जामताड़ा: एक आदिवासी रैयत को उसकी जमीन से प्रशासन ने उसे बेदखल करते हुए सरकारी भवन बना दिया. करोड़ों की लागत से करीब 15 एकड़ आदिवासी जमीन पर सरकारी सदर अस्पताल का निर्माण कर दिया गया है. अब आदिवासी परिवार अपनी जमीन वापसी और मुआवजा को लेकर भटकने को मजबूर हैं.
परिवार को इंसाफ की आस
बता दें कि मामला जामताड़ा थाना क्षेत्र के कटंगी गांव मौजा का है. कटंगी मौजा के पांचू हेंब्रम नाम के आदिवासी रैयत को करीब 15 एकड़ जमीन प्रधान द्वारा बंदोबस्ती मिला था. जिस पर आदिवासी परिवार अपना खेती-बारी कर जीवन चला रहे थे.
सरकारी भवन निर्माण की स्वीकृति
बताया जाता है कि करीब 30 साल से आदिवासी परिवार उसी जमीन पर खेती करते आ रहे थे और वहीं पर रह भी रहे थे. लेकिन तत्कालीन जिला के प्रशासनिक पदाधिकारियों ने आदिवासी परिवार की उक्त जमीन पर अपने शक्ति का प्रयोग करते हुए बेदखल कर दिया और आनन-फानन में करोड़ों की लागत से सरकारी भवन निर्माण की स्वीकृति प्रदान कर दी.
नतीजा सिफर
जहां करोड़ों की लागत से आज सदर अस्पताल का निर्माण कर दिया गया है. रैयत अपने हक के लिए तत्कालीन जिला के प्रशासनिक अधिकारियों से काफी गुहार लगाई, पर नतीजा सिफर ही रहा. बाद में आदिवासी परिवार ने न्यायालय का सहारा लिया.
कोर्ट ने पीड़ित के पक्ष में सुनाया फैसला
न्यायालय द्वारा 12 साल इंतजार करने के बाद उच्च न्यायालय द्वारा पीड़ित के पक्ष में आदेश दिया गया. जिसके तहत उक्त जमीन को आदिवासी की जमीन बताया गया है. उसे वापस करने का आदेश दिया गया है. न्यायालय के आदेश के बाद भी आदिवासी परिवार अपनी जमीन वापसी को लेकर भटक रहा है. उन्हें न जमीन मिल पा रही है न मुआवजा.
घर से हटाकर बना दिया सरकारी भवन
आदिवासी परिवार के लोगों से जब बातचीत की गई तो उन्होंने बताया कि 31 साल से उक्त जमीन पर खेती कर रहे थे. वहां रह भी रहे थे. लेकिन वहां से हटाकर सरकारी भवन अस्पताल बना दिया. लेकिन अभी तक न जमीन मिली, न ही सरकार उन्हें मुआवजा ही दे रही है.
न्याय की आस
फिलहाल, पीड़ित आदिवासी परिवार न्यायालय का आदेश मिलने के बाद न्याय की आस लगाए बैठा है. अब देखने वाली बात होगी कि सरकार और जिला प्रशासन रैयत को जमीन वापस करते हैं, या मुआवजा देते हैं या नहीं.