ETV Bharat / bharat

आग के दरिया पर शहर: यहां 109 सालों से धधक रही ज्वाला, जानिए मौत के साये से क्यों नहीं हटना चाहते लोग - BURNING JHARIA

भारत में एक ऐसी जगह है जो पिछले 109 सालों से जल रही है. धनबाद से नरेंद्र निषाद की रिपोर्ट में जानिए सब कुछ.

BURNING JHARIA
डिजाइन इमेज (ईटीवी भारत)
author img

By ETV Bharat Jharkhand Team

Published : Feb 18, 2025, 6:20 PM IST

Updated : Feb 18, 2025, 8:37 PM IST

धनबाद: भारत के पूर्व में बसा छोटा मगर बेहद खूबसूरत राज्य है झारखंड. प्रकृति ने इसे बहुत ही फुर्सत से नवाजा है. यहां की हरियाली, पहाड़, नदियां, झरने किसी का भी मन मोह सकते हैं. लेकिन झारखंड सिर्फ अपनी प्राकृतिक खूबसूरती के लिए ही मशहूर नहीं है. बल्कि यहां है देश की कोयला राजधानी धनबाद.

पिछले 109 सालों से लगी है आग

पूरे देश को रोशन करने में धनबाद का बड़ा योगदान है. लेकिन इसी कोयले की वजह से यहां के सैकड़ों लोग नर्क की जिंदगी जीने को मजबूर हैं. धनबाद का झरिया शहर पिछले 109 सालों से आग के दरिया के बीच में है. भारत का यह एकमात्र शहर है जो पिछले 109 सालों से जल रहा है. हैरानी की बात यह है कि इसके बाद भी यहां के लोग अपना घर, जमीन और कारोबार छोड़कर जाना नहीं चाहते हैं.

झारखंड में देश का 19 प्रतिशत कोयला

झारखंड में इतना कोयला है कि ये अगले 70 सालों तक देश की जरूरतों को पूरा कर सकता है. झारखंड में देश का 19 प्रतिशत कोयला है. जियोलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया के मुताबिक झारखंड में बेहतरीन क्वालिटी के करीब 86 हजार मिलियन टन कोयले का रिजर्व भंडार है. देखने और सुनने में यह काफी अच्छा लगता है कि झारखंड में ऊर्जा का अथाह भंडार है. लेकिन यह सब कुछ इतना सुखद नहीं है. इस तस्वीर के पीछे कोयले से भी अधिक स्याह सच्चाई है.

BURNING JHARIA
घर के दीवार के पास लगी आग (ईटीवी भारत)

जमीन से निकलती हैं आग की लपटें

देश की कोयला राजधानी धनबाद में दूर तक कोयला की खदानें नजर आती हैं. इन खदानों से निकलने वाले ट्रक, धुल का गुबार और अपनी जिंदगी की दौड़ भाग में व्यस्त लोग. देखने में ये काफी सामान्य नजर आता है. लेकिन ये इतना सामान्य नहीं है. धनबाद शहर से कुछ ही किलोमीटर दूर झरिया इस कोयले के कारण नर्क बन गया है. यहां जमीन के अंदर लगी आग की लपटें बाहर निकलती रहती हैं.

BURNING JHARIA
GFX Etv Bharat (ईटीवी भारत)

धरती पर नर्क की तरह दिखता है झरिया

झरिया में जहां आल लगी है उसके चारों तरफ धुएं का गुबार और जहरीली हवा है. इस आग के कारण जमीन धीरे धीरे धंस रही है. यही नहीं घरों में भी दरारें पड़ रही हैं. आए दिन जमीन के नीचे लगी आग से गोफ बन जाता है जिससे कई इंसान मौत के मुंह में समा रहे हैं. आप कह सकते हैं कि धरती पर अगर कहीं नर्क है तो वह इससे ज्यादा अलग नहीं होगा.

BURNING JHARIA
जमीन के नीचे लगी आग (ईटीवी भारत)

जमीन होती जा रही है खोखली

जमीन के अंदर कई वर्षों से धधक रही आग अब यहां के लोगों के लिए नियति बन गई है. अंदर ही अंदर आग जमीन को खोखली करती जा रही है और जमीन के ऊपर बसे लोगों की जिंदगी तबाह होती जा रही है. भूधंसान क्षेत्र में रह रहे लोगों के लिए मुसीबत नहीं बल्कि काल है, जो कभी भी इन्हें अपने अंदर समा सकता है. यहां हर वक्त मौत मुंह बाए खड़ी रहती है.

BURNING JHARIA
GFX Etv Bharat (ईटीवी भारत)

कौन कब कहां जमीन में समा जाए यह कहना मुश्किल

झरिया में कब कौन कहां जमीन के अंदर समा जाए यह कहना मुश्किल है. फिर भी लोग जान जोखिम में डालकर यहां रहने को मजबूर हैं. ऐसा नहीं है कि इनके पुनर्वास के लिए योजना नहीं बनी. झरिया मास्टर प्लान एशिया की सबसे बड़ी पुनर्वास परियोजना है, लेकिन पुनर्वास का काम अब भी अधूरा है. लोग नई जगह जाने के लिए तैयार नहीं है.

1916 में पहली पहली बार आग का पता चला

कोयलांचल नागरिक एकता मंच के अध्यक्ष राजकुमार अग्रवाल कहते हैं कि झरिया कोलफील्ड में 1916 में इंजीनियर जे मुवे को आग की जानकारी मिली थी. तब भौरा इलाके में लगी थी. उसके बाद कोशिश की गई कि कीमती कोयले और लोगों को सुरक्षित किया जाए. झरिया में लोगों को बचाने के लिए 1933, 1962 और उसके बाद लगातार कई चरणों में आंदोलन भी हुए.

BURNING JHARIA
आग के कारण जमीन में बड़ी दरारें (ईटीवी भारत)

'1972 में तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने कहा था कि राष्ट्रीयकरण करने का मुख्य उद्देश्य खदानों को सुरक्षित करना, मजदूरों के रहन सहन में सुधार, झरिया की आग को खत्म कर यहां के लोगों को एक सुखद जीवन देना है. उसी दृष्टिकोण से कार्य आरंभ हुए, लेकिन वह कभी पूरे नहीं हो सके. कथनी और करनी के फर्क के कारण आग भयावह होती चली गई.'- राजकुमार अग्रवाल , अध्यक्ष , कोयलांचल नागरिक एकता मंच

राजकुमार अग्रवाल कहते हैं कि पहले आग की विजिबिलिटी 24.8 थी, वह घटकर अब 8 प्वाइंट कुछ रह गई है. वे कहते हैं कि आग की विजिबिलिटी तो कम हुई है, लेकिन आग का दायरा कम होने के बावजूद भूधंसान की घटना बढ़ती जा रही है. आज यहां के लोग त्राहिमाम कर रहे हैं. बस्तियां उजड़ रही हैं और यहां का जीवन अस्त व्यस्त है.

BURNING JHARIA
कोयला ढोता ट्रक (ईटीवी भारत)

काफी हद तक आग पर पाया गया है काबू

2021 में किये गये सर्वेक्षण के अनुसार भूमिगत आग का दायरा 17.32 वर्ग किलोमीटर से घटकर 1.8 वर्ग किलोमीटर रह गया है. यानि कहा जा सकता है कि काफी हद तक आग पर काबू पाया गया है. लेकिन ये भी सच है कि आग का दायरा कम होने के बाद भी भूधंसान की घटनाएं बढ़ती जा रही हैं. यहीं नहीं इन हादसों में लोगों की जान भी जा रही है.

'राष्ट्रीयकरण के बाद से ही आग बुझाने के लिए बालू और पानी भराई का काम हुआ था. लेकिन वे भी घोटाले के आरोपों में घिर गया. कई ऐसे तथ्य मिले जिससे घोटाले की आशंका जाहिर की गई. अगर ठीक से बालू भरा गया होता को आग बुझ सकती थी. झरिया मास्टर प्लान के तहत बने टाउनशिप में आजीविका का कोई साधन नहीं है. यहां मूलभूत सुविधाओं का भी अभाव है.' - राजकुमार अग्रवाल, अध्यक्ष, कोयलांचल नागरिक एकता मंच

लोगों के पुनर्वास के लिए मास्टर प्लान

झरिया को पुनर्वासित करने के लिए मास्टर प्लान बनाया जाता है. यहां के लोगों को बार बार जगह खाली करने के लिए भी कहा जाता है. लेकिन यहां के लोगों को ये मंजूर नहीं है. झरिया में करीब 32 हजार रैयत हैं, जबकि गैर रैयतों की संख्या जो यहां पर किसी भी तरह का रोजगार कर रहे हैं या रह रहे हैं करीब एक लाख है.

BURNING JHARIA
जमीन में लगी आग (ईटीवी भारत)

बेलगड़िया में रोजगार के साधन नहीं होने से वापस लौटे लोग

JRDA के गठन के बाद झरिया से करीब 10 किलोमीटर दूर बेलगड़िया में कुछ लोगों को बसाया भी गया. लेकिन जल्दी ही वे लोग वापस झरिया में आ गए क्योंकि वहां रोजगार के साधन नहीं थे. जबकि झरिया को कमर्शियल हब के रूप में देखा जाता है. यही वजह है कि खोमचे वाले हों या फिर छोटे बड़े कारोबार वाले वहां कोई भी रहना नहीं चाहता.

बेलगड़िया से वापस लौटे शख्स ने क्या कहा

अग्नि प्रभावित इलाके घनुडीह में रह रहे संजय साव कहते हैं कि बेलगड़िया टाउनशिप में उन्हें आवास मिला है. लेकिन वह जाना नहीं चाहते हैं क्योंकि वहां रोजगार के लिए कोई साधन नहीं है. वहां रहने के लिए घर तो है लेकिन रोजगार का कोई साधन नहीं हैं. ऐसे में लोग घर में बैठकर क्या करेंगे. घर से तो बाहर निकलना ही पड़ेगा. वहां मूलभूत सुविधाओं की भी कमी है.

BURNING JHARIA
जमीन से निकलता जहरीला धुंआ (ईटीवी भारत)

अग्रि प्रभावित वाले इलाके में रहने वाले महेंद्र पासवान ने क्या कहा

झरिया के अग्नि प्रभावित इलाके में रहने वाले महेंद्र पासवान कहते हैं कि ठंड में किसी तरह रह लेते हैं, लेकिन गर्मी में काफी कठिनाई होती है. यहां फर्श भी गर्म हो जाता है. ऐसे में यहां रहना काफी मुश्किल होता है. यहां से 150 परिवारों को शिफ्ट कर दिया गया है. लेकिन अभी भी यहां 200 परिवार यहां बसे हुए हैं. इनमें से कई लोग इस जगह को छोड़कर जाना नहीं चाहते हैं.

क्या कहते हैं सोशल एक्टिविस्ट

यह इलाका अग्नि नगरी के नाम से जाना जाता है. झरिया कोलफील्ड में ऐसे 200 गांव हैं. जो आग की चपेट में हैं. करोड़ों रुपये फायर मैनेजमेंट पर खर्च किए गए. लेकिन लोगों की जिंदगी मुसीबत में हैं. इसी कोयले से देश रोशन हो रहा है, जो इस कोयले पर जिंदगी जी रहे हैं, उसके बारे में सरकार नहीं सोच रही है. अंग्रेजों से स्वतंत्रता तो हमें मिल गई है, लेकिन सरकार में देश प्रेम की कमी है. जिस कारण इन पर ध्यान नहीं दे रही- पिनाकी राय, सोशल एक्टिविस्ट

क्या कहते हैं स्थानीय लोग

हम लोग यहां बहुत कठिनाई से रह रहें हैं. आग हमारे घर के काफी पास है. हम चाहते हैं हमे भी घर मिले. लेकिन कहीं घर नहीं दिया जा रहा है. गर्मी के दिनों में घर में भी ईंट और बोरा बिछाकर रहते हैं क्योंकि फर्श काफी गर्म हो जाता है. सरकार से बस इतनी गुजारिश है कि जीवन यापन के लिए एक घर और ऐसी जगह मिल जाए जहां वे ठीक से रह सके. - रिंकी कुमारी, स्थानीय

वहीं, बीसीसीएल सीएमडी समीरन दत्ता ने बताया कि आग को लेकर हर 6 महीने में एक सर्वे किया जाता है. यह एनआरएसी करता है. आग पहले 27 स्क्वायर किलोमीटर में थी, वह अभी घटी है. लेकिन सरफेस के नीचे भी आग है. आग बुझाने के लिए पांच से छह तकनीक अपनाई जा रही है. इसमें ट्रेंच कटिंग, फोम डालना, हाइड्रोजन फ्लैशिंग और मिट्टी डालकर आग बुझाना.

BURNING JHARIA
जमीन के नीचे लगी आग (ईटीवी भारत)

देखा जाए तो सिम 5 तक आग है, उसके नीचे आग नहीं है. कई एरिया में ओपन कास्ट माइंस चल रहे हैं. जब हम सिम 5 तक पहुंच जाएंगे तो आग का ज्यादा असर नहीं रहेगा. कितना कोयला अब तक जल चुका है. यह बताना कठिन है. फायर एरिया से 120 मिलियन टन कोयले का उत्पादन होगा. करीब करीब आधा उठा लिया है और आधा और उठेगा. - समीरन दत्ता, बीसीसीएल सीएमडी

विस्थापन और पुनर्वास झरिया मास्टर प्लान का अहम प्रोजेक्ट है. पुराना मास्टर प्लान 1.0, 2021 में खत्म हो गया. नया मास्टर प्लान 2.0 में वह सब कुछ है जो लोग चाहते हैं. जो पुनर्वासित किए जाएंगे, उन्हें रहने की बेहतर व्यवस्था के साथ ही रोजगार के भी साधन दिए जाएंगे.

ये भी पढ़ें:

झरिया में जल्द शुरू होगा कोल बेड मीथेन का उत्पादन, रसोई गैस से लेकर बिजली उत्पादन में होगा उपयोग

धनबाद में जमीन फटने से बना गोफ, जहरीली गैस का रिसाव, चैतूडीह कोलियरी की घटना

धनबाद: भारत के पूर्व में बसा छोटा मगर बेहद खूबसूरत राज्य है झारखंड. प्रकृति ने इसे बहुत ही फुर्सत से नवाजा है. यहां की हरियाली, पहाड़, नदियां, झरने किसी का भी मन मोह सकते हैं. लेकिन झारखंड सिर्फ अपनी प्राकृतिक खूबसूरती के लिए ही मशहूर नहीं है. बल्कि यहां है देश की कोयला राजधानी धनबाद.

पिछले 109 सालों से लगी है आग

पूरे देश को रोशन करने में धनबाद का बड़ा योगदान है. लेकिन इसी कोयले की वजह से यहां के सैकड़ों लोग नर्क की जिंदगी जीने को मजबूर हैं. धनबाद का झरिया शहर पिछले 109 सालों से आग के दरिया के बीच में है. भारत का यह एकमात्र शहर है जो पिछले 109 सालों से जल रहा है. हैरानी की बात यह है कि इसके बाद भी यहां के लोग अपना घर, जमीन और कारोबार छोड़कर जाना नहीं चाहते हैं.

झारखंड में देश का 19 प्रतिशत कोयला

झारखंड में इतना कोयला है कि ये अगले 70 सालों तक देश की जरूरतों को पूरा कर सकता है. झारखंड में देश का 19 प्रतिशत कोयला है. जियोलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया के मुताबिक झारखंड में बेहतरीन क्वालिटी के करीब 86 हजार मिलियन टन कोयले का रिजर्व भंडार है. देखने और सुनने में यह काफी अच्छा लगता है कि झारखंड में ऊर्जा का अथाह भंडार है. लेकिन यह सब कुछ इतना सुखद नहीं है. इस तस्वीर के पीछे कोयले से भी अधिक स्याह सच्चाई है.

BURNING JHARIA
घर के दीवार के पास लगी आग (ईटीवी भारत)

जमीन से निकलती हैं आग की लपटें

देश की कोयला राजधानी धनबाद में दूर तक कोयला की खदानें नजर आती हैं. इन खदानों से निकलने वाले ट्रक, धुल का गुबार और अपनी जिंदगी की दौड़ भाग में व्यस्त लोग. देखने में ये काफी सामान्य नजर आता है. लेकिन ये इतना सामान्य नहीं है. धनबाद शहर से कुछ ही किलोमीटर दूर झरिया इस कोयले के कारण नर्क बन गया है. यहां जमीन के अंदर लगी आग की लपटें बाहर निकलती रहती हैं.

BURNING JHARIA
GFX Etv Bharat (ईटीवी भारत)

धरती पर नर्क की तरह दिखता है झरिया

झरिया में जहां आल लगी है उसके चारों तरफ धुएं का गुबार और जहरीली हवा है. इस आग के कारण जमीन धीरे धीरे धंस रही है. यही नहीं घरों में भी दरारें पड़ रही हैं. आए दिन जमीन के नीचे लगी आग से गोफ बन जाता है जिससे कई इंसान मौत के मुंह में समा रहे हैं. आप कह सकते हैं कि धरती पर अगर कहीं नर्क है तो वह इससे ज्यादा अलग नहीं होगा.

BURNING JHARIA
जमीन के नीचे लगी आग (ईटीवी भारत)

जमीन होती जा रही है खोखली

जमीन के अंदर कई वर्षों से धधक रही आग अब यहां के लोगों के लिए नियति बन गई है. अंदर ही अंदर आग जमीन को खोखली करती जा रही है और जमीन के ऊपर बसे लोगों की जिंदगी तबाह होती जा रही है. भूधंसान क्षेत्र में रह रहे लोगों के लिए मुसीबत नहीं बल्कि काल है, जो कभी भी इन्हें अपने अंदर समा सकता है. यहां हर वक्त मौत मुंह बाए खड़ी रहती है.

BURNING JHARIA
GFX Etv Bharat (ईटीवी भारत)

कौन कब कहां जमीन में समा जाए यह कहना मुश्किल

झरिया में कब कौन कहां जमीन के अंदर समा जाए यह कहना मुश्किल है. फिर भी लोग जान जोखिम में डालकर यहां रहने को मजबूर हैं. ऐसा नहीं है कि इनके पुनर्वास के लिए योजना नहीं बनी. झरिया मास्टर प्लान एशिया की सबसे बड़ी पुनर्वास परियोजना है, लेकिन पुनर्वास का काम अब भी अधूरा है. लोग नई जगह जाने के लिए तैयार नहीं है.

1916 में पहली पहली बार आग का पता चला

कोयलांचल नागरिक एकता मंच के अध्यक्ष राजकुमार अग्रवाल कहते हैं कि झरिया कोलफील्ड में 1916 में इंजीनियर जे मुवे को आग की जानकारी मिली थी. तब भौरा इलाके में लगी थी. उसके बाद कोशिश की गई कि कीमती कोयले और लोगों को सुरक्षित किया जाए. झरिया में लोगों को बचाने के लिए 1933, 1962 और उसके बाद लगातार कई चरणों में आंदोलन भी हुए.

BURNING JHARIA
आग के कारण जमीन में बड़ी दरारें (ईटीवी भारत)

'1972 में तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने कहा था कि राष्ट्रीयकरण करने का मुख्य उद्देश्य खदानों को सुरक्षित करना, मजदूरों के रहन सहन में सुधार, झरिया की आग को खत्म कर यहां के लोगों को एक सुखद जीवन देना है. उसी दृष्टिकोण से कार्य आरंभ हुए, लेकिन वह कभी पूरे नहीं हो सके. कथनी और करनी के फर्क के कारण आग भयावह होती चली गई.'- राजकुमार अग्रवाल , अध्यक्ष , कोयलांचल नागरिक एकता मंच

राजकुमार अग्रवाल कहते हैं कि पहले आग की विजिबिलिटी 24.8 थी, वह घटकर अब 8 प्वाइंट कुछ रह गई है. वे कहते हैं कि आग की विजिबिलिटी तो कम हुई है, लेकिन आग का दायरा कम होने के बावजूद भूधंसान की घटना बढ़ती जा रही है. आज यहां के लोग त्राहिमाम कर रहे हैं. बस्तियां उजड़ रही हैं और यहां का जीवन अस्त व्यस्त है.

BURNING JHARIA
कोयला ढोता ट्रक (ईटीवी भारत)

काफी हद तक आग पर पाया गया है काबू

2021 में किये गये सर्वेक्षण के अनुसार भूमिगत आग का दायरा 17.32 वर्ग किलोमीटर से घटकर 1.8 वर्ग किलोमीटर रह गया है. यानि कहा जा सकता है कि काफी हद तक आग पर काबू पाया गया है. लेकिन ये भी सच है कि आग का दायरा कम होने के बाद भी भूधंसान की घटनाएं बढ़ती जा रही हैं. यहीं नहीं इन हादसों में लोगों की जान भी जा रही है.

'राष्ट्रीयकरण के बाद से ही आग बुझाने के लिए बालू और पानी भराई का काम हुआ था. लेकिन वे भी घोटाले के आरोपों में घिर गया. कई ऐसे तथ्य मिले जिससे घोटाले की आशंका जाहिर की गई. अगर ठीक से बालू भरा गया होता को आग बुझ सकती थी. झरिया मास्टर प्लान के तहत बने टाउनशिप में आजीविका का कोई साधन नहीं है. यहां मूलभूत सुविधाओं का भी अभाव है.' - राजकुमार अग्रवाल, अध्यक्ष, कोयलांचल नागरिक एकता मंच

लोगों के पुनर्वास के लिए मास्टर प्लान

झरिया को पुनर्वासित करने के लिए मास्टर प्लान बनाया जाता है. यहां के लोगों को बार बार जगह खाली करने के लिए भी कहा जाता है. लेकिन यहां के लोगों को ये मंजूर नहीं है. झरिया में करीब 32 हजार रैयत हैं, जबकि गैर रैयतों की संख्या जो यहां पर किसी भी तरह का रोजगार कर रहे हैं या रह रहे हैं करीब एक लाख है.

BURNING JHARIA
जमीन में लगी आग (ईटीवी भारत)

बेलगड़िया में रोजगार के साधन नहीं होने से वापस लौटे लोग

JRDA के गठन के बाद झरिया से करीब 10 किलोमीटर दूर बेलगड़िया में कुछ लोगों को बसाया भी गया. लेकिन जल्दी ही वे लोग वापस झरिया में आ गए क्योंकि वहां रोजगार के साधन नहीं थे. जबकि झरिया को कमर्शियल हब के रूप में देखा जाता है. यही वजह है कि खोमचे वाले हों या फिर छोटे बड़े कारोबार वाले वहां कोई भी रहना नहीं चाहता.

बेलगड़िया से वापस लौटे शख्स ने क्या कहा

अग्नि प्रभावित इलाके घनुडीह में रह रहे संजय साव कहते हैं कि बेलगड़िया टाउनशिप में उन्हें आवास मिला है. लेकिन वह जाना नहीं चाहते हैं क्योंकि वहां रोजगार के लिए कोई साधन नहीं है. वहां रहने के लिए घर तो है लेकिन रोजगार का कोई साधन नहीं हैं. ऐसे में लोग घर में बैठकर क्या करेंगे. घर से तो बाहर निकलना ही पड़ेगा. वहां मूलभूत सुविधाओं की भी कमी है.

BURNING JHARIA
जमीन से निकलता जहरीला धुंआ (ईटीवी भारत)

अग्रि प्रभावित वाले इलाके में रहने वाले महेंद्र पासवान ने क्या कहा

झरिया के अग्नि प्रभावित इलाके में रहने वाले महेंद्र पासवान कहते हैं कि ठंड में किसी तरह रह लेते हैं, लेकिन गर्मी में काफी कठिनाई होती है. यहां फर्श भी गर्म हो जाता है. ऐसे में यहां रहना काफी मुश्किल होता है. यहां से 150 परिवारों को शिफ्ट कर दिया गया है. लेकिन अभी भी यहां 200 परिवार यहां बसे हुए हैं. इनमें से कई लोग इस जगह को छोड़कर जाना नहीं चाहते हैं.

क्या कहते हैं सोशल एक्टिविस्ट

यह इलाका अग्नि नगरी के नाम से जाना जाता है. झरिया कोलफील्ड में ऐसे 200 गांव हैं. जो आग की चपेट में हैं. करोड़ों रुपये फायर मैनेजमेंट पर खर्च किए गए. लेकिन लोगों की जिंदगी मुसीबत में हैं. इसी कोयले से देश रोशन हो रहा है, जो इस कोयले पर जिंदगी जी रहे हैं, उसके बारे में सरकार नहीं सोच रही है. अंग्रेजों से स्वतंत्रता तो हमें मिल गई है, लेकिन सरकार में देश प्रेम की कमी है. जिस कारण इन पर ध्यान नहीं दे रही- पिनाकी राय, सोशल एक्टिविस्ट

क्या कहते हैं स्थानीय लोग

हम लोग यहां बहुत कठिनाई से रह रहें हैं. आग हमारे घर के काफी पास है. हम चाहते हैं हमे भी घर मिले. लेकिन कहीं घर नहीं दिया जा रहा है. गर्मी के दिनों में घर में भी ईंट और बोरा बिछाकर रहते हैं क्योंकि फर्श काफी गर्म हो जाता है. सरकार से बस इतनी गुजारिश है कि जीवन यापन के लिए एक घर और ऐसी जगह मिल जाए जहां वे ठीक से रह सके. - रिंकी कुमारी, स्थानीय

वहीं, बीसीसीएल सीएमडी समीरन दत्ता ने बताया कि आग को लेकर हर 6 महीने में एक सर्वे किया जाता है. यह एनआरएसी करता है. आग पहले 27 स्क्वायर किलोमीटर में थी, वह अभी घटी है. लेकिन सरफेस के नीचे भी आग है. आग बुझाने के लिए पांच से छह तकनीक अपनाई जा रही है. इसमें ट्रेंच कटिंग, फोम डालना, हाइड्रोजन फ्लैशिंग और मिट्टी डालकर आग बुझाना.

BURNING JHARIA
जमीन के नीचे लगी आग (ईटीवी भारत)

देखा जाए तो सिम 5 तक आग है, उसके नीचे आग नहीं है. कई एरिया में ओपन कास्ट माइंस चल रहे हैं. जब हम सिम 5 तक पहुंच जाएंगे तो आग का ज्यादा असर नहीं रहेगा. कितना कोयला अब तक जल चुका है. यह बताना कठिन है. फायर एरिया से 120 मिलियन टन कोयले का उत्पादन होगा. करीब करीब आधा उठा लिया है और आधा और उठेगा. - समीरन दत्ता, बीसीसीएल सीएमडी

विस्थापन और पुनर्वास झरिया मास्टर प्लान का अहम प्रोजेक्ट है. पुराना मास्टर प्लान 1.0, 2021 में खत्म हो गया. नया मास्टर प्लान 2.0 में वह सब कुछ है जो लोग चाहते हैं. जो पुनर्वासित किए जाएंगे, उन्हें रहने की बेहतर व्यवस्था के साथ ही रोजगार के भी साधन दिए जाएंगे.

ये भी पढ़ें:

झरिया में जल्द शुरू होगा कोल बेड मीथेन का उत्पादन, रसोई गैस से लेकर बिजली उत्पादन में होगा उपयोग

धनबाद में जमीन फटने से बना गोफ, जहरीली गैस का रिसाव, चैतूडीह कोलियरी की घटना

Last Updated : Feb 18, 2025, 8:37 PM IST
ETV Bharat Logo

Copyright © 2025 Ushodaya Enterprises Pvt. Ltd., All Rights Reserved.