हजारीबाग: जल है तो जीवन है. शायद ही ऐसा कोई काम हो जो बिना पानी के पूरा हो सके. लेकिन हाल के दिनों में भूगर्भ जलस्तर काफी नीचे गिर गया है. जिससे कई क्षेत्रों में पानी के लिए हाहाकार मचा हुआ है. गर्मी के दिनों में तो न जाने कितने इलाके खाली हो जा रहे हैं. सवाल ये उठ रहा है कि क्या इसका कारण हम हैं या सरकार ने जो योजना बनाई है, वो योजना पानी संचयन करने के लिए कारगर साबित नहीं हो रही है. झारखंड में मात्र 5% मानसून जल का संचयन हो सकता है. बाकी के 95% मॉनसून का पानी नदी नाले से होते हुए समुद्र में चला जाता है. ऐसे में कहना गलत नहीं होगा कि वर्तमान में सरकार की योजना कारगर साबित नहीं हो रही है.
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जरूरी है कि अब सरकार को जल संचयन करने के लिए दूसरी ओर रुख करना होगा. अर्थात बड़े बड़े डैम बनाने होंगे, तभी जल संचयन भविष्य को लेकर किया जा सकता है. पदाधिकारी भी मानते हैं कि तालाब, नहर, पोखर ट्रेंच काटकर हम बहुत अधिक पानी का संचयन नहीं कर सकते हैं. डोभा बनाया जाता है, लेकिन उसका उपयोग सिर्फ बरसात के समय ही होता है. गर्मी में डोभा सूख जाता है. बरसात के दिनों में तालाब में पानी होता है, लेकिन जब हम उसकी उपयोगिता गर्मी के समय ही नहीं कर पाएंगे, तो क्या फायदा. ऐसे में हम लोगों को समझना चाहिए कि पानी अधिक से अधिक कहां संचयन किया जा सकता है. मॉनसून के बीत जाने के बाद 8 महीने तक डैम का इस्तेमाल किया जा सकता है. इसलिए आने वाले दिनों में हमें अधिक से अधिक डैम बनाने की जरूरत है.
31 स्कीम डैम बनाने की तैयारी
वर्तमान समय में पूरे राज्य भर में 31 स्कीम डैम बनाने को लेकर तैयारी की जा रही है, जिसका डीपीआर बनाकर सेंट्रल वाटर कमीशन को दिया गया है. इसमें 8 स्कीम हजारीबाग क्षेत्र में पड़ते हैं. इसका भी डीपीआर बनाया जा रहा है. सरकार अगर इस क्षेत्र में बड़ा कदम उठाएगी, तो भविष्य में जल संचयन को लेकर बड़ा परिवर्तन हो सकता है. जल संचयन करने के लिए डैम बनाने की जरूरत होगी और डैम बनाने के लिए जमीन की. झारखंड में सबसे बड़ी समस्या जमीन अधिग्रहण को लेकर है. डैम जब बनाया जाता है, तो उसका लाभ आसपास के गांव को नहीं मिल पाता है. इसे लेकर भी एक बड़ी समस्या रही है. लोग इसको लेकर विरोध करते हैं.
पर्यावरणविदों को सता रही भविष्य की चिंता
पर्यावरणविद भी कहते हैं कि जल संचयन करना बेहद जरूरी है. इसके लिए बरसात का पानी स्टोर हो तभी भूगर्भ जल स्तर बढ़ सकता है. इसके लिए काम करने की जरूरत है. हम लोग देखते हैं कि बरसात का पानी कई माध्यमों से होते हुए नाले में जाता है. नाले का पानी नदी में, फिर नदी का पानी समुद्र में. इसे रोकने की जरूरत है. वहीं उनका ये मानना है कि बड़े-बड़े डैम बनाने की जरूरत नहीं है. डैम बनाने के बाद उसके रखरखाव की भी समस्या होती है. सबसे बड़ी बात ये होती है कि बड़े भूभाग का जंगल काटना होता है. ऐसे में अगर छोटे-छोटे वाटर रिजर्व बनाए जाएं और वाटर लेवल को बढ़ाने की कोशिश की जाए तो अच्छा होगा. उनका ये भी कहना है कि बड़े जलाशय का निर्माण करने के बाद आसपास के क्षेत्रों का भूगर्भ जलस्तर घट जाता है. ये एक बड़ी समस्या होती है. साथ ही साथ जहां डैम बनाया जाता है, वहां के लोगों को फायदा नहीं मिलता है, जिससे एक बड़ा तबका हमेशा परेशान रहता है.
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जल संचयन को लेकर उठाने होंगे बड़े कदम
अब ये कहा जा सकता है कि सरकार को आने वाले दिनों में जल संचयन करने के लिए बड़े कदम उठाने पड़ेंगे. अगर जल संचयन आने वाले दिनों में बेहतर ढंग से नहीं किया जाएगा, तो एक बड़ी समस्या खड़ी हो सकती है. इस समस्या का समाधान किसी के पास नहीं है, क्योंकि जल प्राकृतिक है और इसे आप और हम खुद बस में नहीं कर सकते.