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किसान दिवस विशेष! डुमरी विधायक जयराम महतो ने दिया दिल छूने वाला संदेश - FARMERS DAY

किसान दिवस के मौके पर डुमरी विधायक जयराम महतो ने किसानों की जिंदगी को लेकर बहुत ही प्रेरणादायी संदेश दिया है.

MLA JAIRAM MAHATO
खेत में काम करते हुए डुमरी विधायक जयराम महतो (सौ. एक्स)
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By ETV Bharat Jharkhand Team

Published : 4 hours ago

रांचीः देश में 23 दिसंबर का दिन 'किसान दिवस' के रुप में अन्नदाताओं के लिए समर्पित है. किसानों के हित में किए गये कार्यों की वजह से पूर्व प्रधानमंत्री भारत रत्न चौधरी चरण सिंह की जन्म जयंती को किसान दिवस का नाम दिया गया है. आज उनके समर्पण और सेवाभाव को याद किया जा रहा है. सोशल मीडिया पर शुभकामनाओं का तांता लगा हुआ है. इस कड़ी में डुमरी से पहली बार चुनाव जीतकर विधायक बने जेएलकेएम प्रमुख जयराम महतो ने एक प्रेरणादायी वीडियो के साथ दिल को छू जाने वाला संदेश दिया है.

किसान दिवस को याद करते हुए विधायक जयराम ने लिखा है कि 'छत टपकती है, उसके घर की, फिर भी किसान करता है दुआ बारिश की'. इस संदेश में किसानों का दर्द और जज्बा छिपा है. क्योंकि आज भी भारत की कृषि व्यवस्था मानसून पर ही आश्रित है. इसलिए, किसान चाहता है कि खूब बारिश हो. भले खपड़ैल छत से बूंदे टपकती रहे. भले सोना मुश्किल हो जाए. क्योंकि वह जानता है कि बूंदे नहीं बरसीं तो अन्न नहीं मिलेगा.

विधायक जयराम महतो ने किसान दिवस की शुभकामना देते हुए एक वीडियो भी जारी किया है. इसमें वे खेत की पगडंडी को मिट्टी से मजबूत बनाते दिख रहे हैं ताकि बारिश के पानी को रोका जा सके. इस वीडियो के बैकग्राउंड में लोकल भाषा में गीत बज रहा है. इसका मतलब है 'हम किसान का बेटा हैं. हल जोतकर खाते हैं. मिट्टी के साथ लड़कर सोना उगाएंगे. ओ झारखंडी भाई! सोना जैसा झारखंड छोड़कर हम परदेस क्यों जाएंगे'.

इस गीत में गहरा संदेश छिपा है. लेकिन किसान करें तो भी क्या करें. क्योंकि मानसून का कोई भरोसा नहीं होता. सिंचाई की समुचित व्यवस्था नहीं होने के कारण खेती करना मुश्किल हो जाता है. इसलिए मजबूरी में रोजी रोटी के लिए परदेस जाना पड़ता है. इस साल झारखंड पर मॉनसून ने मेहरबानी दिखाई है. खरीफ की अच्छी फसल हुई है. लेकिन किसान जानते हैं कि संदेश से पेट नहीं भरता.

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किसान दिवस को याद करते हुए विधायक जयराम ने लिखा है कि 'छत टपकती है, उसके घर की, फिर भी किसान करता है दुआ बारिश की'. इस संदेश में किसानों का दर्द और जज्बा छिपा है. क्योंकि आज भी भारत की कृषि व्यवस्था मानसून पर ही आश्रित है. इसलिए, किसान चाहता है कि खूब बारिश हो. भले खपड़ैल छत से बूंदे टपकती रहे. भले सोना मुश्किल हो जाए. क्योंकि वह जानता है कि बूंदे नहीं बरसीं तो अन्न नहीं मिलेगा.

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इस गीत में गहरा संदेश छिपा है. लेकिन किसान करें तो भी क्या करें. क्योंकि मानसून का कोई भरोसा नहीं होता. सिंचाई की समुचित व्यवस्था नहीं होने के कारण खेती करना मुश्किल हो जाता है. इसलिए मजबूरी में रोजी रोटी के लिए परदेस जाना पड़ता है. इस साल झारखंड पर मॉनसून ने मेहरबानी दिखाई है. खरीफ की अच्छी फसल हुई है. लेकिन किसान जानते हैं कि संदेश से पेट नहीं भरता.

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