जामताड़ाः जिला के कुंड़हित प्रखंड के अंबा गांव के रहने वाले दलित परिवार बांस का मोढ़ा बनाकर अपना जीवन यापन करने को मजबूर हैं. दलित परिवार के पास दूसरा कोई रोजगार का साधन नहीं है. उनके पास ना जमीन है और ना ही सरकार की ओर से उनके रोजगार के लिए कोई सहयोग नहीं मिल रहा है.
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एक तरफ सरकार दलितों को उत्थान के लिए उनके विकास के लिए कई तरह की योजनाएं चला रही है. उनके बच्चे को अच्छी शिक्षा अच्छे रोजगार नौकरी में लाभ देने को लेकर सरकार लंबे चौड़े वादे करती है. लेकिन जामताड़ा जिला का अंबा गांव में रहने वाले दलित परिवार को कोई सरकारी सहयोग नहीं मिलता है.
अंबा गांव के रहने वाले दलित परिवार का रोजगार का एकमात्र साधन है बांस का मोढ़ा बनाना. इसे बेचकर जो आमदनी होती है उसी सें इनका परिवार चलता है. महिला-पुरुष सभी बांस का मोढ़ा बनाकर ही रोजगार करते हैं. इनका कहना है हमारे पास रोजगार का कोई दूसरा साधन नहीं है. बांस का मोढ़ा बनाकर बेचते हैं उसी से इनका घर परिवार चलता है.
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इनको सरकारी सुविधा ना होने की वजह से अपना काम करने के लिए हमेशा इधर-उधर बैठ जाते हैं. कभी किसी बंद स्कूल के बरामदे में तो कभी किसी पेड़ के नीचे बैठकर मोढ़ा बनाते हैं. सरकार की ओर से इनके लिए किसी तरह की शेड की व्यवस्था नहीं की गई है. जिससे गर्मी, जाड़ा और बरसात के दिनों में इनको काफी परेशानी झेलनी पड़ती है. इनके घर इतने छोटे हैं कि बमुश्किल ही पूरा परिवार इसमें एक साथ रह पाता है. ऐसे में बांस का सामान बनाना और उसे घर में रखा इनके लिए चुनौती से कम नहीं है.
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जामताड़ा जिला मुख्यालय से करीब 50 किलोमीटर दूर कुंड़हित प्रखंड के अंबा गांव स्थित है. जहां 200 दलित परिवार रहते हैं, जिनका मुख्य रोजगार बांस का मोढ़ा बनाना है. महिला-पुरुष सभी बांस का मोढ़ा बनाने का काम करते हैं. इसे बेचने के लिए ये खुद ही बंगाल, बिहार, ओड़िशा, मध्य प्रदेश यहां तक दिल्ली तक सामान बेचने के लिए चले जाते हैं. उन पैसों से जो आमदनी होती है, उससे अपना घर परिवार चलाते हैं.
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