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राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन ला रहा गरीबों के जीवन में बदलाव, जानें 'गुलबहार' के हौसले व संघर्ष की दास्तां

इंसान में अगर कुछ कर गुजरने की चाहत हो तो वह कुछ भी कर सकता है. कुछ इसी तरह का प्रेरणादायी कार्य किया है, 57 वर्षीय गुलबहार बीवी ने. गुलबहार बीवी के हौसले ने गरीबी को भी मात दी है. अपने कार्य की बदौलत वे अन्य महिलाओं के लिए प्रेरणादायी बनी हुई हैं.

गुलबहार बीवी
गुलबहार बीवी
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Published : Mar 19, 2020, 2:27 PM IST

Updated : Mar 19, 2020, 4:02 PM IST

पाकुड़: इरादे और हौसले यदि बुलंद हो तो असंभव काम भी संभव हो सकता है. ऐसा ही कर दिखाया है 57 वर्षीय अल्पसंख्यक समाज की महिला गुलबहार बीवी ने. गुलबहार बीवी के हौसले ने गरीबी को भी मात दे दी है.

'गुलबहार' के हौसले व संघर्ष की दास्तां.

कड़ी मेहनत और सरकार के सपोर्ट से 2 से 3 हजार की कमाई करने वाली गुलबहार बीवी की जिंदगी में बदलाव ला दिया है. आज वे न केवल 10 से 12 हजार रुपये की मासिक कमाई कर रही है बल्कि रोटी कपड़ा और मकान जैसी बुनियादी सुविधाएं भी हासिल कर ली हैं.

यह सब बदलाव हुआ है ग्रामीण विकास विभाग द्वारा चलाए जा रहे राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन से. गुलबहार की ससुराल की भी हालत इतनी अच्छी नहीं थी कि वह अपना व परिवार का ठीक तरीके से भरण-पोषण कर सके.

गुलबहार ने शुरुआती दौर में छोटे-मोटे तौर पर असमिया चादर बनाना शुरू किया. अपने पति अब्दुल रहीम अंसारी के साथ कदम से कदम मिलाकर उसने चादर तो बनाना शुरू किया पर उसके पास इतने पैसे नहीं थे कि इस कारोबार को बड़ा रूप दे सके.

कुछ साल पहले गुलबहार की जिंदगी में एक नया मोड़ उस वक्त आया जब वह ममता आजीविका सखी मंडल से जुड़ी. सखी मंडल से जुड़ने के बाद गुलबहार को बचत की आदत डालने के साथ-साथ असमिया चादर के कारोबार को बढ़ावा देने के लिए 50 हजार रुपये की आर्थिक मदद झारखंड स्टेट लाइवलीहुड प्रमोशन सोसाइटी ने की.

आर्थिक मदद मिलते ही गुलबहार अपने पति के साथ दिन-रात असमिया चादर बनाने में जुट गयी. वर्षों पहले गुलबहार को एक वक्त भूखे पेट रहना पड़ता था. आज वह अपने व परिवार के साथ शान शौकत की जिंदगी जी रही है.

गुलबहार का बड़ा बेटा मुख्तार अंसारी बीए की पढ़ाई करने के बाद बंगलुरु में पावरोटी फैक्ट्री में काम कर रहा है, जबकि दूसरा बेटे ने इंटर की पढ़ाई पूरी कर ली और उसे बेहतर शिक्षा मुहैया कराने में गुलबहार व उसके पति लगे हुए हैं.

गुलबहार की मेहनत का ही नतीजा है कि वह रसोई गैस में खाना बना रही है और अपना पक्का मकान भी बनवा रही है. जो गुलबहार पहले दो से तीन हजार की कमाई करती थी आज असमिया चादर का कारोबार कर 8 से 10 हजार रुपये प्रति माह आमदनी कर रही है.

यह भी पढ़ेंः चतरा के चंदिया गांव में पगडंडी के सहारे रेंगती है जिंदगी, मूलभूत सुविधाओं ने अछूते हैं लोग

आठवीं पास गुलबहार के हौसले आज बुलंद है. वह जिला मुख्यालय में सरकार से एक दुकान मुहैया कराने की आस लगाए बैठी है. फिलहाल गुलबहार द्वारा तैयार किए गए असमिया चादर हिरणपुर के साप्ताहिक हाट के अलावे आसपास लगने वाले मेलों में उसके पति जाकर भेजते हैं.

उसे एक अलग दुकान नहीं मिल पायी इसलिए उसके पति चादर को फुटपाथ पर बेचते हैं. गुलबहार बीवी द्वारा निर्मित चादर को खरीदने के लिए हिरणपुर प्रखंड के कमलघाटी गांव के ही लोग असमिया चादर उत्पादन केंद्र पर आसपास के लोग पहुंचते हैं. उनके द्वारा 300 से 1,500 तक के चादर व 150 रुपये का असमिया गमछा बनाए जाते हैं और उसे बेचकर आर्थिक रूप से स्वावलंबी बन रही हैं.

पाकुड़: इरादे और हौसले यदि बुलंद हो तो असंभव काम भी संभव हो सकता है. ऐसा ही कर दिखाया है 57 वर्षीय अल्पसंख्यक समाज की महिला गुलबहार बीवी ने. गुलबहार बीवी के हौसले ने गरीबी को भी मात दे दी है.

'गुलबहार' के हौसले व संघर्ष की दास्तां.

कड़ी मेहनत और सरकार के सपोर्ट से 2 से 3 हजार की कमाई करने वाली गुलबहार बीवी की जिंदगी में बदलाव ला दिया है. आज वे न केवल 10 से 12 हजार रुपये की मासिक कमाई कर रही है बल्कि रोटी कपड़ा और मकान जैसी बुनियादी सुविधाएं भी हासिल कर ली हैं.

यह सब बदलाव हुआ है ग्रामीण विकास विभाग द्वारा चलाए जा रहे राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन से. गुलबहार की ससुराल की भी हालत इतनी अच्छी नहीं थी कि वह अपना व परिवार का ठीक तरीके से भरण-पोषण कर सके.

गुलबहार ने शुरुआती दौर में छोटे-मोटे तौर पर असमिया चादर बनाना शुरू किया. अपने पति अब्दुल रहीम अंसारी के साथ कदम से कदम मिलाकर उसने चादर तो बनाना शुरू किया पर उसके पास इतने पैसे नहीं थे कि इस कारोबार को बड़ा रूप दे सके.

कुछ साल पहले गुलबहार की जिंदगी में एक नया मोड़ उस वक्त आया जब वह ममता आजीविका सखी मंडल से जुड़ी. सखी मंडल से जुड़ने के बाद गुलबहार को बचत की आदत डालने के साथ-साथ असमिया चादर के कारोबार को बढ़ावा देने के लिए 50 हजार रुपये की आर्थिक मदद झारखंड स्टेट लाइवलीहुड प्रमोशन सोसाइटी ने की.

आर्थिक मदद मिलते ही गुलबहार अपने पति के साथ दिन-रात असमिया चादर बनाने में जुट गयी. वर्षों पहले गुलबहार को एक वक्त भूखे पेट रहना पड़ता था. आज वह अपने व परिवार के साथ शान शौकत की जिंदगी जी रही है.

गुलबहार का बड़ा बेटा मुख्तार अंसारी बीए की पढ़ाई करने के बाद बंगलुरु में पावरोटी फैक्ट्री में काम कर रहा है, जबकि दूसरा बेटे ने इंटर की पढ़ाई पूरी कर ली और उसे बेहतर शिक्षा मुहैया कराने में गुलबहार व उसके पति लगे हुए हैं.

गुलबहार की मेहनत का ही नतीजा है कि वह रसोई गैस में खाना बना रही है और अपना पक्का मकान भी बनवा रही है. जो गुलबहार पहले दो से तीन हजार की कमाई करती थी आज असमिया चादर का कारोबार कर 8 से 10 हजार रुपये प्रति माह आमदनी कर रही है.

यह भी पढ़ेंः चतरा के चंदिया गांव में पगडंडी के सहारे रेंगती है जिंदगी, मूलभूत सुविधाओं ने अछूते हैं लोग

आठवीं पास गुलबहार के हौसले आज बुलंद है. वह जिला मुख्यालय में सरकार से एक दुकान मुहैया कराने की आस लगाए बैठी है. फिलहाल गुलबहार द्वारा तैयार किए गए असमिया चादर हिरणपुर के साप्ताहिक हाट के अलावे आसपास लगने वाले मेलों में उसके पति जाकर भेजते हैं.

उसे एक अलग दुकान नहीं मिल पायी इसलिए उसके पति चादर को फुटपाथ पर बेचते हैं. गुलबहार बीवी द्वारा निर्मित चादर को खरीदने के लिए हिरणपुर प्रखंड के कमलघाटी गांव के ही लोग असमिया चादर उत्पादन केंद्र पर आसपास के लोग पहुंचते हैं. उनके द्वारा 300 से 1,500 तक के चादर व 150 रुपये का असमिया गमछा बनाए जाते हैं और उसे बेचकर आर्थिक रूप से स्वावलंबी बन रही हैं.

Last Updated : Mar 19, 2020, 4:02 PM IST
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