हजारीबागः दिवाली पर लोग खरीदारी के लिए बजार पहुंच रहे हैं, जहां साज-सजावट के समानों के साथ लोग घरौंदों को भी खरीद रहे हैं. लोगों का कहना है कि अब मिट्टी के घरौंदे बनाने का समय नहीं है. जिस वजह से उन्हें लकड़ी का घरौंदा खरीदना पड़ रहा है.
दिवाली पर है घरौंदे की महत्ता
दीपावली और घरौंदा का विशेष संबंध रहा है. पहले घर की बेटियां अपने आंगन में घरौंदा बना कर उसे सजाया करती थीं, जिसके बाद उस घरौंदे में गणेश-लक्ष्मी को स्थापित कर दिवाली की पूजा की जाती थी. इस प्रकिया से यह प्रार्थना की जाती थी कि उनके भाईयों के घर में हमेशा मां लक्ष्मी का वास रहे. आज यह परंपरा धूमिल पड़ती जा रही है. अब लोग अपने जीवन में इतना व्यस्त हो गए हैं कि खुद घरौंदा बनाने का समय ही नहीं है, इसलिए बाजारों से खरीदना पड़ रहा है.
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लोगों का क्या है कहना
लोगों का कहना है कि अत्यधिक व्यस्तता और मिट्टी की कमी के कारण खुद घरौंदा बनाना मुश्किल हो गया है. जिस वजह से उन्हें लकड़ी का घरौंदा खरीदना पड़ रहा है. महिलाओं ने बताया कि पहले दिवाली पर वह गारा, मिटटी, ईट से घरों के आंगन में आकर्षक घरौंदा बनाकर उसमें मोमबत्ती और मिट्टी के दीपक जलाकर सजावट किया करती थीं. इसके साथ ही बच्चियों के खेलने के लिए मिट्टी के बर्तन, खिलौने और अन्य चीजें भी खरीदी जाती थीं, लेकिन आज स्थिति कुछ और है.
प्राचार्य का क्या है कहना
वहीं, हजारीबाग विनोबा भावे विश्वविद्यालय के प्राचार्य का कहना है कि पहले लोग संयुक्त परिवार में रहते थे और उस दौरान घर के बुजुर्ग बच्चों को शिक्षा देते थे, लेकिन धीरे-धीरे संयुक्त परिवार से हम लोग एकल परिवार में आ गए हैं. बच्चों को बताने वाले कम होते जा रहे हैं, लेकिन विश्वास है कि एक दिन फिर से घरौंदा पहले जैसा मिट्टी के बनेंगे और हमारे घरों की शोभा उसी तरह बढ़ेगी.