पाकुड़: आज से करीब 270 वर्ष पहले भागलपुर तिलकपुर गांव में एक बच्चे का जन्म हुआ था. परिवार ने मिलकर नाम रखा था तिलका मांझी जिसे लोग जबरा पहाड़िया के नाम भी जानते हैं. ये वो दौर था जब अंग्रेजी हुकूमत धीरे-धीरे हिंदुस्तान में अपना पैर पसार रही थी. 1757 में पलासी और 1765 में बक्सर की लड़ाई जीतने के बाद अंग्रेजों की नजर पहाड़िया धरती पर पड़ी और यहीं से पहाड़ियों का संघर्ष शुरू हुआ. इतिहास के पन्नों को पलटते हैं तो हमें आजादी के लिए पहली क्रांति का जिक्र 1857 में मिलता था. लेकिन, इससे करीब 84 वर्ष पहले झारखंड में पहाड़ियों ने अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ बिगुल फूंक दिया था और अंग्रेजों के छक्के छुड़ा दिए थे.
गोला-बारुद से भी तिलका का मुकाबला नहीं कर पाते थे अंग्रेज
तिलका मांझी जब बड़े हुए तब अंग्रेजों का आतंक देखा. अत्याचार देख तिलका का खून खौल उठता था. अंग्रेजों के खिलाफ तिलका ने जंग की ठान ली. 1770 में जब अकाल पड़ा तब तिलका मांझी ने अंग्रेजी शासन का खजाना लूटकर गरीबों में बांट दिया. विद्रोह की ज्वाला से आदिवासी उनके साथ जुड़ गए. तिलका ने अंग्रेजों और चापलूस सामंतों पर लगातार हमले किए और हर बार उनकी जीत हुई. तिलका गुरिल्ला वार में सबसे तेज थे. यही वजह है कि अंग्रेज गोला बारूद से भी उनका मुकाबला नहीं कर पाते थे. इतिहासकार बताते हैं कि अंग्रेजों का गोला-बारुद खत्म हो जाता था लेकिन तिलका का हथियार खत्म नहीं होता था. तब लड़ाई के लिए संचार का कोई साधन भी नहीं होता था. साल के पत्ते पर ही लिखकर लोगों को संदेश भेजा जाता था. जब गांव में कोई पत्ता लेकर जाता था तब लोग समझ जाते थे कि कोई संदेश आया है.
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जब अंग्रेजों को लगा कि तिलका से लोहा लेना आसान नहीं है तब 'फूट डालो और राज करो' की नीति अपनाई. इसके बाद अंग्रेजों ने 1781 में हिल काउंसिल का गठन किया. पहाड़िया स्वशासन के तहत सरदार, नायब और मांझी का पद सृजित किया गया. अंग्रेजी हुकूमत ने इन पदों पर पहाड़ियों को बहाल किया. तिलका मांझी काउंसिल के सेनापति बनाए गए. पदों पर बैठे लोगों को मासिक भत्ता भी दिया जाता था.
![tilka manjhi](https://etvbharatimages.akamaized.net/etvbharat/prod-images/11340832_1.jpg)
ताड़ के पेड़ पर चढ़कर मारा था कलेक्टर को
काउंसिल गठन के बाद भी तिलका ने देखा कि पहाड़ियों पर लगातार अत्याचार हो रहा है. तिलका अंग्रेजी शासन के अत्याचार के खिलाफ आवाज उठाते रहे. संस्कृति और जमीन को बचाने के लिए अंग्रेजों से संघर्ष जारी रखा. 13 जनवरी 1784 को तिलका मांझी ने ताड़ के पेड़ पर चढ़कर घोड़े पर सवार अंग्रेज कलेक्टर अगस्टस क्लीवलैंड को तीर से मार गिराया. कलेक्टर की मौत से पूरी ब्रिटिश सरकार सदमे में थी. उन्होंने सपने में भी नहीं सोचा था कि जंगलों में रहने वाला कोई आम आदिवासी ऐसी हिमाकत कर सकता है.
गद्दारों की वजह से पकड़े गए थे तिलका
अंग्रेजों ने काफी प्रयास किया लेकिन वे तिलका को नहीं पकड़ सके. इसके बाद अंग्रेजों ने पहाड़ियों को भड़काना शुरू किया और लालच देने लगे. उनके समुदाय के ही कुछ गद्दारों ने अंग्रेजों तक तिलका के बारे में सूचना पहुंचाई. अंग्रेजों ने पहाड़ों की घेराबंदी कर तिलका को पकड़ लिया और भागलपुर ले आए. 13 जनवरी 1785 को महज 35 वर्ष की उम्र में उन्हें फांसी दे दी गई. इतिहास में इसका जिक्र शायद न मिले लेकिन हमारे मुल्क की आजादी के लिए पहली शहादत तिलका मांझी ने दी थी.
कहते हैं कि जब जबरा पहाड़िया को गिरफ्तार किया गया था तब उन्हें घसीटकर भागलपुर लाया गया था ताकि लोग यह देख सकें कि अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ आवाज उठाने का क्या अंजाम होता है. लेकिन अंग्रेजों को हमारी वीरता का अंदाजा नहीं था. थोड़ी देर से सही लेकिन वीर सपूतों ने अंग्रेजों को खदेड़कर ही दम लिया और देश को आजाद कराया.