पाकुड़: जिले के हजारों पटसन की खेती करने वाले किसानों का न तो सरकार विकास कर पायी है और न ही उनका विश्वास जितने में सफल हो पाई है. ये किसान पटसन की खेती कर किसी तरह कमाई करने को विवश है. इसके लिए केंद्र की मोदी सरकार हो या राज्य की रघुवर की सरकार किसी ने कोई ठोस कदम नहीं उटाया है.
पाकुड़ जिला का एकमात्र सदर प्रखंड, जहां वृहत पैमाने पर हजारों की संख्या में किसान पटसन की खेती किया करते है. पाकुड़ के सदर प्रखंड का इलामी, सितेशनगर, चांचकी, कांकरबोना, उदयनारायणपुर, भवानीपुर, हरिहरा, गंधाईपुर, हरिगंज, मनिरामपुर, जानकीनगर, बल्लभपुर सहित दर्जनो गांव के लगभग 18 सौ एकड़ कृषि योग्य भुमि में पटसन की खेती होती है. सदर प्रखंड के इन गांवों के लगभग 4 से 5 हजार किसान प्रतिवर्ष अपने खेतों में पटसन उपजाया करते है.
इन किसानों को सरकार न तो आर्थिक रूप से कोई सहयोग करती और न ही इन्हें प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना से लाभांवित किया जाता है, लेकिन कृषि विभाग कुछ किसानों को प्रशिक्षण जरूर दिलाता है. किसान सिर्फ सरकार की गलत नीतियों का शिकार ही नहीं हो रहे है, बल्कि इन्हें मौसम की मार भी झेलने को विवश होना पड़ता है. सरकार की उपेक्षा नीति का ही नतीजा है कि पटसन की खेती करने वाले किसानों को अलग राज्य बनने के बाद न तो उचित मूल्य दिलाई गयी और न ही इनके जुट को खरीदने के लिए बाजार मुहैया कराये गए.
वर्षा के मौसम में जहां अधिकांश किसान धान की फसल उपजाने पर अपनी जोर लगाते है, वहीं, सदर प्रखंड के इन गांवों में किसान पटसन की खेती करते है, ताकि वर्षा होने पर धान की फसले जलमग्न हो जाती है और फसलों को सड़ने-गलने का डर रहता है. वहीं, निकटवर्ती पश्चिम बंगाल का बाजार पटसन की खेती करने वाले किसानों को थोड़ी राहत जरूर देता है. जिला मुख्यालय में बाजार की अनुपब्लधता का ही नतीजा है कि इन किसानों को औने-पौने दामों में पटसन बेचने को मजबूर होना पड़ रहा है.
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वहीं, इसको लेकर प्रखंड तकनीकि प्रबंधक मो. समीम ने बताया कि पटसन की खेती करने वाले किसानों को प्रशिक्षण कृषि विभाग मुहैया कराता है. उन्होने कहा कि बाजार की उपलब्धता को लेकर जिला मुख्यालय में जुट कारखाना के लिए डीपीआर बनाया जा रहा है, लेकिन सरकार ने अभी तक इन किसानों के लिए फसल बीमा का कोई प्रावधान नहीं किया है. इस वजह से इन्हें इसका लाभ नही मिल पाता है.