लोहरदगा: समृद्ध और स्वस्थ समाज के लिए कुपोषण एक अभिशाप है. कुपोषण की वजह से ना सिर्फ बच्चे प्रभावित हो रहे हैं, बल्कि इससे महिलाओं की स्थिति भी खराब हो रही है. इन परिस्थितियों से निपटने के लिए सरकार ने दीदी बाड़ी योजना की शुरुआत की है.
दीदी बाड़ी दे रही पोषाहार
योजना के माध्यम से महज तीन डिसमिल जमीन में बाड़ी लगाकर पोषक आहार से भरपूर साग, सब्जी, फल का उत्पादन शुरू कराया गया. अब इस इलाके में कुपोषण धीरे-धीरे समाप्त होने लगा है. परिस्थितियां बदलने लगी हैं. लोहरदगा जिले के भंडारा सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र में 14 अप्रैल 2010 से संचालित कुपोषण उपचार केंद्र में अब तक 1061 कुपोषित बच्चों का इलाज किया गया है. सिर्फ जनवरी 2020 से लेकर अब तक 63 कुपोषित बच्चे पूरी तरह से स्वस्थ होकर अपने घर लौट चुके हैं.
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दो हजार महिलाओं के बीच शुरू हुई है योजना
दीदी बाड़ी योजना या पोषण वाटिका के माध्यम से महिलाएं आज शारीरिक रूप से अपने आप को मजबूत महसूस कर रहीं हैं. समाज कल्याण विभाग के माध्यम से दो हजार महिलाओं के बीच पोषण वाटिका योजना का शुभारंभ किया गया था. दीदी बड़ी योजना के लिए कद्दू, भिंडी, फ्रेंच बीन, टमाटर, मेथी साग, पालक साग के बीज उपलब्ध कराए गए थे. इसके अलावा फल के भी पेड़ लगाए गए. इस योजना की महत्वपूर्ण बात यह है कि खेती करने के लिए जो मजदूर लगाए जाते हैं, उसकी मजदूरी भी सरकार देती है. इसकी वजह से मजदूरी की समस्या भी उत्पन्न नहीं होती. महिलाएं अपने ही जमीन में खेती कर वहां से उत्पादित होने वाली सब्जियों को आहार के रूप में लेती हैं, जिससे उन्हें बेहतर पोषाहार मिल पाता है.
मजदूरी का भी मिलता है पैसा
बाजार से खरीदने वाली सब्जियों में रासायनिक खाद की अधिकता की वजह से वह लाभ नहीं मिल पाता था, जो महिलाओं को मिलना चाहिए. अब घर में गोबर और जैविक खाद के उपयोग से तैयार होने वाली सब्जियों से महिलाओं को बेहतर लाभ मिल पा रहा है. महिलाएं और बच्चों में पोषाहार की कमी कुपोषण को बढ़ावा देती है. ऐसे समय में सरकार की एक छोटी सी योजना कुपोषण को करारा जवाब दे रही है. दीदी बाड़ी योजना के माध्यम से महिलाएं आज कुपोषण मुक्त समाज की ओर बढ़ चली हैं. घर की बाड़ी में उगाई हुई साग-सब्जी पोषाहार के लिए सबसे बेहतर माना जा रहा है. सरकार इसके लिए ना सिर्फ खाद, बीज उपलब्ध करा चुकी है, बल्कि खेती करने के लिए मजदूरी का पैसा भी देती है.