खूंटीः इस जिला को प्रकृति ने सुंदरता से नवाजा है. जल, जंगल के अलावा यहां कई प्रकार के पेड़ पौधे हैं, जो यहां के लिए रोजगार का साधन बन रहा है. ऐसे ही खूंटी में पलाश के पेड़ भी यहां के लोगों के लिए स्वरोजगार के नए आयाम खोल रहा है.
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जिला के आदिवासी अब प्राकृतिक पेड़-पौधों और फूल-पत्तों से रोजगार का साधन ढूंढ लिया है. तेजस्विनी परियोजना के जरिये खूंटी की आदिवासी महिलाएं एवं युवतियां रोजगार की शुरुआत की है. इसी कड़ी में पलाश के रंग से आमदनी का साधन बनकर उभरा है. इससे पहले वो जानकारी के अभाव में बेरोजगार रहने को मजबूर थे. लेकिन अब लोग जागरूक होने लगे हैं और स्वरोजगार से जुड़ीं आदिवासी युवतियां अच्छी आमदनी कर रही हैं.
जिला में तेजस्विनी परियोजना से जुड़ी किशोरियों ने होली को लेकर पलाश फूल से प्राकृतिक रंग बनाकर अपनी आमदनी बढ़ाने की शुरुआत की है. जिला के तेजस्विनी क्लब की किशोरियों को प्राकृतिक रंग बनाने का प्रशिक्षण दो दिन पूर्व दिया गया था. ट्रेनिंग लेने के बाद तेजस्विनी क्लब की किशोरियों ने पलाश के फूल की तोड़ाई की, फिर फूल में पानी मिलाकर खूब खौलाया गया, खौलाने के बाद पानी का रंग केसरिया लाल हो जाता है. जितना ज्यादा फूल को खौलाया जाता है उतना ही पानी का रंग गहरा लाल होता जाता है फिर पानी मिलाकर उसे हल्का रंग बनाया जाता है.
इसके बाद में उबाले गए फूल को सुखाकर पीसा जाता है और उसका पाउडर बनाकर गुलाल बनाया जाता है. गुलाल बनाने के लिए अरारोट पाउडर का इस्तेमाल किया जाता है. अरारोट पाउडर में लाल गुलाबी रंग मिलाकर गुलाल बनाकर दस रुपये और बीस रुपये की पैकिंग की गई है. सस्ता और प्राकृतिक रंग होने के कारण इसकी बिक्री आसानी से होती है. पलाश के फूल से रंग और गुलाल बनाकर स्थानीय बाजार, हाट में बेचकर अपनी आय को बढ़ाकर स्वावलंबन की दिशा में आगे बढ़ रही हैं. तेजस्विनी क्लब सिलदा डंडोल की किशोरियां पलाश के फूलों से होली के लिए प्राकृतिक रंग बनकर बेहद उत्साहित हैं.