खूंटी/रांचीः खूंटी जिले में अब तक जिला प्रशासन और सेवा वेलफेयर सोसाइटी के सहयोग से 44 गांव में करीब 110 बोरी बांध बनाए गए हैं. जबकि जल संरक्षण के इस तरीके को सीखकर अलग-अलग गांवों के लोगों ने 150 से ज्यादा बोरी बांध बनाने का काम किया है. बोरी बांध बनाने के लिए ग्रामीण श्रमदान करते हैं. इससे लगभग एक हजार एकड़ जमीन की सिंचाई हुई. मवेशियों को भी पीने का पानी मिला. इस मॉडल की बदौलत संबंधित इलाकों के भूगर्भीय जलस्तर में भी इजाफा हुआ है.
क्या है बोरी बांध मॉडल
अभियान की शुरुआत पांच दिसंबर 2018 को तोरपा प्रखंड के तपकरा इलाके से हुई. इसके लिए मुखिया सुदीप गुड़िया ने ग्रामीणों को प्रेरित करना शुरू किया. तपकरा अंबाटोली समेत कई गांवों में बोरी बांध बनाने के लिए सेवा वेलफेयर सोसाइटी ने ग्रामसभाओं को सीमेंट की खाली बोरियां उपलब्ध कराई, फिर श्रमदान का दौर शुरू हुआ. ग्रामसभा ने श्रमदान के जरिए बरदा नाला पर चार बोरी बांधों का निर्माण पूरा किया. बांध के पानी से किसानों ने खेती शुरू कर दी और वो काफी उत्साहित हुए. उसके बाद 13 दिसंबर 2018 को ही कुदलुम गांव में बोरी बांध का निर्माण हुआ. जिले के पूर्व डीसी सूरज कुमार खुद पेरका गांव में बरसाती नाला में उतरकर ग्रामीणों के साथ श्रमदान में हाथ बंटाया और ग्रामीणों का मनोबल बढ़ाया. जनशक्ति से जलशक्ति आंदोलन को वर्ष 2019 में जैसे ही सेवा वेलफेयर सोसाइटी ने शुरू की, लोगों का कारवां इस आंदोलन के साथ जुड़ने लगा. देखते-देखते बोयसाटोली, रूमुतकेल, चालोम्, बिंदा, कुम्हारडीह, गनगीरा और बिशुनपुर, ईट्टी, जरटोनांग, लीलीकोटो समेत अन्य गांवों में ग्रामसभा का आयोजन हुआ.
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पहले भी मिला है गोल्ड मेडल
खूंटी के बोरी बांध मॉडल को पूर्व में स्कॉच अवार्ड प्रतियोगिता में गोल्ड मेडल मिल चुका है. दरअसल, आदिवासियों में समूह से बंधे रहने का गुण पारंपरिक है. इसके तहत काम के बाद सामूहिक भोज की परंपरा है. इसी परंपरा को बोरी बांध निर्माण में निभाया जा रहा है. बोरी बांध बनाने के दौरान गांव के पुरूष बंध बनाने में योगदान देते हैं तो घर की महिलाएं सबके लिए भोजन तैयार करती हैं.