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झारखंड में आदिवासियों का है बुरा हाल!, नहीं है एंबुलेंस की व्यवस्था, खटिया से ग्रामीण ले जाते हैं शव - आदिवासियों के राज्य में उन्हीं का है बुरा हाल

जामताड़ा जिले में शव को खाट से ले जाने का मामला सामने आया है. यह मामला व्यवस्था पर कई सवाल खड़े करता है.

खाट पर शव ले जाते ग्रामीण
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Published : Sep 17, 2019, 9:40 PM IST

जामताड़ा: झारखंड राज्य का निर्माण किया गया था यहां के आदिवासियों के हितों, विकास और उनकी सुरक्षा के लिए लेकिन जिन आदिवासयों के लिए यह राज्य बना था आज उसी राज्य में आदिवासी बुनियादी सुविधा के अभाव में जीने को मजबूर हो रहे हैं. जिले के डेरा गांव का हाल यह है कि यहां शव ढोने के लिए खटिया का सहारा लेना पड़ता है.

देखें पूरी खबर

हालिया मामला
हाल ही में जिले में एक आदिवासी वृद्ध की मौत हो जाने के बाद उसके दाह संस्कार के लिए खटिया का सहारा लेना पड़ा. दरअसल, घर वालों के पास इतने पैसे नहीं थे कि वह गाड़ी करके दाह संस्कार के लिए ले जाए. मजबूरन खटिया पर शव को दाह संस्कार के लिए ले जाना पड़ा.

यह भी पढ़ें- झारखंड की शर्मनाक तस्वीर : डेकची में स्कूल जाते हैं बच्चे, मरीजों के लिए 'वाटर खाट एंबुलेंस'

क्या कहते हैं ग्रामीण
ग्रामीणों का कहना है कि वृद्ध की मौत अस्पताल में नहीं हुई थी इसलिए उन्हें एंबुलेंस मुहैया नहीं कराया जाएगा. ऐसे में खटिया से ले जाने के अलावा उनके पास और कोई चारा नहीं है. बता दें कि शव को दाह संस्कार के लिए शमशान घाट ले जाने और घर तक पहुंचाने के लिए जामताड़ा सदर अस्पताल में दो-दो शव वाहन की व्यवस्था की गई है. लेकिन शव वाहन रहने के बावजूद भी इसका लाभ यहां के गरीब आदिवासी समाज को नहीं मिल पा रहा है यह व्यवस्था पर सवाल खड़ा करता है. इसके साथ ही आदिवासियों में जागरूकता के अभाव के कारण भी इसका लाभ ग्रामीण नहीं ले पा रहे हैं.

यह भी पढ़ें- इस गांव में चलती है 'खाट एंबुलेंस', बदतर हालातों में जिंदगी बसर कर रहे ग्रामीण

क्या कहते हैं जामताड़ा सिविल सर्जन
इस बारे में सिविल सर्जन का कहना है कि सदर अस्पताल में दो शव वाहन की व्यवस्था है जिससे मृत्यु होने या शमशान घाट ले जाने की सुविधा दी जाती है. लेकिन इस हालिया मामले में उन्हें कोई सूचना नहीं थी और न जानकारी थी. ऐसे में इतना ही कहा जा सकता है कि आदिवासियों में जागरूकता की कमी के कारण यह मामला सामने आया.

क्या कहते हैं जामताड़ा विधायक
इस बारे में विधायक इरफान अंसारी का कहना है कि यह घटना दुर्भाग्यपूर्ण है. इसके लिए सरकार और पूंजीपति वर्ग जिम्मेदार है.

जामताड़ा: झारखंड राज्य का निर्माण किया गया था यहां के आदिवासियों के हितों, विकास और उनकी सुरक्षा के लिए लेकिन जिन आदिवासयों के लिए यह राज्य बना था आज उसी राज्य में आदिवासी बुनियादी सुविधा के अभाव में जीने को मजबूर हो रहे हैं. जिले के डेरा गांव का हाल यह है कि यहां शव ढोने के लिए खटिया का सहारा लेना पड़ता है.

देखें पूरी खबर

हालिया मामला
हाल ही में जिले में एक आदिवासी वृद्ध की मौत हो जाने के बाद उसके दाह संस्कार के लिए खटिया का सहारा लेना पड़ा. दरअसल, घर वालों के पास इतने पैसे नहीं थे कि वह गाड़ी करके दाह संस्कार के लिए ले जाए. मजबूरन खटिया पर शव को दाह संस्कार के लिए ले जाना पड़ा.

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क्या कहते हैं ग्रामीण
ग्रामीणों का कहना है कि वृद्ध की मौत अस्पताल में नहीं हुई थी इसलिए उन्हें एंबुलेंस मुहैया नहीं कराया जाएगा. ऐसे में खटिया से ले जाने के अलावा उनके पास और कोई चारा नहीं है. बता दें कि शव को दाह संस्कार के लिए शमशान घाट ले जाने और घर तक पहुंचाने के लिए जामताड़ा सदर अस्पताल में दो-दो शव वाहन की व्यवस्था की गई है. लेकिन शव वाहन रहने के बावजूद भी इसका लाभ यहां के गरीब आदिवासी समाज को नहीं मिल पा रहा है यह व्यवस्था पर सवाल खड़ा करता है. इसके साथ ही आदिवासियों में जागरूकता के अभाव के कारण भी इसका लाभ ग्रामीण नहीं ले पा रहे हैं.

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क्या कहते हैं जामताड़ा सिविल सर्जन
इस बारे में सिविल सर्जन का कहना है कि सदर अस्पताल में दो शव वाहन की व्यवस्था है जिससे मृत्यु होने या शमशान घाट ले जाने की सुविधा दी जाती है. लेकिन इस हालिया मामले में उन्हें कोई सूचना नहीं थी और न जानकारी थी. ऐसे में इतना ही कहा जा सकता है कि आदिवासियों में जागरूकता की कमी के कारण यह मामला सामने आया.

क्या कहते हैं जामताड़ा विधायक
इस बारे में विधायक इरफान अंसारी का कहना है कि यह घटना दुर्भाग्यपूर्ण है. इसके लिए सरकार और पूंजीपति वर्ग जिम्मेदार है.

Intro:जामताङा: जिसके लिए राज्य बना आज उसी का हाल यह है कि लाश को ढोने के लिए खटिया का सहारा लेना पड़ता है। खटिया से लाश ढोने को अंतिम दाह सरकार के लिए मजबूर होना पड़ रहा है।


Body:जामताड़ा जिले के डेरा साल गांव की घटना है। जहां एक आदिवासी वृद्ध की मौत हो जाने के बाद उसके दाह संस्कार के लिए खटिया का सहारा लेना पड़ा। खटिया से लाश को दाह संस्कार के लिए ले जाना मजबूरी बना । उनके पास इतने पैसे नहीं थे कि वह वाहन करके दाह संस्कार के लिए ले जाए। मजबूरन खटिया पर शव को दाह संस्कार के लिए ले जाना पङा ।जब उनसे पूछा गया की खटिया पर लाश क्यों ले जा रहे हैं तो उन्होंने अपना मजबूरी बताया ।कहा कि इसी तरह से उनको करना ही पड़ता है।
बाईट ग्रामीण
V2 शव को अंतिम दाह संस्कार के लिए श्मशान घाट ले जाने और घर तक पहुंचाने के लिए जामताड़ा सदर अस्पताल में दो दो शव वाहन की व्यवस्था की गई है। शव वाहन रहने के बावजूद भी इसका लाभ यहां के गरीब आदिवासी समाज को नहीं मिल पा रहा है और ना ही जागरूकता के अभाव में वह इसका लाभ ले पा रहे हैं ।जब इस बारे में सिविल सर्जन जामताड़ा से पूछा गया तो सिविल सर्जन ने जानकारी देते हुए बताया कि सदर अस्पताल में दो शव वाहन की व्यवस्था है ।जिसकी मृत्यु होने या शमशान घाट ले जाने के लिए व्यवस्था दी जाती है ।लेकिन इस मामले में उन्हें कोई सूचना नहीं थी और न जानकारी थी ।इसके लिए सिविल सर्जन ने जागरूकता की कमी बताया। वही स्थानीय विधायक आदिवासी समाज द्वारा शव को खटिया में ले जाने को दुर्भाग्य बताया कहा कि जिसके लिए राज्य बना आज उसी को लाश को खटिया से ढोना पड़ रहा है। इरफान अंसारी ने सरकार को भी कोसा कहा कि यह सरकार पूंजीपतियों के लिए है। यहां के गरीब आदिवासी मूल वासियों के लिए नहीं है।
बाईट सिविल सर्जन जामताड़ा
बाईट इरफान अंसारी विधायक जामताड़ा


Conclusion:जो भी हो खटिया पलाश धोना यह मामला सरकार और सरकारी की व्यवस्था पर सवाल खड़ा करता है।
संजय तिवारी ईटीवी भारत जामताड़ा
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