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गुमला के इस गांव में कोरोना रोकने के लिए बनाई 'सुरक्षा दीवार', जानें कैसे नहीं हुआ कोई संक्रमित

गुमला में दिरगांव पंचायत के तुसगांव में गांव वालों ने कोरोना संक्रमण को लेकर कड़े नियम बना रखे हैं. जिसके मुताबिक, दोपहर तक ही खेती करेंगे. साथ ही पशुओं को भी दोपहर तक ही चराना है. इसके बाद सभी ग्रामीण घर पर रहते हैं. अगर किसी मुद्दे को लेकर ग्रामीण आपस में एक जगह जुटते भी हैं, तो सोशल डिस्टेंस का पालन जरूर करते हैं. इन नियमों की वजह से ये गांव अभी तक कोरोना मुक्त है.

Corona infection did not reach many villages of Gumla
गुमला के कई गांव में नहीं पहुंचा कोरोना संक्रमण
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Published : May 24, 2021, 4:04 PM IST

गुमला: एक ओर झारखंड के कई जिलों में कोरोना तबाही मचा रहा है, बड़े पैमाने पर जनहानि हो रही है तो दूसरी ओर कुछ जगह ऐसी भी हैं जहां कोरोना दस्तक तक नहीं दे पाया है. ऐसा संभव हुआ है, गांव वालों के अनुशासन, समझदारी, जिम्मेदारी और सरकार की ओर से जारी गाइडलाइन के कड़ाई से पालन के कारण. गुमला जिले का दिरगांव पंचायत का तुसगांव इसी की मिसाल है. मौजूदा वक्त तक यहां एक भी ग्रामीण को कोरोना महामारी ने अपनी चपेट में नहीं लिया है. ग्रामीण इसके लिए गांव के कुछ नियम और जंगल की जड़ीबूटी और जंगली फल को वजह बताते हैं.

देखें स्पेशल स्टोरी

ये भी पढ़ें- फ्रंटलाइन वर्करों की कड़ी मेहनत से झारखंड में कोरोना संक्रमण नियंत्रितः रघुवर दास

खेती भी दोपहर तक

गांव वालों ने कोरोना संक्रमण को लेकर नियम बना रखे हैं. जिसके मुताबिक, दोपहर तक ही खेती करेंगे. साथ ही पशुओं को भी दोपहर तक ही चराना है. इसके बाद सभी ग्रामीण घर पर रहते हैं. अगर किसी मुद्दे को लेकर ग्रामीण आपस में एक जगह जुटते भी हैं, तो सोशल डिस्टेंस का पालन जरूर करते हैं. वहीं, गांव वालों को सख्त हिदायत दी गई है कि वो सिर्फ गर्म पानी ही हर समय पीएं.

गांव के प्रवासी भी नहीं लौट रहे गांव

ग्रामीण इम्यूनिटी बढ़ाने के लिए जंगल में पाए जाने वाले जंगली फल, कंदमूल, साग आदि का दैनिक उपयोग करते हैं. वहीं, सुबह ब्रश की जगह दातुन का इस्तेमाल करते हैं. गांव के लोगों की सुरक्षा के मद्देनजर प्रवासी मजदूर फिलहाल गांव में वापसी नहीं कर रहे हैं.

शहर के लोग भी इनसे सीखें

ग्रामीणों ने बताया कि गांव में जंगल और पहाड़ देवता की कृपा है, जिसके कारण अभी तक कोरोना नहीं पहुंचा है. ग्रामीण बताते हैं कि गांव में जो साप्ताहिक हाट बाजार लगता है, उसमें भी सामाजिक दूरी का पालन कर दुकान लगाने के लिए किसानों को कहा गया है. गांव में आपसी सूझ-बूझ और सहयोग के कारण ही कोरोना जैसी वैश्विक महामारी के प्रकोप से अबतक सुरक्षित हैं. वहीं, मामूली सर्दी, खांसी, बुखार या अन्य समस्या होने पर गांव के वैद्य की ओर से जंगली जड़ीबूटी से निर्मित दवा का प्रयोग करते हैं. गांव से बाहर जाने पर मास्क और गमछे का जरूर लेकर जाते हैं. वही गांव में वापसी से पहले नदी में हाथ, पैर और मुंह धोकर ही आते हैं.

गुमला: एक ओर झारखंड के कई जिलों में कोरोना तबाही मचा रहा है, बड़े पैमाने पर जनहानि हो रही है तो दूसरी ओर कुछ जगह ऐसी भी हैं जहां कोरोना दस्तक तक नहीं दे पाया है. ऐसा संभव हुआ है, गांव वालों के अनुशासन, समझदारी, जिम्मेदारी और सरकार की ओर से जारी गाइडलाइन के कड़ाई से पालन के कारण. गुमला जिले का दिरगांव पंचायत का तुसगांव इसी की मिसाल है. मौजूदा वक्त तक यहां एक भी ग्रामीण को कोरोना महामारी ने अपनी चपेट में नहीं लिया है. ग्रामीण इसके लिए गांव के कुछ नियम और जंगल की जड़ीबूटी और जंगली फल को वजह बताते हैं.

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खेती भी दोपहर तक

गांव वालों ने कोरोना संक्रमण को लेकर नियम बना रखे हैं. जिसके मुताबिक, दोपहर तक ही खेती करेंगे. साथ ही पशुओं को भी दोपहर तक ही चराना है. इसके बाद सभी ग्रामीण घर पर रहते हैं. अगर किसी मुद्दे को लेकर ग्रामीण आपस में एक जगह जुटते भी हैं, तो सोशल डिस्टेंस का पालन जरूर करते हैं. वहीं, गांव वालों को सख्त हिदायत दी गई है कि वो सिर्फ गर्म पानी ही हर समय पीएं.

गांव के प्रवासी भी नहीं लौट रहे गांव

ग्रामीण इम्यूनिटी बढ़ाने के लिए जंगल में पाए जाने वाले जंगली फल, कंदमूल, साग आदि का दैनिक उपयोग करते हैं. वहीं, सुबह ब्रश की जगह दातुन का इस्तेमाल करते हैं. गांव के लोगों की सुरक्षा के मद्देनजर प्रवासी मजदूर फिलहाल गांव में वापसी नहीं कर रहे हैं.

शहर के लोग भी इनसे सीखें

ग्रामीणों ने बताया कि गांव में जंगल और पहाड़ देवता की कृपा है, जिसके कारण अभी तक कोरोना नहीं पहुंचा है. ग्रामीण बताते हैं कि गांव में जो साप्ताहिक हाट बाजार लगता है, उसमें भी सामाजिक दूरी का पालन कर दुकान लगाने के लिए किसानों को कहा गया है. गांव में आपसी सूझ-बूझ और सहयोग के कारण ही कोरोना जैसी वैश्विक महामारी के प्रकोप से अबतक सुरक्षित हैं. वहीं, मामूली सर्दी, खांसी, बुखार या अन्य समस्या होने पर गांव के वैद्य की ओर से जंगली जड़ीबूटी से निर्मित दवा का प्रयोग करते हैं. गांव से बाहर जाने पर मास्क और गमछे का जरूर लेकर जाते हैं. वही गांव में वापसी से पहले नदी में हाथ, पैर और मुंह धोकर ही आते हैं.

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