ETV Bharat / state

हजारीबाग: दिवाली पर मिट्टी के घरौंदे पर भारी पड़ा लकड़ी का घरौंदा - मिट्टी के घरौंदे

हजारीबाग के बाजारों में साज-सजावट के समानों के साथ लकड़ी के घरौंदे खरीदे जा रहे हैं, जिसे लेकर महिलाओें में निराशा है. उनका कहना है कि व्यस्त जीवन के कारण हमारी परंपरा खत्म होती जा रही है, अब मिट्टी के नहीं बल्कि लकड़ी के घरौंदे खरीदने पड़ रहे हैं.

लकड़ी के घरौंदे
author img

By

Published : Oct 26, 2019, 11:43 PM IST

हजारीबागः दिवाली पर लोग खरीदारी के लिए बजार पहुंच रहे हैं, जहां साज-सजावट के समानों के साथ लोग घरौंदों को भी खरीद रहे हैं. लोगों का कहना है कि अब मिट्टी के घरौंदे बनाने का समय नहीं है. जिस वजह से उन्हें लकड़ी का घरौंदा खरीदना पड़ रहा है.

देखें पूरी खबर


दिवाली पर है घरौंदे की महत्ता
दीपावली और घरौंदा का विशेष संबंध रहा है. पहले घर की बेटियां अपने आंगन में घरौंदा बना कर उसे सजाया करती थीं, जिसके बाद उस घरौंदे में गणेश-लक्ष्मी को स्थापित कर दिवाली की पूजा की जाती थी. इस प्रकिया से यह प्रार्थना की जाती थी कि उनके भाईयों के घर में हमेशा मां लक्ष्मी का वास रहे. आज यह परंपरा धूमिल पड़ती जा रही है. अब लोग अपने जीवन में इतना व्यस्त हो गए हैं कि खुद घरौंदा बनाने का समय ही नहीं है, इसलिए बाजारों से खरीदना पड़ रहा है.

ये भी पढ़ें- नरक चतुर्दशी 2019: जानें इस दिन क्या करने से होगी शुभ फल की प्राप्ति

लोगों का क्या है कहना
लोगों का कहना है कि अत्यधिक व्यस्तता और मिट्टी की कमी के कारण खुद घरौंदा बनाना मुश्किल हो गया है. जिस वजह से उन्हें लकड़ी का घरौंदा खरीदना पड़ रहा है. महिलाओं ने बताया कि पहले दिवाली पर वह गारा, मिटटी, ईट से घरों के आंगन में आकर्षक घरौंदा बनाकर उसमें मोमबत्ती और मिट्टी के दीपक जलाकर सजावट किया करती थीं. इसके साथ ही बच्चियों के खेलने के लिए मिट्टी के बर्तन, खिलौने और अन्य चीजें भी खरीदी जाती थीं, लेकिन आज स्थिति कुछ और है.

प्राचार्य का क्या है कहना
वहीं, हजारीबाग विनोबा भावे विश्वविद्यालय के प्राचार्य का कहना है कि पहले लोग संयुक्त परिवार में रहते थे और उस दौरान घर के बुजुर्ग बच्चों को शिक्षा देते थे, लेकिन धीरे-धीरे संयुक्त परिवार से हम लोग एकल परिवार में आ गए हैं. बच्चों को बताने वाले कम होते जा रहे हैं, लेकिन विश्वास है कि एक दिन फिर से घरौंदा पहले जैसा मिट्टी के बनेंगे और हमारे घरों की शोभा उसी तरह बढ़ेगी.

हजारीबागः दिवाली पर लोग खरीदारी के लिए बजार पहुंच रहे हैं, जहां साज-सजावट के समानों के साथ लोग घरौंदों को भी खरीद रहे हैं. लोगों का कहना है कि अब मिट्टी के घरौंदे बनाने का समय नहीं है. जिस वजह से उन्हें लकड़ी का घरौंदा खरीदना पड़ रहा है.

देखें पूरी खबर


दिवाली पर है घरौंदे की महत्ता
दीपावली और घरौंदा का विशेष संबंध रहा है. पहले घर की बेटियां अपने आंगन में घरौंदा बना कर उसे सजाया करती थीं, जिसके बाद उस घरौंदे में गणेश-लक्ष्मी को स्थापित कर दिवाली की पूजा की जाती थी. इस प्रकिया से यह प्रार्थना की जाती थी कि उनके भाईयों के घर में हमेशा मां लक्ष्मी का वास रहे. आज यह परंपरा धूमिल पड़ती जा रही है. अब लोग अपने जीवन में इतना व्यस्त हो गए हैं कि खुद घरौंदा बनाने का समय ही नहीं है, इसलिए बाजारों से खरीदना पड़ रहा है.

ये भी पढ़ें- नरक चतुर्दशी 2019: जानें इस दिन क्या करने से होगी शुभ फल की प्राप्ति

लोगों का क्या है कहना
लोगों का कहना है कि अत्यधिक व्यस्तता और मिट्टी की कमी के कारण खुद घरौंदा बनाना मुश्किल हो गया है. जिस वजह से उन्हें लकड़ी का घरौंदा खरीदना पड़ रहा है. महिलाओं ने बताया कि पहले दिवाली पर वह गारा, मिटटी, ईट से घरों के आंगन में आकर्षक घरौंदा बनाकर उसमें मोमबत्ती और मिट्टी के दीपक जलाकर सजावट किया करती थीं. इसके साथ ही बच्चियों के खेलने के लिए मिट्टी के बर्तन, खिलौने और अन्य चीजें भी खरीदी जाती थीं, लेकिन आज स्थिति कुछ और है.

प्राचार्य का क्या है कहना
वहीं, हजारीबाग विनोबा भावे विश्वविद्यालय के प्राचार्य का कहना है कि पहले लोग संयुक्त परिवार में रहते थे और उस दौरान घर के बुजुर्ग बच्चों को शिक्षा देते थे, लेकिन धीरे-धीरे संयुक्त परिवार से हम लोग एकल परिवार में आ गए हैं. बच्चों को बताने वाले कम होते जा रहे हैं, लेकिन विश्वास है कि एक दिन फिर से घरौंदा पहले जैसा मिट्टी के बनेंगे और हमारे घरों की शोभा उसी तरह बढ़ेगी.

Intro:दीपावली और घरौंदा का विशेष संबंध रहा है। घर की बेटियां अपने आंगन में घरौंदा बनाती है ।उसे सजाती हैं और उसमें लक्ष्मी गणेश का प्रवेश कराती हैं। यही मनोकामना मां लक्ष्मी से करती है कि भाई के घर में लक्ष्मी का प्रवेश हरदम बना रहे। लेकिन आज के बदलते परिवेश में घरौंदा का स्वरूप भी बदलता जा रहा है।


Body:
दीपावली पर अब पहले की तरह घरों में घरौंदा दिखाई नहीं पड़ता है ।ग्रामीण क्षेत्र में अगर बात की जाए तो कुछ घरों में अभी भी यह परंपरा देखने को मिल रही है। लेकिन शहरों में धीरे-धीरे परंपरा खत्म हो रही है।धीरे धीरे रेडीमेड घरौंदा मिट्टी के घरौंदा जगह ले रही है।

हजारीबाग जैसे छोटे शहर में भी अब घरौंदा दिखना बंद होता जा रहा है। बाजारों में लकड़ी के रेडीमेड घरौंदा बनकर बिक रहे। जहां छोटी छोटी बच्चियां घरौंदा खरीद रही हैं और अपने घरों में ले जा रही हैं ।जब उनसे यह जानने की कोशिश की गई कि आखिर क्यों घरौंदा का स्वरूप बदला है तो उनका भी कहना है कि अब पहले जैसा समय नहीं रहा ।अत्यधिक व्यस्तता और समान का नहीं मिलने के कारण हम लोग मिट्टी से लकड़ी के घरौंदा में आ गये हैं ।पहले गारा, मिटटी, ईट से घरों के बाहर में या आंगन में आकर्षक घरौंदा बनाकर दीपावली पर उसमें मोमबत्ती और मिट्टी के दीपक जलाकर सजावट किया जाता था ।समय के साथ-साथ घरौंदा को बिजली के झालरों से भी सजाया जान लगा है। घरौंदा में दीपावली पर घर की बच्चियां मिट्टी के बर्तन चुकिया में धान का लावा, कोई मुड़ी चिनी से बनाने वाली हाथी घोड़े की आकृति वाली मिठाई रखकर पूजा करती थी। घर कुंडा सजाने के पीछे मान्यता है कि धन की देवी लक्ष्मी को प्रसन्न कर कामना करती है कि इसी तरह उसके भाई के घर में हमेशा धनधान्य से भरा रहे।

घरौंदा लेने आई बच्चियां भी कहती है कि पहले जब घरौंदा बनाते थे बचपन में तो बहुत ही मजा भी आता था। लगाओ और प्यार उस घरौंदा से होता था। लेकिन धीरे-धीरे हम लोग भूलते जा रहे हैं और हमारी संस्कृति हमसे दूर होते जा रही है। हमें जरूरत है कि हम फिर से अपनी संस्कृति की ओर लौटे।

वही हजारीबाग विनोबा भावे विश्वविद्यालय के प्राचार्य कहते हैं कि पहले हम लोग संयुक्त परिवार में रहते थे और उस दौरान घर के बुजुर्ग बच्चों को शिक्षा देते थे। लेकिन धीरे-धीरे संयुक्त परिवार से हम लोग एकल परिवार में आ गए हैं। बच्चों को बताने वाले कम होते जा रहे हैं। लेकिन विश्वास है कि एक दिन फिर से घरौंदा पहले जैसा मट्टी का बनेगा और हमारे घरों की शोभा उसी तरह बढ़ेगी।

byte..... प्रोफेसर एमके सिंह, विनोबा भावे विश्वविद्यालय , विश्वविद्यालय

byte.... अनुष्का, बच्ची
byte..... अनीता सिन्हा महिला


Conclusion:मिट्टी के घरौंदा से दूरी इस बात को दर्शाती है कि हम अपने संस्कृति से दूर होते जा रहे हैं। जरूरत है अपनी संस्कृति के साथ संबंध बनाए रखने की तब ही त्यौहार की खूबसूरती एवं गरीमा भी बढ़ती है।
ETV Bharat Logo

Copyright © 2025 Ushodaya Enterprises Pvt. Ltd., All Rights Reserved.