खूंटीः हेमंत सोरेन की सरकार 1932 खतियान आधारित स्थानीय नीति को विधानसभा में पारित करा कर अपनी पीठ थपथपा रही है. लेकिन झारखंड में कई ऐसे जिले ऐसे हैं, जिनमें बड़ी संख्या में आदिवासियों की आबादी है जबकि जिला को चलाने समेत कानून व्यवस्था बनाये रखने की जिम्मेदारी गैर आदिवासियों के कंधे पर है. जनजातीय बहुल जिला खूंटी इसका एक बड़ा उदाहरण (non tribal officers in Khunti) है.
खूंटी जिला (tribal district Khunti) की बात करें तो यहां आदिवासियों की आबादी 85 फीसदी है. जिला में 6 प्रखंड और 10 थाना, 4 पिकेट के अलावा सीआरपीएफ के कई कैंप हैं. लेकिन आदिवासी बहुल खूंटी की कमान गैर आदिवासियों के हाथ में है. इसको लेकर जनप्रतिनिधि जिला में आदिवासी अधिकारी की मांग कर रहे है ताकि जिले का विकास हो सके. जिला में पदस्थापित अधिकारियों की बात करे तो डीसी, एसपी, प्रखंड कार्यालय से लेकर थाना तक गैर आदिवासी अफसरों से दफ्तर भरा है. उनके अधीनस्थ काम करने वाले कर्मी भी गैर आदिवासी ही हैं.
तोरपा, मुरहू, कर्रा, रनिया, खूंटी और अड़की प्रखंड कार्यालय में प्रखंड विकास पदाधिकारी व अंचलाधिकारी गैर आदिवासी हैं जबकि इन्हीं थानों के थानेदार गैर आदिवासी हैं. स्थानीय भाषा ना बोल पाने और नहीं समझने के कारण कई बार परेशानियां हुई हैं, जिसे आदिवासी अफसरों के तालमेल से निपटारा किया गया. जिला में गैर आदिवासी पुलिसकर्मियों से लेकर प्रखंड पदाधिकारी की भी संख्या अच्छी खासी है.
इसको लेकर पूर्व ग्रामीण विकास मंत्री सह खूंटी विधायक और समाजसेवी दिलीप मिश्रा ने खूंटी में आदिवासी पदाधिकारी नहीं होने से चिंता जाहिर की है. उनका मानना है कि जिला में आदिवासी अफसरों की नियुक्ति होनी चाहिए, जिससे यहां की जनता का तालमेल अफसरों के साथ बेहतर हो सकेगा. थानों में दर्ज मामलों में अगर गौर किया जाए तो ज्यादातर मामले आदिवासियों पर दर्ज हैं. आदिवासियों पर मामले तो दर्ज किए जा रहे है लेकिन आदिवासी अपराध से ना जुड़ें, कानून के दायरे में ना आयें, भोले भोले आदिवासियों को समझाने वाले दरोगा या पुलिसकर्मियों को थाना में जिम्मेदारी नहीं दी गई है, जो सिस्टम पर कई सवाल खड़ा करता है.
यही नहीं प्रखंड मुख्यालयों तक पहुंचने वाले आदिवासी ग्रामीणों की समस्या का समाधान भी नहीं हो पाता है. क्योंकि अफसर उनकी भाषा नहीं समझ पाते, कई बार पीड़ितों को अनुवादक लेकर जाना पड़ता है, तब जाकर पीड़ित का समस्या अफसर सुन पाते हैं. ऐसे में आदिवासियों की मानसिकता और उनके रहन सहन को नजदीक से समझने वाले पुलिस के नियुक्ति होना बहुत जरूरी (Demand for posting of tribal officers in Khunti) है.
खूंटी विधायक नीलकंठ सिंह मुंडा ने कहा कि जिला में शिक्षा के क्षेत्र बदलाव की जरूरत है. यहां जिला के शिक्षा पदाधिकारी हो या शिक्षक उन्हें स्थानीय भाषा की जानकारी नहीं है, जिसके कारण समस्याएं होती हैं. उन्होंने कहा कि आदिवासी बहुल क्षेत्र में आदिवासी पदाधिकारियों की नियुक्ति होती तो आदिवासी मूलवासियों का विकास होगा. समाजसेवी दिलीप मिश्रा ने बताया कि जिला में स्थानीय स्तर पर अफसर रहेंगे तो यहां का पिछड़ापन और समस्या का समाधान हो सकेगा. कानून व्यवस्था से लेकर विकास और प्रशासनिक कार्य करने में आसानी होगी.
खूंटी में गैर आदिवासी अफसरः आइये, एक नजर डालते हैं जिला में पदस्थापित अफसरों पर. डीसी शशि रंजन, एसपी अमन कुमार, डीडीसी नीतीश कुमार, एसडीओ अनिकेत सचान, एसी अरविंद कुमार शामिल हैं. जबकि जिला में तीन डीएसपी हैं, जिसमें एक हेडक्वार्टर डीएसपी आदिवासी हैं, जिनका नाम जयदीप लकड़ा जबकि गैर आदिवासियों में अमित कुमार और ओपी तिवारी शामिल हैं. इंस्पेक्टर रैंक के अफसर में 1994 बैच के इंस्पेक्टर राजेश रजक, दिग्विजय सिंह और सुकांत त्रिपाठी है. 2012 बैच के जयदीप टोप्पो, शाहिद रजा, पिंकू कुमार यादव शामिल है.
जिला में सब इंस्पेक्टर रैंक के अफसरों में पंकज कुमार दास, विक्रांत कुमार, अरविंद कुमार, रंजीत कुमार यादव, भारत रंजन पाठक, दीपक कुमार सिंह, बलराम कुमार सिंह, दिगंबर कुमार पांडेय, संजीव कुमार, भजन लाल महतो, चूड़ामणि टुडू, लालजीत उरांव, राजेश कुमार हाजरा, पुष्पराज कुमार, मोहम्मद इकबाल, मो. हसरत जमाल, बिरजू प्रसाद, मनोज तिर्की, मनोज कुमार कच्छप, मो. सफीक खान, हरि महतो, रजनी कांत और लक्ष्मण चौधरी के अलावा प्रोमोट दरोगा गोपाल हेंब्रम और नरसिंह मुंडा (प्रभारी अड़की) शामिल है.
वहीं खूंटी सीओ मधुश्री मिश्रा, बीडीओ यूनिका शर्मा, मुरहू सीओ मोनिया लता, बीडीओ मिथिलेश कुमार सिंह, अड़की सीओ/बीडीओ नरेंद्र नारायण, कर्रा सीओ बैधनाथ कामती, बीडीओ निशा कुमारी, तोरपा सीओ सच्चिदानंद वर्मा, बीडीओ दयानंद कारजी, रनिया सीओ/ बीडीओ संदीप भगत शामिल है. जबकि शिक्षा पदाधिकारी प्रवीण रंजन और जिला शिक्षा अधीक्षक अतुल कुमार चौबे सहित जिला में पदस्थापित लगभग पदाधिकारी गैर आदिवासी ही है.