरुरत है सिर्फ मजबूत इरादों की, जिसे चरितार्थ कर रही है झारखंड के सबसे पिछड़े और नक्सल प्रभावित क्षेत्र की पहचान बनाने वाले अनुसूचित जनजाति बहुल लिट्टीपाड़ा प्रखंड की ग्रामीण महिलाए. इस प्रखंड की महिलाएं कभी मवेशियों को चराने का काम करती थी, लेकिन पत्ता प्लेट बनाकर आज हजारों रुपए प्रतिमाह की कमा कर रही हैं.

देखें स्पेशल खबर

महिलाओं के मान-सम्मान बढ़ाने का काम

गांव की इन महिलाओं में बदलाव लाने का काम राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन से हुआ है. इस योजना के तहत गांव की महिलाओं को स्वावलंबी बनाने और समाज को मुख्यधारा से जोड़ने की सरकार की योजना का ही परिणाम है कि महिलाएं खुद तो कमा रही है, साथ ही अपने बाल बच्चों को भी बेहतर शिक्षा मुहैया करा रही है. यूं कहे तो सखी मंडलों से जुड़ी गांव की इन महिलाओं के मान सम्मान बढ़ाने का काम एनआरएलएम के तहत झारखंड स्टेट लाइवलीहुड प्रमोशन सोसाइटी ने किया है.

लॉकडाउन के बावजूद कमाई

गांव की महिलाएं पत्ता प्लेट का निर्माण कर पहले इसकी बिक्री किराना दुकानों, होटलों में किया करती थी. जब से लॉकडाउन लागू हुआ है, सखी दीदी मुख्यमंत्री दाल भात केंद्र और मुख्यमंत्री दीदी किचन को पत्ता प्लेट मुहैया करा कर हर महीने हजारों रुपए की आमदनी कर रही है. झारखंड स्टेट लाइवलीहुड प्रमोशन सोसाइटी की ओर से गठित हरियाली स्वयं सहायता समूह जोरडीहा और सरस्वती आजीविका महिला स्वयं सहायता समूह बड़ाघघरी से जुड़ी यह सखी दीदी पहले प्रशिक्षण लेकर कुशल बनी और आज वह अपने हाथ के हुनर का लाभ घरों में ही पत्ता प्लेट बनाकर उठा रखी हैं और आर्थिक रूप से मजबूत भी हो रही है.

ये भी पढ़ें-महिला सशक्तिकरण का उदाहरण हैं नीलिमा तिग्गा, 18,000 महिलाओं के साथ कर रहीं है क्षेत्र का विकास

जिंदगी में बदलाव

पाकुड़ जिले के लिट्टीपाड़ा प्रखंड के अधिकांश गांव पहाड़ों और जंगलों से घिरे हुए हैं, जहां बड़े पैमाने पर सखुआ के पेड़ है. इन्हीं सखुआ पेड़ के पत्तों से जोरडीहा और बड़ाघघरी पंचायत में पत्ता प्लेट निर्माण का काम चल रहा है. पहले इन पंचायत की महिलाएं हफ्ते में ढाई सौ से तीन सौ रुपये कमाती थी, लेकिन जब से ये महिलाएं राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन से जुड़ी, इनकी जिंदगी में बदलाव हो रहा है.

बचत के लेखा-जोखा का प्रशिक्षण

एनआरएलएम के तहत झारखंड स्टेट लाइवलीहुड प्रमोशन सोसाइटी ने पहले गांव की महिलाओं को स्वयं सहायता समूह से जोड़कर इन्हें हुनर सिखाया, साथ ही लेन-देन, बैंक में जमा और निकासी के अलावा बचत की आदत और लेखा-जोखा का प्रशिक्षण दिया. जब महिलाएं पूरी तरह हुनरमंद हो गयी तो इनके ही पारंपरिक कारोबार पत्ता प्लेट निर्माण के काम से जोड़ा गया. शुरुआती दौर में इन महिलाओं ने हाथ से पत्ता प्लेट बनाने का काम किया था, जिसमें समय भी ज्यादा लगते थे और आमदनी भी कम होती थी.

ये भी पढ़ें-लोहरदगा: मौसम पर मेहनत भारी, नाशपाती की खेती से खुशहाल हो रहे किसान

सरकार के सहयोग का नतीजा

समूह की सखी दीदियों ने जिला प्रशासन से पत्ता प्लेट बनाने की मशीन की मांग की और उनकी इस इच्छा को जिला प्रशासन ने पूरा किया. इन्हें पता प्लेट मशीन दिया गया और उसके बाद प्रतिदिन पांच सौ पत्ता प्लेट का निर्माण कर रही है. एक प्लेट में 50 पैसे की आमदनी इन्हें हो रही है. कई ऐसे किराना दुकानदार और होटल कारोबार से जुड़े लोग इनके घरों पर ही बनाए गए पता प्लेट की खरीदारी करने पहुंच रहे हैं. सखी मंडल से जुड़ी महिलाओं की इच्छाशक्ति और मेहनत सरकार के सहयोग का ही नतीजा है.

ये भी पढ़ें-विश्व पर्यावरण दिवसः सैंड आर्टिस्ट ने आकृति बनाकर दिया पर्यावरण संरक्षण का संदेश

महिलाएं हो रही आर्थिक रूप से मजबूत

सालों पहले जो साल के पत्ते दूसरे राज्यों में जाया करते थे आज उसका इस्तेमाल ग्रामीण महिलाएं कर आर्थिक रूप से मजबूत हो रही हैं. जिला प्रशासन की पहल पर राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन के तहत ग्रामीण महिलाओं को पता प्लेट निर्माण जैसे कुटीर उद्योग से जोड़ने का निर्णय झारखंड स्टेट लाइवलीहुड प्रमोशन सोसाइटी ने तीन साल पहले किया था. प्रशिक्षण के बाद इन्हें इस कारोबार से जोड़ा गया. ग्रामीण महिलाओं को पूंजी के साथ-साथ पत्ता प्लेट निर्माण के मशीन भी दिए गए हैं.

स्वाभिमान से जी रही है महिलाएं

सरकार की ग्रामीण विकास विभाग की एनआरएलएम योजना में पहाड़ों और जंगलों से आच्छादित गांव की महिलाओं के जीवन स्तर में जबरदस्त बदलाव लाया है. आज कमाई कर रही महिलाएं न केवल सम्मान और स्वाभिमान से जी रही हैं, बल्कि अपने बच्चों को बेहतर शिक्षा के साथ नामी-गिरामी स्कूलों में भी पढ़ाने का काम कर रही है. यदि सरकार ने इन आदिवासी ग्रामीण महिलाओं के समूह को अनियमित विद्युत आपूर्ति से उत्पन्न समस्या का निदान कर दिया तो गांव में चल रहा यह कारोबार न केवल बृहद रूप लेगा, बल्कि इससे जुड़ी महिलाएं आगे और अधिक कमाई कर सकेगी.

पाकुड़: इंसान जब चाह ले तो कोई भी काम नामुमकिन नहीं हो सकता. इसके लिए जरुरत है सिर्फ मजबूत इरादों की, जिसे चरितार्थ कर रही है झारखंड के सबसे पिछड़े और नक्सल प्रभावित क्षेत्र की पहचान बनाने वाले अनुसूचित जनजाति बहुल लिट्टीपाड़ा प्रखंड की ग्रामीण महिलाए. इस प्रखंड की महिलाएं कभी मवेशियों को चराने का काम करती थी, लेकिन पत्ता प्लेट बनाकर आज हजारों रुपए प्रतिमाह की कमा कर रही हैं.

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महिलाओं के मान-सम्मान बढ़ाने का काम

गांव की इन महिलाओं में बदलाव लाने का काम राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन से हुआ है. इस योजना के तहत गांव की महिलाओं को स्वावलंबी बनाने और समाज को मुख्यधारा से जोड़ने की सरकार की योजना का ही परिणाम है कि महिलाएं खुद तो कमा रही है, साथ ही अपने बाल बच्चों को भी बेहतर शिक्षा मुहैया करा रही है. यूं कहे तो सखी मंडलों से जुड़ी गांव की इन महिलाओं के मान सम्मान बढ़ाने का काम एनआरएलएम के तहत झारखंड स्टेट लाइवलीहुड प्रमोशन सोसाइटी ने किया है.

लॉकडाउन के बावजूद कमाई

गांव की महिलाएं पत्ता प्लेट का निर्माण कर पहले इसकी बिक्री किराना दुकानों, होटलों में किया करती थी. जब से लॉकडाउन लागू हुआ है, सखी दीदी मुख्यमंत्री दाल भात केंद्र और मुख्यमंत्री दीदी किचन को पत्ता प्लेट मुहैया करा कर हर महीने हजारों रुपए की आमदनी कर रही है. झारखंड स्टेट लाइवलीहुड प्रमोशन सोसाइटी की ओर से गठित हरियाली स्वयं सहायता समूह जोरडीहा और सरस्वती आजीविका महिला स्वयं सहायता समूह बड़ाघघरी से जुड़ी यह सखी दीदी पहले प्रशिक्षण लेकर कुशल बनी और आज वह अपने हाथ के हुनर का लाभ घरों में ही पत्ता प्लेट बनाकर उठा रखी हैं और आर्थिक रूप से मजबूत भी हो रही है.

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जिंदगी में बदलाव

पाकुड़ जिले के लिट्टीपाड़ा प्रखंड के अधिकांश गांव पहाड़ों और जंगलों से घिरे हुए हैं, जहां बड़े पैमाने पर सखुआ के पेड़ है. इन्हीं सखुआ पेड़ के पत्तों से जोरडीहा और बड़ाघघरी पंचायत में पत्ता प्लेट निर्माण का काम चल रहा है. पहले इन पंचायत की महिलाएं हफ्ते में ढाई सौ से तीन सौ रुपये कमाती थी, लेकिन जब से ये महिलाएं राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन से जुड़ी, इनकी जिंदगी में बदलाव हो रहा है.

बचत के लेखा-जोखा का प्रशिक्षण

एनआरएलएम के तहत झारखंड स्टेट लाइवलीहुड प्रमोशन सोसाइटी ने पहले गांव की महिलाओं को स्वयं सहायता समूह से जोड़कर इन्हें हुनर सिखाया, साथ ही लेन-देन, बैंक में जमा और निकासी के अलावा बचत की आदत और लेखा-जोखा का प्रशिक्षण दिया. जब महिलाएं पूरी तरह हुनरमंद हो गयी तो इनके ही पारंपरिक कारोबार पत्ता प्लेट निर्माण के काम से जोड़ा गया. शुरुआती दौर में इन महिलाओं ने हाथ से पत्ता प्लेट बनाने का काम किया था, जिसमें समय भी ज्यादा लगते थे और आमदनी भी कम होती थी.

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सरकार के सहयोग का नतीजा

समूह की सखी दीदियों ने जिला प्रशासन से पत्ता प्लेट बनाने की मशीन की मांग की और उनकी इस इच्छा को जिला प्रशासन ने पूरा किया. इन्हें पता प्लेट मशीन दिया गया और उसके बाद प्रतिदिन पांच सौ पत्ता प्लेट का निर्माण कर रही है. एक प्लेट में 50 पैसे की आमदनी इन्हें हो रही है. कई ऐसे किराना दुकानदार और होटल कारोबार से जुड़े लोग इनके घरों पर ही बनाए गए पता प्लेट की खरीदारी करने पहुंच रहे हैं. सखी मंडल से जुड़ी महिलाओं की इच्छाशक्ति और मेहनत सरकार के सहयोग का ही नतीजा है.

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महिलाएं हो रही आर्थिक रूप से मजबूत

सालों पहले जो साल के पत्ते दूसरे राज्यों में जाया करते थे आज उसका इस्तेमाल ग्रामीण महिलाएं कर आर्थिक रूप से मजबूत हो रही हैं. जिला प्रशासन की पहल पर राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन के तहत ग्रामीण महिलाओं को पता प्लेट निर्माण जैसे कुटीर उद्योग से जोड़ने का निर्णय झारखंड स्टेट लाइवलीहुड प्रमोशन सोसाइटी ने तीन साल पहले किया था. प्रशिक्षण के बाद इन्हें इस कारोबार से जोड़ा गया. ग्रामीण महिलाओं को पूंजी के साथ-साथ पत्ता प्लेट निर्माण के मशीन भी दिए गए हैं.

स्वाभिमान से जी रही है महिलाएं

सरकार की ग्रामीण विकास विभाग की एनआरएलएम योजना में पहाड़ों और जंगलों से आच्छादित गांव की महिलाओं के जीवन स्तर में जबरदस्त बदलाव लाया है. आज कमाई कर रही महिलाएं न केवल सम्मान और स्वाभिमान से जी रही हैं, बल्कि अपने बच्चों को बेहतर शिक्षा के साथ नामी-गिरामी स्कूलों में भी पढ़ाने का काम कर रही है. यदि सरकार ने इन आदिवासी ग्रामीण महिलाओं के समूह को अनियमित विद्युत आपूर्ति से उत्पन्न समस्या का निदान कर दिया तो गांव में चल रहा यह कारोबार न केवल बृहद रूप लेगा, बल्कि इससे जुड़ी महिलाएं आगे और अधिक कमाई कर सकेगी.

Last Updated : Jun 5, 2020, 7:58 PM IST
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