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अवैध खनन से संकट में बांसलोई नदी का अस्तित्व, जलस्तर पहुंचा काफी नीचे

पाकुड़ में ज्यादा अवैध खनन से बांसलोई नदी सूख गई है. आरोप है कि बालू माफिया और खनन विभाग ने नियमों को ताक पर रखकर बालू खनन किया है.

अवैध खनन से संकट में बांसलोई नदी का अस्तित्व
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Published : Jul 3, 2019, 6:44 PM IST

पाकुड़: जिले में अवैध खनन से बांसलोई नदी का अस्तित्व संकट में आ गया है. यह नदी अब सूखने की कगार पर आ गई है. अधिकारियों और बालू माफिया ने नियम-कानूनो को ताख पर रखकर यहां खनन कराया है. अगर बांसलोई नदी के अस्तित्व को बचाने की दिशा में कोई सार्थक कदम शासन और प्रशासन ने समय रहते नहीं उठाया, तो आने वाले दिनो में यह नदी इतिहास के पन्नों में रह जाएगी. आस-पास के गांव में जलस्तर भी काफी नीचे चला गया है.

वीडियो में देखें पूरी खबर

ग्रामीण एवं शहरी इलाकों में बन रहे मकानों और सरकार की विकास योजनाओं में इस नदी से बालू का दोहन किया गया है. इस नदी की बालू निकटवर्ती पश्चिम बंगाल भी ले जाई जाती है. बीते कई सालों से पर्यावरणीय स्वच्छता की शर्तो का उल्लंघन कर बालू का खनन इस तरह किया गया कि आज नदी में पानी नहीं बचा है. बांसलोई नदी के आस-पास के बाबूपुर, लखीपुर, ग्वालपाड़ा, नुराई, कार्तिकपाड़ा, रोलाग्राम, विष्टुपुर, धोवरना, कुलबोना, चंडालमारा, घाटचोरा, कैराक्षतर सहित दर्जनों गांव के ग्रामीणों को गरमी के मौसम में लोग पानी से परेशान हैं.

अवैध खनन से नदी सूख गई, जिससे जलस्तर काफी नीचे चला गया. इससे पेयजल समस्या के अलावा अपने मवेशियों को पानी पिलाने की समस्या से भी परेशान होना पड़ रहा है. इतना ही नहीं नदी का जलस्तर नीचे चले जाने की वजह से वैसे जीव जंतु जो बालू के नीचे रहते हैं, उनका अस्तित्व भी खत्म हो रहा है. जानकारों के मुताबिक नदी के वॉटर लेवल से 1 से 2 मीटर बालू का स्तर होना जरूरी है. हालांकि जिले के बांसलोई नदी की स्थिति आज यह है कि इसमें बालू कम और मिट्टी का स्तर ज्यादा दिखाई दे रहा है.

जिला खनन पदाधिकारी उत्तम कुमार विश्वास ने बताया कि बांसलोई नदी ही नहीं बल्कि जिले की सभी नदियों में अवैध तरीके से बालू के उठाव पर रोक लगाने को लेकर कार्रवाई की जा रही है. खनन विभाग पर्यावरणीय स्वच्छता की शर्तो का अनुपालन सुनिश्चित करने के लिए भी कदम उठा रहा है.

पाकुड़: जिले में अवैध खनन से बांसलोई नदी का अस्तित्व संकट में आ गया है. यह नदी अब सूखने की कगार पर आ गई है. अधिकारियों और बालू माफिया ने नियम-कानूनो को ताख पर रखकर यहां खनन कराया है. अगर बांसलोई नदी के अस्तित्व को बचाने की दिशा में कोई सार्थक कदम शासन और प्रशासन ने समय रहते नहीं उठाया, तो आने वाले दिनो में यह नदी इतिहास के पन्नों में रह जाएगी. आस-पास के गांव में जलस्तर भी काफी नीचे चला गया है.

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ग्रामीण एवं शहरी इलाकों में बन रहे मकानों और सरकार की विकास योजनाओं में इस नदी से बालू का दोहन किया गया है. इस नदी की बालू निकटवर्ती पश्चिम बंगाल भी ले जाई जाती है. बीते कई सालों से पर्यावरणीय स्वच्छता की शर्तो का उल्लंघन कर बालू का खनन इस तरह किया गया कि आज नदी में पानी नहीं बचा है. बांसलोई नदी के आस-पास के बाबूपुर, लखीपुर, ग्वालपाड़ा, नुराई, कार्तिकपाड़ा, रोलाग्राम, विष्टुपुर, धोवरना, कुलबोना, चंडालमारा, घाटचोरा, कैराक्षतर सहित दर्जनों गांव के ग्रामीणों को गरमी के मौसम में लोग पानी से परेशान हैं.

अवैध खनन से नदी सूख गई, जिससे जलस्तर काफी नीचे चला गया. इससे पेयजल समस्या के अलावा अपने मवेशियों को पानी पिलाने की समस्या से भी परेशान होना पड़ रहा है. इतना ही नहीं नदी का जलस्तर नीचे चले जाने की वजह से वैसे जीव जंतु जो बालू के नीचे रहते हैं, उनका अस्तित्व भी खत्म हो रहा है. जानकारों के मुताबिक नदी के वॉटर लेवल से 1 से 2 मीटर बालू का स्तर होना जरूरी है. हालांकि जिले के बांसलोई नदी की स्थिति आज यह है कि इसमें बालू कम और मिट्टी का स्तर ज्यादा दिखाई दे रहा है.

जिला खनन पदाधिकारी उत्तम कुमार विश्वास ने बताया कि बांसलोई नदी ही नहीं बल्कि जिले की सभी नदियों में अवैध तरीके से बालू के उठाव पर रोक लगाने को लेकर कार्रवाई की जा रही है. खनन विभाग पर्यावरणीय स्वच्छता की शर्तो का अनुपालन सुनिश्चित करने के लिए भी कदम उठा रहा है.

Intro:बाइट : अब्दुल मन्नान, स्थानीय, सफेद शर्त में
बाइट : बाइट : शुभंकर मंडल, टी शर्ट में
बाइट : उत्तम कुमार विश्वास, जिला खनन पदाधिकारी

पाकुड़: जिले की महत्वपूर्ण बांसलोई नदी का अस्तित्व संकट में आ गया है। महत्वपूर्ण इस नदी के दर्जनो स्थानो में खास और झाड़ी उग गये है जो इसकी पहचान को खत्म कर रहा है। ऐसा इसलिए हो रहा है कि इसके दोहन में अधिकारियो एवं बालु माफियाओ ने नियम कानुनो को ताख पर रखकर अबतक सिर्फ अपना ही स्वार्थ साधा है। यदि बांसलोई नदी के अस्तित्व को बचाने की दिशा में कोई सार्थक कदम शासन और प्रशासन ने समय रहते नही उठाया तो आने वाले दिनो में बांसलोई नदी इतिहास के पन्नो का गवाह बनकर रह जायेगा क्योंकि नदी के संकट में आ जाने के कारण फिलवक्त बांसलोई नदी सहित इसके किनारो में स्थित दर्जनो गांवो का जलस्तर काफी नीचे चला गया है। नदी के कटाव का तो कहना ही क्या।



Body:ग्रामीण एवं शहरी इलाको में बन रहे मकानो एवं सरकार की विकास योजनाओ में बालु के इस्तेमाल भी एक महत्वपूर्ण कारण बांसलोई नदी के अस्तित्व को खत्म होने की वजह बतायी जा रही है। जिले का बांसलोई नदी ही है जिसका बालु निकटवर्ती पश्चिम बंगाल भी ले जाया जाता है। बिते कई वर्षो से पर्यावरणीय स्वच्छता की शर्तो का उलंघन कर बालु का उठाव इस तरह किया गया कि आज नदी में भी पानी गरमी के मौसम में नही है। बांसलोई नदी के आसपास के बाबुपुर, लखीपुर, ग्वालपाड़ा, नुराई, कार्तिकपाड़ा, रोलाग्राम, विष्टुपुर, धोवरना, कुलबोना, चंडालमारा, घाटचोरा, कैराक्षतर सहित दर्जनो गांवो के ग्रामीणो को गरमी के मौसम में नदी के सुख जाने की वजह से जलस्तर नीचे चले जाने के कारण पेयजल समस्या के अलावे अपने मवेशियो को पानी पिलाने की समस्या से भी परेशान होना पड़ रहा है। इतना ही नही नदी का जलस्तर नीचे चले जाने की वजह से वैसे जीव जंतु जो बालु के नीचे रहते है उनका अस्तित्व भी खत्म हो रहा है। जानकारो के मुताबिक नदी के वाटर लेवल से 1 से 2 मीटर बालु का स्तर होना जरूरी है परंतु जिले के बांसलोई नदी की स्थिति आज यह है कि इसमें बालु कम और मिट्टी का स्तर ज्यादा दिखाई दे रहा है जिस घास फुस के अलावे झाड़ी जंगल उग गये है। 





Conclusion:जिला खनन पदाधिकारी उत्तम कुमार विश्वास ने बताया कि बांसलोई नदी ही नही बल्कि जिले के सभी नदियों में अवैध तरीके से बालु के उठाव पर रोक लगाने को लेकर कार्रवाई की जा रही है। खनन विभाग पर्यावरणीय स्वच्छता की शर्तो का अनुपालन सुनिश्चित करने के लिए भी कदम उठा रहा है। 
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