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जंगली हाथी आखिर क्यों शहर और गांव की ओर कर रहे रुख, समझें हाथियों का व्यवहार परिवर्तन! - WILD ELEPHANTS

जंगली हाथी वन छोड़कर शहरों और गांवों में प्रवेश कर रहे हैं. ऐसा क्यों है, इसके पीछे एक नयी शोध सामने आई है.

Know behavior of wild elephants why are they leaving forest and entering villages in Jharkhand
जंगली हाथियों की तस्वीर (Etv Bharat)
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By ETV Bharat Jharkhand Team

Published : Jan 20, 2025, 6:32 PM IST

हजारीबागः झारखंड में हाथी-मानव का संघर्ष काफी पुराना है. यहां हाथियों की संख्या अच्छी-खासी है. जंगलों में रहनेवाले गजराज अब सड़कों पर आ रहे हैं. हजारीबाग में पिछले दो दशकों से हाथी का आतंक कुछ इस कदर बड़ा है कि दर्जनों लोगों की मौत हो चुकी है.

जंगली हाथियों के आतंक से लाखों रुपए का नुकसान हो चुका है. आए दिन हाथी खबरों में बने रहते हैं. कभी किसान का फसल बर्बाद कर रहे हैं तो कभी किसी व्यक्ति का जान भी ले रहे हैं. आखिर क्या कारण है कि हाथी इतने हिंसक हो गए हैं और आबादी वाले क्षेत्र में प्रवेश कर रहे हैं इससे जुड़ी ईटीवी भारत की रिपोर्ट.

ईटीवी भारत की ग्राउंड रिपोर्टः आखिर जंगल छोड़ गांवों में क्यों आ रहे हैं जंगली हाथी (ETV Bharat)

हजारीबाग समेत इसके आसपास के इलाकों में हाथी का आतंक पिछले एक दशक से बड़ा है. हाथी जंगल छोड़कर गांव में प्रवेश कर जा रहे हैं. यही नहीं कुछ दिन पहले शहर में हाथी के आतंक से पूरे इलाके में दहशत फैल गया. जिला प्रशासन और वन विभाग में मिलकर हाथी को जंगल की ओर भेजा.

सिर्फ हजारीबाग के ग्रामीण क्षेत्र ही नहीं बल्कि शहरी इलाके भी हाथी के निशाने पर है. आखिर इसका कारण क्या है इसे लेकर शोध भी खूब चल रहा है. वन विभाग से लेकर हाथी पर रिसर्च करने वाले भी इसके स्वभाव पर अध्ययन कर रहे हैं.

हाथी पर शोध करने वाले मुरारी सिंह बताते हैं कि हाथी के स्वभाव और घटनाक्रम को पर गौर किया जाए तो देखा जाता हैं कि हाथी पिछले एक दशक में गांव में आंतक फैला रहे हैं. हजारीबाग और आसपास की बात की जाए तो यहां साल के जंगल बहुत आयात में है. हाथी का यह भोजन नहीं है. हाथी बरगद, पीपल, ईख के प्रेमी हैं. जंगल में स्वाद अनुसार भोजन नहीं मिलता है तो वह गांव में घुस जाते हैं.

गांव में महुआ ग्रामीण अपने घरों में रखते हैं महुआ हाथी का पसंदीदा भोजन है. हाथी सुगंध लेकर उसे घर को ही टारगेट करते हैं जहां महुआ होता है. हाथी के स्वभाव में परिवर्तन हुआ है और वह समझ गए हैं कि गांव में ही उनका भोजन है. यही कारण है कि घर स्कूल को अधिक टारगेट कर रहे हैं जो भी व्यक्ति भोजन के रास्ते में आता है उसकी वह जान ले लेते हैं.

हजारीबाग के कुछ इलाके ऐसे हैं कि वहां के कई ग्रामीण हाथियों के डर से रात भर जागते रहते हैं. ऐसा हाथियों के भोजन की तलाश में जंगलों से बाहर आने के कारण हो रहा है. क्योंकि घने जंगल कम हो रहे. जंगल कम होने का कारण हाथी भोजन की तलाश में आबादी वाले इलाके में आ जा रहे हैं. इससे टकराव बढ़ रहा है.

किसान भी कहते हैं कि साल में उनके गांव में 8 से 10 बार हाथी आ जाते हैं जिससे फसल का नुकसान होता है. उनका कहना है की सबसे बड़ी समस्या यह है कि विभाग के द्वारा जागरूकता नहीं फैलाई जा रहा है कि आखिर हाथी से बचाव कैसे किया जाए यह सबसे महत्वपूर्ण है.

पिछले दिनों हजारीबाग के ग्रामीण इलाकों में वन विभाग के द्वारा लोगों को जागरूक करते हुए कहा गया कि जितना हो सके जंगली हाथियों से दूर रहें. अगर हाथी अचानक पहुंच जाता है तो भागने का प्रयास बिल्कुल न करें. अगर लाल और सफेद कपड़ा पहन कर गए हैं तो हाथी लाल और सफेद रंगों से चिढ़ता है. इसलिए कोशिश करना चाहिए कि लाल और सफेद रंग के कपड़े पहनने से बचें.

हजारीबाग के डीएफओ भी कहते हैं कि हाथी सिर्फ हजारीबाग ही नहीं बल्कि पूरे मध्य भारत में जंगल से निकलकर भीड़भाड़ वाले इलाके में आ रहे हैं. हाथी से बचाव कैसे हो इसे लेकर अध्ययन चल रहा है. कुछ रिपोर्टर्स बना कर भेजे गए हैं. हाथियों के निवास स्थान के साथ छेड़छाड़ और उन्हें उनके पसंदीदा भोजन नहीं मिलने के कारण आज यह स्थिति बनी है.

झारखंड में हाथियों की चपेट में आने के कारण हर वर्ष करीब 100 लोगों की मौत हो रही है. पिछले वर्ष 1 अप्रैल से 31 मार्च 2023 तक 96 लोगों की मौत हो चुकी है. वहीं 2017 से लेकर अब तक यह आंकड़ा 510 तक पहुंच चुका है. 2019 और 2024 के बीच झारखंड में मानव-हाथी संघर्ष में 474 लोग मारे गए. यह भारत भर में दूसरी सबसे बड़ी संख्या है. ओडिशा के बाद झारखंड दूसरे स्थान पर है.

इसे भी पढ़ें- वनों की अंधाधुंध कटाई ने हाथियों से छीना उनका प्राकृतिक आवास, ग्रामीणों को भुगतना पड़ रहा है खामियाजा

इसे भी पढ़ें- इन दो रंगों से चिढ़ते हैं जंगली हाथी, अपने खलिहान को बचाने के लिए ये करें उपाय!

इसे भी पढ़ें- ...जब झुंड से बिछड़े दो हाथी तोरपा शहर में जा घुसे, मच गई अफरा-तफरी

हजारीबागः झारखंड में हाथी-मानव का संघर्ष काफी पुराना है. यहां हाथियों की संख्या अच्छी-खासी है. जंगलों में रहनेवाले गजराज अब सड़कों पर आ रहे हैं. हजारीबाग में पिछले दो दशकों से हाथी का आतंक कुछ इस कदर बड़ा है कि दर्जनों लोगों की मौत हो चुकी है.

जंगली हाथियों के आतंक से लाखों रुपए का नुकसान हो चुका है. आए दिन हाथी खबरों में बने रहते हैं. कभी किसान का फसल बर्बाद कर रहे हैं तो कभी किसी व्यक्ति का जान भी ले रहे हैं. आखिर क्या कारण है कि हाथी इतने हिंसक हो गए हैं और आबादी वाले क्षेत्र में प्रवेश कर रहे हैं इससे जुड़ी ईटीवी भारत की रिपोर्ट.

ईटीवी भारत की ग्राउंड रिपोर्टः आखिर जंगल छोड़ गांवों में क्यों आ रहे हैं जंगली हाथी (ETV Bharat)

हजारीबाग समेत इसके आसपास के इलाकों में हाथी का आतंक पिछले एक दशक से बड़ा है. हाथी जंगल छोड़कर गांव में प्रवेश कर जा रहे हैं. यही नहीं कुछ दिन पहले शहर में हाथी के आतंक से पूरे इलाके में दहशत फैल गया. जिला प्रशासन और वन विभाग में मिलकर हाथी को जंगल की ओर भेजा.

सिर्फ हजारीबाग के ग्रामीण क्षेत्र ही नहीं बल्कि शहरी इलाके भी हाथी के निशाने पर है. आखिर इसका कारण क्या है इसे लेकर शोध भी खूब चल रहा है. वन विभाग से लेकर हाथी पर रिसर्च करने वाले भी इसके स्वभाव पर अध्ययन कर रहे हैं.

हाथी पर शोध करने वाले मुरारी सिंह बताते हैं कि हाथी के स्वभाव और घटनाक्रम को पर गौर किया जाए तो देखा जाता हैं कि हाथी पिछले एक दशक में गांव में आंतक फैला रहे हैं. हजारीबाग और आसपास की बात की जाए तो यहां साल के जंगल बहुत आयात में है. हाथी का यह भोजन नहीं है. हाथी बरगद, पीपल, ईख के प्रेमी हैं. जंगल में स्वाद अनुसार भोजन नहीं मिलता है तो वह गांव में घुस जाते हैं.

गांव में महुआ ग्रामीण अपने घरों में रखते हैं महुआ हाथी का पसंदीदा भोजन है. हाथी सुगंध लेकर उसे घर को ही टारगेट करते हैं जहां महुआ होता है. हाथी के स्वभाव में परिवर्तन हुआ है और वह समझ गए हैं कि गांव में ही उनका भोजन है. यही कारण है कि घर स्कूल को अधिक टारगेट कर रहे हैं जो भी व्यक्ति भोजन के रास्ते में आता है उसकी वह जान ले लेते हैं.

हजारीबाग के कुछ इलाके ऐसे हैं कि वहां के कई ग्रामीण हाथियों के डर से रात भर जागते रहते हैं. ऐसा हाथियों के भोजन की तलाश में जंगलों से बाहर आने के कारण हो रहा है. क्योंकि घने जंगल कम हो रहे. जंगल कम होने का कारण हाथी भोजन की तलाश में आबादी वाले इलाके में आ जा रहे हैं. इससे टकराव बढ़ रहा है.

किसान भी कहते हैं कि साल में उनके गांव में 8 से 10 बार हाथी आ जाते हैं जिससे फसल का नुकसान होता है. उनका कहना है की सबसे बड़ी समस्या यह है कि विभाग के द्वारा जागरूकता नहीं फैलाई जा रहा है कि आखिर हाथी से बचाव कैसे किया जाए यह सबसे महत्वपूर्ण है.

पिछले दिनों हजारीबाग के ग्रामीण इलाकों में वन विभाग के द्वारा लोगों को जागरूक करते हुए कहा गया कि जितना हो सके जंगली हाथियों से दूर रहें. अगर हाथी अचानक पहुंच जाता है तो भागने का प्रयास बिल्कुल न करें. अगर लाल और सफेद कपड़ा पहन कर गए हैं तो हाथी लाल और सफेद रंगों से चिढ़ता है. इसलिए कोशिश करना चाहिए कि लाल और सफेद रंग के कपड़े पहनने से बचें.

हजारीबाग के डीएफओ भी कहते हैं कि हाथी सिर्फ हजारीबाग ही नहीं बल्कि पूरे मध्य भारत में जंगल से निकलकर भीड़भाड़ वाले इलाके में आ रहे हैं. हाथी से बचाव कैसे हो इसे लेकर अध्ययन चल रहा है. कुछ रिपोर्टर्स बना कर भेजे गए हैं. हाथियों के निवास स्थान के साथ छेड़छाड़ और उन्हें उनके पसंदीदा भोजन नहीं मिलने के कारण आज यह स्थिति बनी है.

झारखंड में हाथियों की चपेट में आने के कारण हर वर्ष करीब 100 लोगों की मौत हो रही है. पिछले वर्ष 1 अप्रैल से 31 मार्च 2023 तक 96 लोगों की मौत हो चुकी है. वहीं 2017 से लेकर अब तक यह आंकड़ा 510 तक पहुंच चुका है. 2019 और 2024 के बीच झारखंड में मानव-हाथी संघर्ष में 474 लोग मारे गए. यह भारत भर में दूसरी सबसे बड़ी संख्या है. ओडिशा के बाद झारखंड दूसरे स्थान पर है.

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