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Naxal in Jharkhand: नक्सलियों के खिलाफ पुलिस ने बदला प्लान, सोशल पुलिसिंग से मिल रही सफलता

लोहरदगा पुलिस नक्सलियों से अब हथियार के बजाय दूसरे तरीके से निपट रही है. पुलिस ने अपने काम करने का तरीका बिल्कुल बदल दिया है. नक्सलियों के खिलाफ पुलिस अब जंगलों में रहने वाले ग्रामीणों को ही अपना सबसे बड़ा हथियार बना रही है(social policing against Naxalites in lohardaga ). पुलिस की यह रणनीति हाल के समय में काफी कारगर साबित हुई है.

social policing against Naxalites in lohardaga
लोहरदगा में सोशल पुलिसिंग
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Published : Jan 11, 2023, 3:35 PM IST

Updated : Jan 11, 2023, 3:54 PM IST

देखें स्पेशल रिपोर्ट

लोहरदगा: जिले में भाकपा माओवादी नक्सली संगठन कमजोर हो चुका है. संगठन में अब चंद नक्सली ही बचे हुए हैं. इन नक्सलियों को खत्म कर माओवाद का वजूद लोहरदगा और उसके आसपास के इलाके से मिटाने के लिए पुलिस अब नई रणनीति के तहत काम कर रही है. जिस जंगल को नक्सली अपने लिए अवैध किला मानते हैं, उस जंगल में नई रणनीति के तहत कदम रख रही है. पूरे अभियान का नेतृत्व खुद एसपी कर रहे हैं.

ये भी पढ़ेँः चाईबासा में सर्च ऑपरेशन के दौरान आईईडी विस्फोट, 5 सीआरपीएफ जवान घायल

गांव वालों से मिल रही है पुलिस, कर रही है उनकी मददः हाल के समय में पुलिस ने अपने काम करने का तरीका बिल्कुल बदल कर रख दिया है. इसके लिए पुलिस ने अपना सबसे बड़ा हथियार सामुदायिक पुलिसिंग को बनाया है. एसपी आर रामकुमार के नेतृत्व में नक्सल प्रभावित क्षेत्रों में अभियान चलाया जा रहा है. इसके लिए ड्रोन कैमरे की सहायता भी ली जा रही है. पुलिस ग्रामीणों के बीच पहुंचकर उनके बीच दैनिक उपयोग के सामान बांट रही है. ग्रामीणों से समस्या सुनकर उस समस्या का निराकरण किया जा रहा है.

काम आ रही नई रणनीतिः क्षेत्र में नक्सल विरोधी अभियान के दौरान एसपी आर रामकुमार बच्चों से मिलते हैं. बुजुर्गों की तकलीफ बांटते हैं. ग्रामीणों की समस्याएं भी सुनते हैं और उन समस्याओं का निराकरण करने के लिए संबंधित विभाग से संपर्क भी करते हैं. पुलिस की यह नई कार्य प्रणाली ग्रामीणों को पुलिस के करीब लाने का काम कर रही है. इसका मकसद नक्सलवाद को बिल्कुल अलग-थलग कर देना है. जिससे कि नक्सलियों को स्थानीय लोगों का कोई भी सपोर्ट ना मिल सके. काफी हद तक पुलिस को इसमें कामयाबी भी मिली है. पुलिस ने स्थानीय लोगों की मदद से ही हाल के समय में कई नक्सल ऑपरेशन में बड़ी कामयाबी हासिल की है. पुलिस की यह रणनीति माओवादियों पर हथियार से कहीं अधिक भारी पड़ी है.

खत्म होने की कगार पर माओवादियों का दस्ताः भाकपा माओवादी के रीजनल कमांडर और 15 लाख के इनामी दुर्दांत नक्सली रविंद्र गंझू का दस्ता अब खत्म होने की कगार पर पहुंच गया है. साल 2022 में 8 फरवरी को पुलिस ने एक ऑपरेशन शुरू किया था ऑपरेशन डबल बुल. इस ऑपरेशन के बाद कई नक्सली पकड़े गए थे. कई नक्सलियों ने आत्मसमर्पण कर दिया. एक नक्सली मारा गया था. कई बंकर ध्वस्त हुए थे. भारी मात्रा में हथियार और बम बरामद किए गए थे. इसके बाद पुलिस ने फिर से दिसंबर महीने में 28 दिसंबर से लेकर 30 दिसंबर तक ऑपरेशन कोरगो चलाया. इस ऑपरेशन के दौरान एक नक्सली मारा गया, जबकि एक नक्सली पकड़ा गया था. दोनों ही पांच-पांच लाख के इनामी सब जोनल कमांडर थे. पुलिस ने नक्सलियों को तोड़ने के लिए स्थानीय ग्रामीणों का सहारा लिया. सामुदायिक पुलिसिंग की मदद से नक्सलियों की भनक पुलिस को मिली. जिसके बाद पुलिस ने नक्सलियों का लगभग सफाया ही कर दिया है. अब इस संगठन में दो-चार नक्सली ही बचे हैं. जिन्हें घेरने के लिए पुलिस फिर एक बार ऑपरेशन चलाने की तैयारी कर रही है.

देखें स्पेशल रिपोर्ट

लोहरदगा: जिले में भाकपा माओवादी नक्सली संगठन कमजोर हो चुका है. संगठन में अब चंद नक्सली ही बचे हुए हैं. इन नक्सलियों को खत्म कर माओवाद का वजूद लोहरदगा और उसके आसपास के इलाके से मिटाने के लिए पुलिस अब नई रणनीति के तहत काम कर रही है. जिस जंगल को नक्सली अपने लिए अवैध किला मानते हैं, उस जंगल में नई रणनीति के तहत कदम रख रही है. पूरे अभियान का नेतृत्व खुद एसपी कर रहे हैं.

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गांव वालों से मिल रही है पुलिस, कर रही है उनकी मददः हाल के समय में पुलिस ने अपने काम करने का तरीका बिल्कुल बदल कर रख दिया है. इसके लिए पुलिस ने अपना सबसे बड़ा हथियार सामुदायिक पुलिसिंग को बनाया है. एसपी आर रामकुमार के नेतृत्व में नक्सल प्रभावित क्षेत्रों में अभियान चलाया जा रहा है. इसके लिए ड्रोन कैमरे की सहायता भी ली जा रही है. पुलिस ग्रामीणों के बीच पहुंचकर उनके बीच दैनिक उपयोग के सामान बांट रही है. ग्रामीणों से समस्या सुनकर उस समस्या का निराकरण किया जा रहा है.

काम आ रही नई रणनीतिः क्षेत्र में नक्सल विरोधी अभियान के दौरान एसपी आर रामकुमार बच्चों से मिलते हैं. बुजुर्गों की तकलीफ बांटते हैं. ग्रामीणों की समस्याएं भी सुनते हैं और उन समस्याओं का निराकरण करने के लिए संबंधित विभाग से संपर्क भी करते हैं. पुलिस की यह नई कार्य प्रणाली ग्रामीणों को पुलिस के करीब लाने का काम कर रही है. इसका मकसद नक्सलवाद को बिल्कुल अलग-थलग कर देना है. जिससे कि नक्सलियों को स्थानीय लोगों का कोई भी सपोर्ट ना मिल सके. काफी हद तक पुलिस को इसमें कामयाबी भी मिली है. पुलिस ने स्थानीय लोगों की मदद से ही हाल के समय में कई नक्सल ऑपरेशन में बड़ी कामयाबी हासिल की है. पुलिस की यह रणनीति माओवादियों पर हथियार से कहीं अधिक भारी पड़ी है.

खत्म होने की कगार पर माओवादियों का दस्ताः भाकपा माओवादी के रीजनल कमांडर और 15 लाख के इनामी दुर्दांत नक्सली रविंद्र गंझू का दस्ता अब खत्म होने की कगार पर पहुंच गया है. साल 2022 में 8 फरवरी को पुलिस ने एक ऑपरेशन शुरू किया था ऑपरेशन डबल बुल. इस ऑपरेशन के बाद कई नक्सली पकड़े गए थे. कई नक्सलियों ने आत्मसमर्पण कर दिया. एक नक्सली मारा गया था. कई बंकर ध्वस्त हुए थे. भारी मात्रा में हथियार और बम बरामद किए गए थे. इसके बाद पुलिस ने फिर से दिसंबर महीने में 28 दिसंबर से लेकर 30 दिसंबर तक ऑपरेशन कोरगो चलाया. इस ऑपरेशन के दौरान एक नक्सली मारा गया, जबकि एक नक्सली पकड़ा गया था. दोनों ही पांच-पांच लाख के इनामी सब जोनल कमांडर थे. पुलिस ने नक्सलियों को तोड़ने के लिए स्थानीय ग्रामीणों का सहारा लिया. सामुदायिक पुलिसिंग की मदद से नक्सलियों की भनक पुलिस को मिली. जिसके बाद पुलिस ने नक्सलियों का लगभग सफाया ही कर दिया है. अब इस संगठन में दो-चार नक्सली ही बचे हैं. जिन्हें घेरने के लिए पुलिस फिर एक बार ऑपरेशन चलाने की तैयारी कर रही है.

Last Updated : Jan 11, 2023, 3:54 PM IST
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