ETV Bharat / state

पटसन की खेती करने वाले किसान परेशान, सरकार नहीं कर रही कोई समाधान - ईटीवी भारत न्यूज

पाकुड़ राज्य का एक मात्र ऐसा जिला है, जहां वृहत पैमाने पर हजारों की संख्या में किसान पटसन की खेती कर जीवन यापन करते है. इन किसानों को सरकार न तो आर्थिक रूप से कोई सहयोग करती और न ही इन्हें प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना से लाभांवित किया जाता है. इस वजह से इनकी हालत दयनीय होती जा रही है.

पटसन की खेती
author img

By

Published : Aug 2, 2019, 12:08 PM IST

पाकुड़: जिले के हजारों पटसन की खेती करने वाले किसानों का न तो सरकार विकास कर पायी है और न ही उनका विश्वास जितने में सफल हो पाई है. ये किसान पटसन की खेती कर किसी तरह कमाई करने को विवश है. इसके लिए केंद्र की मोदी सरकार हो या राज्य की रघुवर की सरकार किसी ने कोई ठोस कदम नहीं उटाया है.

देखें पूरी खबर

पाकुड़ जिला का एकमात्र सदर प्रखंड, जहां वृहत पैमाने पर हजारों की संख्या में किसान पटसन की खेती किया करते है. पाकुड़ के सदर प्रखंड का इलामी, सितेशनगर, चांचकी, कांकरबोना, उदयनारायणपुर, भवानीपुर, हरिहरा, गंधाईपुर, हरिगंज, मनिरामपुर, जानकीनगर, बल्लभपुर सहित दर्जनो गांव के लगभग 18 सौ एकड़ कृषि योग्य भुमि में पटसन की खेती होती है. सदर प्रखंड के इन गांवों के लगभग 4 से 5 हजार किसान प्रतिवर्ष अपने खेतों में पटसन उपजाया करते है.

इन किसानों को सरकार न तो आर्थिक रूप से कोई सहयोग करती और न ही इन्हें प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना से लाभांवित किया जाता है, लेकिन कृषि विभाग कुछ किसानों को प्रशिक्षण जरूर दिलाता है. किसान सिर्फ सरकार की गलत नीतियों का शिकार ही नहीं हो रहे है, बल्कि इन्हें मौसम की मार भी झेलने को विवश होना पड़ता है. सरकार की उपेक्षा नीति का ही नतीजा है कि पटसन की खेती करने वाले किसानों को अलग राज्य बनने के बाद न तो उचित मूल्य दिलाई गयी और न ही इनके जुट को खरीदने के लिए बाजार मुहैया कराये गए.

वर्षा के मौसम में जहां अधिकांश किसान धान की फसल उपजाने पर अपनी जोर लगाते है, वहीं, सदर प्रखंड के इन गांवों में किसान पटसन की खेती करते है, ताकि वर्षा होने पर धान की फसले जलमग्न हो जाती है और फसलों को सड़ने-गलने का डर रहता है. वहीं, निकटवर्ती पश्चिम बंगाल का बाजार पटसन की खेती करने वाले किसानों को थोड़ी राहत जरूर देता है. जिला मुख्यालय में बाजार की अनुपब्लधता का ही नतीजा है कि इन किसानों को औने-पौने दामों में पटसन बेचने को मजबूर होना पड़ रहा है.

ये भी पढ़ें-हजारीबागः राज्य को सूखाग्रस्त घोषित करने के लिए CPI ने किया आंदोलन का ऐलान

वहीं, इसको लेकर प्रखंड तकनीकि प्रबंधक मो. समीम ने बताया कि पटसन की खेती करने वाले किसानों को प्रशिक्षण कृषि विभाग मुहैया कराता है. उन्होने कहा कि बाजार की उपलब्धता को लेकर जिला मुख्यालय में जुट कारखाना के लिए डीपीआर बनाया जा रहा है, लेकिन सरकार ने अभी तक इन किसानों के लिए फसल बीमा का कोई प्रावधान नहीं किया है. इस वजह से इन्हें इसका लाभ नही मिल पाता है.

पाकुड़: जिले के हजारों पटसन की खेती करने वाले किसानों का न तो सरकार विकास कर पायी है और न ही उनका विश्वास जितने में सफल हो पाई है. ये किसान पटसन की खेती कर किसी तरह कमाई करने को विवश है. इसके लिए केंद्र की मोदी सरकार हो या राज्य की रघुवर की सरकार किसी ने कोई ठोस कदम नहीं उटाया है.

देखें पूरी खबर

पाकुड़ जिला का एकमात्र सदर प्रखंड, जहां वृहत पैमाने पर हजारों की संख्या में किसान पटसन की खेती किया करते है. पाकुड़ के सदर प्रखंड का इलामी, सितेशनगर, चांचकी, कांकरबोना, उदयनारायणपुर, भवानीपुर, हरिहरा, गंधाईपुर, हरिगंज, मनिरामपुर, जानकीनगर, बल्लभपुर सहित दर्जनो गांव के लगभग 18 सौ एकड़ कृषि योग्य भुमि में पटसन की खेती होती है. सदर प्रखंड के इन गांवों के लगभग 4 से 5 हजार किसान प्रतिवर्ष अपने खेतों में पटसन उपजाया करते है.

इन किसानों को सरकार न तो आर्थिक रूप से कोई सहयोग करती और न ही इन्हें प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना से लाभांवित किया जाता है, लेकिन कृषि विभाग कुछ किसानों को प्रशिक्षण जरूर दिलाता है. किसान सिर्फ सरकार की गलत नीतियों का शिकार ही नहीं हो रहे है, बल्कि इन्हें मौसम की मार भी झेलने को विवश होना पड़ता है. सरकार की उपेक्षा नीति का ही नतीजा है कि पटसन की खेती करने वाले किसानों को अलग राज्य बनने के बाद न तो उचित मूल्य दिलाई गयी और न ही इनके जुट को खरीदने के लिए बाजार मुहैया कराये गए.

वर्षा के मौसम में जहां अधिकांश किसान धान की फसल उपजाने पर अपनी जोर लगाते है, वहीं, सदर प्रखंड के इन गांवों में किसान पटसन की खेती करते है, ताकि वर्षा होने पर धान की फसले जलमग्न हो जाती है और फसलों को सड़ने-गलने का डर रहता है. वहीं, निकटवर्ती पश्चिम बंगाल का बाजार पटसन की खेती करने वाले किसानों को थोड़ी राहत जरूर देता है. जिला मुख्यालय में बाजार की अनुपब्लधता का ही नतीजा है कि इन किसानों को औने-पौने दामों में पटसन बेचने को मजबूर होना पड़ रहा है.

ये भी पढ़ें-हजारीबागः राज्य को सूखाग्रस्त घोषित करने के लिए CPI ने किया आंदोलन का ऐलान

वहीं, इसको लेकर प्रखंड तकनीकि प्रबंधक मो. समीम ने बताया कि पटसन की खेती करने वाले किसानों को प्रशिक्षण कृषि विभाग मुहैया कराता है. उन्होने कहा कि बाजार की उपलब्धता को लेकर जिला मुख्यालय में जुट कारखाना के लिए डीपीआर बनाया जा रहा है, लेकिन सरकार ने अभी तक इन किसानों के लिए फसल बीमा का कोई प्रावधान नहीं किया है. इस वजह से इन्हें इसका लाभ नही मिल पाता है.

Intro:बाइट : समाउल शेख, किसान
बाइट : सदीउर रहमान, किसान
बाइट : मो. समीम, प्रखंड तकनीकि प्रबंधक

पाकुड़ : केंद्र की मोदी सरकार हो या राज्य की रघुवर की सरकार जिले के हजारो पटसन की खेती करने वाले किसानो का न तो विकास कर पायी है और न ही उनका विश्वास जितने में सफल। आज भी इन किसानो को अपना हाथ जगन्नाथ की तर्ज पर पटसन की खेती कर किसी तरह कमाई करने को विवश होना पड़ रहा है।


Body:पाकुड़ जिला ही नही बल्कि झारखंड में जिले का एकमात्र सदर प्रखंड ही है जहां वृहत पैमाने पर हजारो की संख्या में किसान पटसन की खेती किया करते है। पाकुड़ के सदर प्रखंड का इलामी, सितेशनगर, चांचकी, कांकरबोना, उदयनारायणपुर, भवानीपुर, हरिहरा, गंधाईपुर, हरिगंज, मनिरामपुर, जानकीनगर, बल्लभपुर सहित दर्जनो गांव के लगभग 18 सौ एकड़ कृषि योग्य भुमि में पटसन की खेती होती है। सदर प्रखंड के इन गांवो के लगभग 4 से 5 हजार किसान प्रतिवर्ष अपने खेतो में पटसन उपजाया करते है। इन किसानो को सरकार न तो आर्थिक रूप से न तो कोई सहयोग करती और न ही इन्हे प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना से इन्हे लाभांवित किया जाता। सिर्फ कृषि विभाग कुछ किसानो को प्रशिक्षण जरूर दिलाता है। 
किसान सिर्फ सरकार की गलत नीतियो का ही शिकार नही हो रहे बल्कि इन्हे मौसम की मार भी झेलने को विवश होना पड़ता है। सरकार की उपेक्षा नीति का ही नतीजा है कि पटसन की खेती करने वाले किसानो को अलग राज्य बनने के बाद न तो उन्हे उचित मुल्य दिलाने की कोई व्यवस्था की गयी और न ही इनके जुट को खरीदने के लिए बाजार मुहैया कराये गये। वर्षात के मौसम में जहां अधिकांश किसान धान की फसल उपजाने पर अपनी जोर लगाते है वही सदर प्रखंड के इन गांवो में किसान इसलिए पटसन की खेती करते है कि वर्षा होने पर धान की फसले जलमग्न हो जाती है और फसलो को सड़ने गलने का डर रहता है। लेकिन प्रकृति की मार पटसन की खेती करने वाले किसानो को भी झेलनी पड़ती है तब पर्याप्त वर्षा नही हो पाता। पर्याप्त बारिश नही होने के कारण पटसन को पानी में भिंगाकर नही रखने से जुट नही निकल पाता। 
निकटवर्ती पश्चिम बंगाल का बाजार पटसन की खेती करने वाले किसानो को थोड़ी राहत जरूर देता है। जिला मुख्यालय में बाजार की अनुपब्लधता का ही नतीजा है कि इन किसानो को औने पौने दामो में पटसन बेचने को मजबुर होना पड़ रहा है।


Conclusion:प्रखंड तकनीकि प्रबंधक मो. समीम ने बताया कि पटसन की खेती करने वाले किसानो को प्रशिक्षण कृषि विभाग मुहैया कराता है। उन्होने बताया कि बाजार की उपलब्धता को लेकर जिला मुख्यालय में जुट कारखाना के लिए डीपीआर बनाया जा रहा है। मो. समीम ने बताया कि सरकार ने अबतक इन किसानो के लिए फसल बीमा का कोई प्रावधान नही किया है इसलिए इन्हे इसका लाभ नही मिल पाता।
ETV Bharat Logo

Copyright © 2025 Ushodaya Enterprises Pvt. Ltd., All Rights Reserved.