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विश्व आदिवासी दिवस: एक झंडे के नीचे जमा होते हैं आदिवासी समुदाय - विश्व आदिवासी दिवस 2020

पूरे विश्व में आदिवासी समुदाय विश्व आदिवासी दिवस मना रहे हैं. हालांकि, कोरोना के कारण पर्व फीका जरूर है. गुमला जिले में भी इस वर्ष वैश्विक महामारी कोरोना वायरस के कारण इस वर्ष समारोह आयोजित नहीं की जा रही है.

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विश्व आदिवासी दिवस
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Published : Aug 9, 2020, 6:02 AM IST

गुमला: पूरे विश्व में आदिवासी समुदाय विश्व आदिवासी दिवस मना रहे हैं. इस दिन आदिवासी समुदाय समारोह आयोजित कर नाच गान करते हैं और एक दूसरे को बधाइयां देते हैं. हालांकि, इस बार कोरोना के कारण पर्व फीका जरूर है.

देखें पूरी खबर

उत्सव पर कोरोना की मार

दरअसल, विश्व आदिवासी दिवस की शुरुआत संयुक्त राष्ट्र संघ ने की थी. इसको मनाने के पीछे जनजातीय समाज की समस्याओं जैसे गरीबी, अशिक्षा, स्वास्थ्य सुविधा का अभाव, बेरोजगारी और बंधुआ मजदूर के निराकरण के लिए विश्व का ध्यान आकर्षित करना है. इसके साथ ही इसके माध्यम से आदिवासी समुदाय को मजबूत करने के लिए आदिवासी समाज आह्वान करते हैं. मगर इस वर्ष वैश्विक महामारी कोरोना वायरस के कारण समारोह का आयोजन नहीं किया जा रहा है.

'एक झंडे के नीचे एकजुटता'

आदिवासी समाज के नेता हांदू भगत ने बताया कि पूरे विश्व में 9 अगस्त को आदिवासी दिवस मनाने के पीछे तात्पर्य है कि जनजातीय समुदाय के लोग एक झुंड में एक जगह जमा हों और 9 अगस्त को उत्सव के रूप में मनाएं. उन्होंने कहा कि अपने आप को एकता के सूत्र में बांधे हुए अपने आने वाली पीढ़ी के लिए वर्तमान समय में अपनी समस्याओं को संगठित होकर लड़ाई लड़ने का एकमात्र उद्देश्य है. 9 अगस्त के माध्यम से पूरे विश्व में आदिवासी एक झंडे के नीचे खड़े हों.

ये भी पढ़ें- पलामू: नक्सली ललन भुइयां गिरफ्तार, नक्सली पर्चा भी बरामद



'विभिन्न आदिवासी जातियों का एक जगह समावेश'
वहीं, आदिवासी समाज के युवा नेता मिशिर कुजूर ने बताया कि इस दिन आदिवासी दिवस के रूप में जितने भी आदिवासी समुदाय के विभिन्न जातियां हैं, उन जातियों का एक जगह समावेश होता है. जहां रीझरंग नाच-गाना का प्रदर्शन किया जाता है.

गुमला: पूरे विश्व में आदिवासी समुदाय विश्व आदिवासी दिवस मना रहे हैं. इस दिन आदिवासी समुदाय समारोह आयोजित कर नाच गान करते हैं और एक दूसरे को बधाइयां देते हैं. हालांकि, इस बार कोरोना के कारण पर्व फीका जरूर है.

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उत्सव पर कोरोना की मार

दरअसल, विश्व आदिवासी दिवस की शुरुआत संयुक्त राष्ट्र संघ ने की थी. इसको मनाने के पीछे जनजातीय समाज की समस्याओं जैसे गरीबी, अशिक्षा, स्वास्थ्य सुविधा का अभाव, बेरोजगारी और बंधुआ मजदूर के निराकरण के लिए विश्व का ध्यान आकर्षित करना है. इसके साथ ही इसके माध्यम से आदिवासी समुदाय को मजबूत करने के लिए आदिवासी समाज आह्वान करते हैं. मगर इस वर्ष वैश्विक महामारी कोरोना वायरस के कारण समारोह का आयोजन नहीं किया जा रहा है.

'एक झंडे के नीचे एकजुटता'

आदिवासी समाज के नेता हांदू भगत ने बताया कि पूरे विश्व में 9 अगस्त को आदिवासी दिवस मनाने के पीछे तात्पर्य है कि जनजातीय समुदाय के लोग एक झुंड में एक जगह जमा हों और 9 अगस्त को उत्सव के रूप में मनाएं. उन्होंने कहा कि अपने आप को एकता के सूत्र में बांधे हुए अपने आने वाली पीढ़ी के लिए वर्तमान समय में अपनी समस्याओं को संगठित होकर लड़ाई लड़ने का एकमात्र उद्देश्य है. 9 अगस्त के माध्यम से पूरे विश्व में आदिवासी एक झंडे के नीचे खड़े हों.

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'विभिन्न आदिवासी जातियों का एक जगह समावेश'
वहीं, आदिवासी समाज के युवा नेता मिशिर कुजूर ने बताया कि इस दिन आदिवासी दिवस के रूप में जितने भी आदिवासी समुदाय के विभिन्न जातियां हैं, उन जातियों का एक जगह समावेश होता है. जहां रीझरंग नाच-गाना का प्रदर्शन किया जाता है.

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