लातेहारः जिले के चंदवा प्रखंड में स्थित प्रसिद्ध मां उग्रतारा नगर भगवती का मंदिर का इतिहास 400 वर्ष से भी अधिक पुराना (Ma Ugratara Nagar Bhagwati temple 400 years old) है. यह मंदिर श्रद्धालुओं की आस्था का केंद्र है. मान्यता है कि जो भी व्यक्ति यहां सच्चे मन से आकर माता से आशीर्वाद मांगता है, उसकी मनोकामना पूरी होती है. प्रकृति की गोद में बसे इस मंदिर की मान्यताएं भी अलग हैं. यह देश का शायद पहला ऐसा मंदिर है जहां 16 दिनों तक दुर्गा पूजा होती है.
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दरअसल, टोरी राजा द्वारा 16वीं शताब्दी से पूर्व ही इस मंदिर का निर्माण कराया गया था. तब से लेकर अब तक यहां की परंपरा है कि जिउतिया त्योहार के दूसरे दिन से यहां माता का कलश स्थापना कर मां अष्टादशभुजी की पूजा आरंभ कर दी जाती है. 16 दिनों तक चलने वाले इस पूजा विधान में 3 दिन विशेष बलि दी जाती है. 16 दिन की पूजा के दौरान प्रतिदिन यहां विशेष पूजा अर्चना की जाती है. इस संबंध में मंदिर के पुजारी विनय कुमार मिश्र ने बताया कि यहां 16 दिनों की पूजा का 400 वर्ष पुराना इतिहास है. माता के मंदिर की स्थापना काल से ही यहां 16 दिनों तक पूजा की जाती है.
प. बंगाल, बिहार समेत देश के कोने-कोने से आते हैं श्रद्धालुः शाही परिवार के सदस्य गोकुल शाही ने बताया कि इस मंदिर में विराजमान माता की महिमा अपरंपार है. इसी कारण प. बंगाल, बिहार, ओडिशा समेत देश के कोने कोने से बड़ी संख्या में श्रद्धालु माता के दर्शन करने आते हैं. उन्होंने कहा कि 16 दिनों की दुर्गा पूजा की परंपरा काफी पुरानी है. वहीं, उदयनाथ शाही ने बताया कि यहां आने वाले प्रत्येक भक्त पर माता की कृपा बरसती है.
रानी अहिल्याबाई ने भी की थी मंदिर में पूजाः पलामू गजट में इस मंदिर का उल्लेख है. मंदिर के पुजारी अच्युतानंद मिश्र ने बताया कि इतिहास में दर्ज है कि रानी अहिल्याबाई भी माता की महिमा सुनकर यहां पूजा करने आईं थीं. पूजा के बाद रानी अहिल्याबाई ने मंदिर का जीर्णोद्धार भी कराया था. उन्होंने कहा कि यहां आकर जो भी श्रद्धालु सच्चे मन से माता से आशीर्वाद मांगता है उसकी सभी मनोकामनाएं पूरी हो जाती है.
मिश्री और गरी है मुख्य प्रसादः मां उग्रतारा नगर भगवती मंदिर में मुख्य रूप से प्रसाद के रूप में मिश्री और सूखा नारियल ही चढ़ाया जाता है. इसके अलावा यहां बकरे की बलि की भी प्रथा है.
उल्लेखनीय है कि मां उग्रतारा नगर भगवती का मंदिर लातेहार जिला मुख्यालय से लगभग 38 किलोमीटर की दूरी पर चंदवा-चतरा मुख्य मार्ग पर स्थित है. मंदिर तक पहुंचने के लिए सड़क मार्ग एकमात्र रास्ता है. मंदिर से लगभग 10 किलोमीटर की दूरी पर टोरी जंक्शन रेलवे स्टेशन है. रांची से आने वाले श्रद्धालु रांची- चंदवा- चतरा मार्ग से यहां आसानी से पहुंच सकते हैं. रांची से मंदिर की दूरी लगभग 85 किलोमीटर है.