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यहां मुस्लिम बच्चे भी बोलते हैं फर्राटेदार संस्कृत, पंडित भी हो जाते हैं हैरान - हजारीबाग में संस्कृत भारती का भाषा बोधन वर्ग

हजारीबाग में मुस्लिम बच्चे भी फर्राटेदार संस्कृत बोलते हैं. इस बात पर शायद आपको यकीन नहीं आए लेकिन जब आप पूरा वीडियो देखेंगे तो देश की गंगा-जमुनी तहजीब की तारीफ जरूर करेंगे.

Childrens are learning Sanskrit in Hazaribag
छोटे-छोटे बच्चे भी सीख रहे हैं संस्कृत
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Published : Dec 28, 2019, 1:04 PM IST

Updated : Dec 28, 2019, 3:27 PM IST

हजारीबाग: भाषा धर्म और संस्कृति की दीवार से परे होती है. इसे साबित कर रहा है हजारीबाग के संस्कृत भारती का भाषा बोधन वर्ग. आम लोग संस्कृत को बहुत कठिन मानते हैं लेकिन इस मिथक को संस्कृत भारती ने तोड़ दिया है. यहां के बच्चे इतनी फर्राटेदार संस्कृत बोलते हैं कि पंडित भी असमंजस में पड़ जाए. यहां कई मुस्लिम बच्चे भी संस्कृत की शिक्षा ले रहे हैं.

देखें यह स्पेशल स्टोरी


संस्कृत संरक्षण की मुहिम
संस्कृत को लोग इतनी कठिन भाषा समझते हैं, इसका ही नतीजा है कि यह भाषा लोगों सो दूर होती जा रही है लेकिन संस्कृत ही वह भाषा है जो भारत की अपनी भाषा है. इस भाषा में अपनेपन की मिठास है, गंगा जमुना की तहजीब है और सभी धर्म-संप्रदाय के लोगों को आपस में जोड़ने की क्षमता भी है. लेकिन धीरे-धीरे संस्कृत भाषा का प्रचलन कम होता जा रहा है, ऐसे में इसका संरक्षण आवश्यक है. संस्कृत भाषा के इसी संरक्षण के लिए हजारीबाग में संस्कृत भारती की ओर से भाषा बोधन वर्ग कार्यक्रम का आयोजन कर नई पीढ़ियों को इससे जोड़ने की मुहिम चलाई जा रही है.

ये भी पढ़ें: 2019 की सुर्खियां : नागरिकता संशोधन कानून पर मचा संग्राम


भाषा पर नहीं लगे धर्म की बेड़ी
संस्कृत भारती के चलाए जा रहे भाषा बोधन वर्ग में समाज के हर तबके और हर धर्म के लोग संस्कृत की शिक्षा प्राप्त कर रहे हैं. कई मुस्लिम छात्र-छात्राएं भी यहां संस्कृत की शिक्षा ग्रहण कर रहे हैं, वहीं इसपर उनके अभिभावकों का भी कहना है कि भाषा पर किसी का अधिकार नहीं है तो फिर धर्म की बेड़ियों में इसे क्यों बांधा जाए. उनका कहना है कि संस्कृत अपनी भाषा है और इसे अपनाया ही जाना चाहिए.


दैनिक जीवन में भी अपनाई जा रही है संस्कृत
संस्कृत भारती की ओर से चलाए जा रहे इस भाषा बोधन वर्ग का आयोजन 7 दिनों के लिए किया गया है, जिसमें जिले के कोने-कोने से स्कूल-कॉलेज के 70 छात्र-छात्राओं ने हिस्सा लिया. यहां आए छात्रों को जहां संस्कृत सीखने का मौका मिल रहा है वहीं नए-नए दोस्त भी बन रहे हैं, जिसे लेकर वे काफी उत्साहित हैं. वे कहते हैं कि अब से छुट्टियों में वे मस्ती नहीं करके संस्कृत की पढ़ाई करेंगे. वहीं संस्कृत से अधिक से अधिक लोगों को जोड़ने के लिए दैनिक जीवन में भी संस्कृत भाषा को बोलचाल की भाषा बनाएंगे.

ये भी पढ़ें: मंदिरों के गांव मलूटी की है खास पहचान, दूर-दूर से आते हैं यहां सैलानी


यह पहल है जरूरी
संस्कृत भारती की यह पहल कितनी दूर तक जाती है, यह तो वक्त ही बताएगा लेकिन इतना तो साफ है कि अपनी संस्कृति से पीढ़ियों को जोड़ने के लिए सबसे पहले उन्हें अपनी भाषा का ज्ञान करवाना आवश्यक है. ऐसे में जरूरत है कि इस तरह की शिविर की आयोजन समय-समय पर होता रहे ताकि छात्र-छात्राओं अपनी संस्कृति से अधिक सेअधिक रूबरू हो सके.

हजारीबाग: भाषा धर्म और संस्कृति की दीवार से परे होती है. इसे साबित कर रहा है हजारीबाग के संस्कृत भारती का भाषा बोधन वर्ग. आम लोग संस्कृत को बहुत कठिन मानते हैं लेकिन इस मिथक को संस्कृत भारती ने तोड़ दिया है. यहां के बच्चे इतनी फर्राटेदार संस्कृत बोलते हैं कि पंडित भी असमंजस में पड़ जाए. यहां कई मुस्लिम बच्चे भी संस्कृत की शिक्षा ले रहे हैं.

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संस्कृत संरक्षण की मुहिम
संस्कृत को लोग इतनी कठिन भाषा समझते हैं, इसका ही नतीजा है कि यह भाषा लोगों सो दूर होती जा रही है लेकिन संस्कृत ही वह भाषा है जो भारत की अपनी भाषा है. इस भाषा में अपनेपन की मिठास है, गंगा जमुना की तहजीब है और सभी धर्म-संप्रदाय के लोगों को आपस में जोड़ने की क्षमता भी है. लेकिन धीरे-धीरे संस्कृत भाषा का प्रचलन कम होता जा रहा है, ऐसे में इसका संरक्षण आवश्यक है. संस्कृत भाषा के इसी संरक्षण के लिए हजारीबाग में संस्कृत भारती की ओर से भाषा बोधन वर्ग कार्यक्रम का आयोजन कर नई पीढ़ियों को इससे जोड़ने की मुहिम चलाई जा रही है.

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भाषा पर नहीं लगे धर्म की बेड़ी
संस्कृत भारती के चलाए जा रहे भाषा बोधन वर्ग में समाज के हर तबके और हर धर्म के लोग संस्कृत की शिक्षा प्राप्त कर रहे हैं. कई मुस्लिम छात्र-छात्राएं भी यहां संस्कृत की शिक्षा ग्रहण कर रहे हैं, वहीं इसपर उनके अभिभावकों का भी कहना है कि भाषा पर किसी का अधिकार नहीं है तो फिर धर्म की बेड़ियों में इसे क्यों बांधा जाए. उनका कहना है कि संस्कृत अपनी भाषा है और इसे अपनाया ही जाना चाहिए.


दैनिक जीवन में भी अपनाई जा रही है संस्कृत
संस्कृत भारती की ओर से चलाए जा रहे इस भाषा बोधन वर्ग का आयोजन 7 दिनों के लिए किया गया है, जिसमें जिले के कोने-कोने से स्कूल-कॉलेज के 70 छात्र-छात्राओं ने हिस्सा लिया. यहां आए छात्रों को जहां संस्कृत सीखने का मौका मिल रहा है वहीं नए-नए दोस्त भी बन रहे हैं, जिसे लेकर वे काफी उत्साहित हैं. वे कहते हैं कि अब से छुट्टियों में वे मस्ती नहीं करके संस्कृत की पढ़ाई करेंगे. वहीं संस्कृत से अधिक से अधिक लोगों को जोड़ने के लिए दैनिक जीवन में भी संस्कृत भाषा को बोलचाल की भाषा बनाएंगे.

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यह पहल है जरूरी
संस्कृत भारती की यह पहल कितनी दूर तक जाती है, यह तो वक्त ही बताएगा लेकिन इतना तो साफ है कि अपनी संस्कृति से पीढ़ियों को जोड़ने के लिए सबसे पहले उन्हें अपनी भाषा का ज्ञान करवाना आवश्यक है. ऐसे में जरूरत है कि इस तरह की शिविर की आयोजन समय-समय पर होता रहे ताकि छात्र-छात्राओं अपनी संस्कृति से अधिक सेअधिक रूबरू हो सके.

Intro:लुप्त होती हुई संस्कृत भाषा को जन भाषा बनाने के लिए इन दिनों हजारीबाग में संस्कृत भारती का भाषा बोधन वर्ग चल रहा है। जिसमें समाज का हर एक वर्ग संस्कृत सीख रहा है और कोशिश कर रहा है कि उसे अपने दिनचर्या में उतारा जा सके। जिसमें आकर्षण का केंद्र बिंदु कार्मेल की दो छात्राएं हैं जो मुस्लिम धर्म की हैं लेकिन वे संस्कृत इसलिए पड़ रही हैं कि उनका मानना है धर्म शिक्षा के क्षेत्र में बाधा नहीं है।


Body:संस्कृत सीखना कठिन है, इसको हजारीबाग के स्कूल कॉलेज के विद्यार्थी गलत साबित कर रहे हैं।गैर हिंदी मातृभाषा वाले विद्यार्थी भी शिविर में आसानी से संस्कृत सीख रहे हैं। दैनिक जीवन की बोलचाल में संस्कृत का उपयोग करना सीख रहे हैं। हजारीबाग के एक निजी सभागार में इन दिनों जीवन की बोलचाल में संस्कृत का उपयोग करना सीख रहे हैं ।सात दिवसीय संस्कृत भाषा बोधन कक्षा में स्कूल कॉलेज के 70 छात्र-छात्राएं हिस्सा लिया है। छात्राओं का मानना है कि बड़े दिन की छुट्टी में हम मस्ती नहीं करके संस्कृत की पढ़ाई करेंगे। जहां हजारीबाग के कोने-कोने से छात्र पहुंचे हैं इस दौरान पढ़ाई भी होगी और नए दोस्त भी बनेंगे।

ऐसे तो संस्कृत आज के समय में लुप्त होती जा रही है और सिर्फ कर्मकांड में ही इसका उपयोग किया जा रहा है। ऐसे में छात्र छात्राओं का कहना है कि यह सभी भाषाओं की जननी है इसलिए हमें संस्कृत भाषा की जानकारी होनी चाहिए ।कई धार्मिक ग्रंथ भी हैं जो संस्कृत में लिखे हैं अगर हम संस्कृत को जानेंगे तो उन्हें भी समझ सकेंगे ।

चतरा में विज्ञान के शिक्षक मोहम्मद एजाज उल हक अपने बच्चों को यहां संस्कृत पढ़ा रहे हैं। यह आकर्षण का केंद्र बिंदु भी है। उनका कहना है कि संस्कृत राष्ट्र की भाषा है। पुरानी संस्कृति हमारे धरोहर है। इसलिए हमारे तीन बच्चे संस्कृत की शिक्षा पा रहे हैं ताकि वह अपने धरोहर को जान सकें। उनका कहना है कि संस्कृत के माध्यम से भारतीय संस्कृति को जानने का प्रयास भी किया जा रहा है। बच्चे भारतीय संस्कृति से दूर होते जा रहे हैं। ऐसे में संस्कृत भाषा उन्हें संस्कृति की ओर लौटने का काम कराता है ।उनका यह भी कहना है कि आज भी संस्कृत के ग्रंथ में विज्ञान के कई गूढ़ विषयों की जानकारी है। ऐसे में संस्कृत की जानकारी जरूरी है ।इसलिए हम अपने बच्चे को यहां संस्कृत पढ़ा रहे हैं। जिससे उन्हें दो लाभ हो रहा है पहला वह अपनी संस्कृति के बारे में जान रहे हैं तो दूसरी ओर अपने भविष्य को भी संस्कृत के माध्यम से सवार सकते हैं।

वही संस्कृत की की पढ़ाई करने वाली छोटी-छोटी छात्राओं का कहना है कि वह उन्हें इस भाषा को पढ़ने में काफी मजा आ रहा है । हमारे शिक्षक हमें बता रहे हैं किसका उपयोग हमारे जीवन में कैसे हैं। तो दूसरी ओर सैयद मरियम जहरा भी पढ़ाई के दौरान मस्ती भी कर रही है और संस्कृति भी सीख रही है। कहती है कि हम अपने रोजमर्रा के जीवन में जो शब्द का उपयोग होता है उसे संस्कृत में सीख रहे हैं और घर में भी उसका उपयोग कर रहे हैं घर में भी काफी मस्ती होती है।

byte... नीतू कुमारी ,छात्रा टोपी पहने हुए
byte.... श्रेया भारती, छात्रा काला स्वेटर पहने हुए
byte... सैयद मरियम जरा छात्रा
byte... कुमारी कालिंदी , शिक्षिका,चश्मा पहने हुए
byte.... मोहम्मद इजाजुल हक, मरियम जहरा के पिता


Conclusion:भले ही कभी संस्कृत जन भाषा या सभी भाषाओं की जननी रही है ।वर्तमान समय में संस्कृत को ब्राह्मणों की पूजा पाठ की भाषा करार दी जा रही है। ऐसे में यह शिविर संस्कृत को तो पहचान दे ही रही है साथ ही साथ बच्चों में संस्कृत के प्रति रोचकता भी बढ़ाने का काम कर रही है। जरूरत है इस तरह की शिविर की आयोजन समय-समय पर होते रहें ताकि छात्र छात्राओं को संस्कृत के महत्व की जानकारी भी मिल सके।

गौरव प्रकाश ईटीवी भारत हजारीबाग
Last Updated : Dec 28, 2019, 3:27 PM IST
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