जामताड़ा: आदिवासी जल जंगल और जमीन की पूजा करते हैं. इनका जोर पृथ्वी के धरोहरों को संजो कर रखना होता है, ताकि आने वाली पीढ़ियों को भी पृथ्वी के धरोहरों के इस्तेमाल करने और देखने का मौका मिल सके. इन्हीं प्राकृतिक धरोहरों में शामिल है महुआ, आदिवासियों के बीच महुआ का काफी महत्व होता है. इनके लिए महुआ साधन और साधक दोनों है.
महुआ एक ऐसा पेड़ है, जिसके फूल, पत्ता, फल और टहनी सभी का इस्तेमाल संथाल के आदिवासी अपने जीवन में करते हैं. महुआ की डाली का इस्तेमाल शादी-विवाह से लेकर पर्व-त्योहार में किया जाता है. महुआ के फल को खाने में इस्तेमाल तो करते ही हैं साथ ही इससे मिठाई और शराब भी बनाया जाता है.
संथाल परगना के ग्रामीण क्षेत्रों में महुआ का पेड़ काफी संख्या में पाया जाता है, जो कि संथाली आदिवासी समाज के जीवन में काफी महत्व रखता है. यह पेड़ आदिवासी संथाली समाज में उनकी संस्कृति और सामाजिक रीति रिवाज से जुड़ा हुआ ही नहीं है, बल्कि उनके आमदनी का अच्छा जरिया और आर्थिक स्रोत भी है.