हजारीबागः इस जिला की एक ऐसी महिला जो किसी परिचय की मोहताज नहीं है. नंदिनी जिसने कड़ी मेहनत और आत्मविश्वास से अपनी जगह समाज में बनाई है. सुबह 7:00 बजे आपको नंदिनी शहर के मुख्य चौक चौराहे पर नजर आ जाएंगी. जिन्हें हर अभिभावक सम्मान की नजरों से देखते है. नंदिनी एक ऐसी महिला जिसने अपने परिवार की खुशी के लिए गाड़ी का स्टेरिंग पकड़ा और धीरे-धीरे यह कारवां बढ़ता चला गया और आज नंदनी के पास 10 गाड़ियां है.
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सुबह-सुबह स्कूल बस स्टॉप पर बच्चों की लाइन अचानक बस की हॉर्न के साथ गाड़ी की स्टेरिंग पर नंदिनी नजर आएगी. नंदिनी ने अपने परिवार के भरण-पोषण के लिए गाड़ी का स्टेरिंग पकड़ा. गाड़ी खरीदने के लिए पैसे नहीं थे तो उधार लिए. एक वक्त ऐसा आया कि उन्होंने अपना मंगलसूत्र तक बेच दिया और उससे गाड़ी खरीदी. गाड़ी के साथ-साथ मेहनत और लगन की रफ्तार बढ़ी और उनका गांड़ी का व्यवसाय भी बढ़ता चला गया, अब आज उनके पास 9 गाड़ियां है.
नंदिनी बताती हैं कि अपने बच्चों की खुशी और उनकी पढ़ाई के लिए पैसे की जरूरत थी. एक निजी स्कूल में पढ़ाया लेकिन कम पैसा मिलने के कारण घर चलाना मुश्किल हो रहा था. ऐसे में उन्होंने सोचा कि कुछ ऐसा किया जाए जिससे अधिक पैसा मिले और अपने बच्चों को समय भी दे पांऊ. ऐसे में नंदनी बच्चों को स्कूल पहुंचाने की जिम्मेदारी उठाने की सोची. पहले गाड़ी चलाना सीखा और इसके बाद एक सेकंड हैंड मारुती वैन खरीदा. जिससे स्कूल के बच्चों को पहुंचाया करती थी. धीरे-धीरे हजारीबाग के अभिभावक ने नंदिनी पर अपना विश्वास दिखाया. आज शहर के अधिकतर अभिभावक यही चाहते हैं कि उनके बच्चे को नंदिनी ही स्कूल पहुंचाए.
संस्कृत में MA तक की पढ़ाई कर चुकी नंदिनी सुबह उठकर घर के काम को निपटा कर बच्चों को स्कूल पहुंचाने के लिए गाड़ी निकालती हैं. गाड़ी उनका भगवान है, ऐसे में स्टेरिंग को प्रणाम कर हर दिन बस निकलती हैं. वह बताती हैं कि हर रोज सुबह के 4:00 बजे उठना पड़ता है, घर के सारे काम निपटा कर बस चलाने का सिलसिला शुरू होता है. हर दिन लगभग 40 से 50 किलोमीटर गाड़ी चलाना होता है. गाड़ी की संख्या बढ़ी तो स्टाफ भी बढ़े, फिर भी नंदिनी का स्वभाव नहीं बदला.
नंदिनी बताती हैं कि पुरुष प्रधान समाज में बहुत समस्या झेलनी पड़ी. आलम यह रहा कि समाज के लोग गाड़ी के सामने खड़े हो जाते थे और तरह तरह के कमेंट भी कर देते थे. लेकिन मन में एक ही विश्वास था कि मुझे कुछ करना है अपने बच्चों के लिए आगे बढ़ना है. ऐसे में परिवार का भी मुझे सहयोग मिला. आज वही समाज मुझे सिर-आंखों पर बैठा दिया है. महिला दिवस पर अन्य महिलाओं को यह संदेश भी देती है कि कभी भी हार नहीं मानना चाहिए. अपने लिए अपने परिवार के लिए कुछ करना है तो घर की दहलीज लांघना होगा. समस्याएं तो आएंगी लेकिन उस समस्याओं को स्वीकार करते हुए आगे बढ़ना होगा तभी हम कुछ कर सकते हैं.
नंदिनी सिर्फ गाड़ी नहीं चलाती है बल्कि गरीब बच्चों को पढ़ाती भी है. समय निकालकर गाड़ी में ही झुग्गी-झोपड़ी के बच्चों का क्लास भी लगता है. नंदिनी बताती हैं कि बच्चों के माता-पिता से संपर्क किया और बताया कि हमें झुग्गी झोपड़ी के बच्चों को भी तालीम देना है, ऐसे में उनका भी सहयोग मिला. उनके पुराने कपड़े मुझे दिए गए मैं उन कपड़ों को बच्चों में बांट दी. उन्हें किताब-कॉपी दिया और आज वो पढ़ाई कर रहे हैं. उनका कहना है कि कोरोना के कारण पढ़ाई बाधित हुआ है.
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नंदिनी जिस गाड़ी को चलाती है उसके बच्चे उसे अपनी मां की तरह पूजते हैं. छात्राएं कहती हैं कि हम लोगों को काफी गर्व होता है कि नंदिनी आंटी हमें स्कूल पहुंच आती है. ट्रैफिक नियम पालन करते हुए हर दिन समय पर आती है और हमने सुरक्षित घर तक पहुंचाती हैं, हमें उन पर गर्व है. अन्य एक छात्र ने कहा कि इस कोरोना काल में भी ने जब स्कूल खुला तो हमें स्कूल पहुंचाने के लिए सभी ने मना कर दिया. आज हम नंदिनी आंटी के कारण ही स्कूल पहुंच पा रहे हैं. आंटी MA पास हैं, ऐसे में अगर हम लोगों को कुछ पढ़ाई में परेशानी होती है तो वो भी हमें बताती भी हैं.
उनके पति कहते हैं कि हम लोगों ने अपनी पसंद से शादी की. ऐसे में शादी के वक्त भी हम लोगों को समाज ने बहुत प्रताड़ित किया, हमने हार नहीं मानी. पहले हम लोग एक छोटी-सी किताब दुकान चलाते थे. उससे घर नहीं चलता था. ऐसे में मेरी पत्नी ने स्कूल जाना शुरू किया. स्कूल में वेतन कम था, ऐसे में हम लोगों ने सोचा कि कुछ किया जाए जिससे आमदनी बढ़े. आज मेरी पत्नी गाड़ी चलाती है, मेरा पूरा परिवार उन्हें मदद करता है. हम समाज से यही उम्मीद करते हैं कि हर घर में नंदिनी है उसे सिर्फ प्रोत्साहित करने की जरूरत है.